विविधा सुबह होने तक September 24, 2014 by बलवन्त | Leave a Comment (संस्मरण) बचाओ! बचाओ! की पुकार सुनकर यह समझने में देर नहीं लगी कि पूरब से आनेवाली आवाज़ रामनगीना बाबू के घरवाली की है। लुटेरे लूटपाट में लगे थे, मना करने पर मार-पीट भी रहे थे। रह-रहकर वातावरण के सन्नाटे को चीरती, वही दिल दहला देनेवाली आवाज़ हमारे कानों से टकराकर वातावरण में विलीन हो जाती […] Read more » सुबह होने तक