कविता
सावन की सिसकी
/ by डॉ. सत्यवान सौरभ
भीग गया मन फिर चला, तेरी यादों की ओर,सावन ने फिर छेड़ दिया, वो भीगा सा शोर।टपक रही हर साँझ में, कुछ अधूरी बात,छत पर बैठी पाती पढ़े, भीगी-भीगी रात। झूला झूले याद में, पीपल की वह छाँव,तेरे संग सावन जिया, अब लगता बेजान।बूँद-बूँद में नाम तेरा, भीगा पत्र पुराना,तेरे बिना हर मौसम में, खालीपन […]
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