व्यंग्य साहित्य यह समाजसेवा, वह समाजसेवा…!! June 22, 2016 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा बचपन से मेरी बाबा भोलेनाथ के प्रति अगाध श्रद्धा व भक्ति रही है। बचपन से लेकर युवावस्था तक अनेक बार कंधे में कांवर लटका कर बाबा के धाम जल चढ़ाने भी गया। कांवर में जल भर कर बाबा के मंदिर तक जाने वाले रास्ते साधारणतः वीरान हुआ करते थे। इस सन्नाटे को […] Read more » समाजसेवा
विविधा चलो, कुछ समाजसेवा ही हो जाए May 29, 2012 by विजय कुमार | Leave a Comment विजय कुमार हर दिन मिलने वाले शर्मा जी पिछले एक सप्ताह से नहीं मिले, तो मैंने फोन मिलाया। पता लगा कि वे हैं तो नगर में ही; पर जरा व्यस्त हैं। खैर, दो दिन बाद उनके दर्शन हो ही गये। – क्या बात है शर्मा जी, इतनी व्यस्तता ठीक नहीं है कि मित्रों को ही […] Read more » समाजसेवा