कविता
स्त्रियाँ जो द्रौपदी नहीं बनना चाहतीं
/ by प्रियंका सौरभ
वे स्त्रियाँअब चीरहरण नहीं चाहतीं,ना सभा की नपुंसक दृष्टि,ना कृष्ण का चमत्कारी वस्त्र-प्रदर्शन।वे अब प्रश्न नहीं करतीं —“सभागृह में धर्म कहाँ है?”वे खुद ही धर्म बन चुकी हैं।वे स्त्रियाँन तो द्रौपदी हैं,ना सीता,ना कुंती,वे अपना नाम खुद रखती हैं —कभी विद्रोह,कभी प्रेम,कभी ‘ना’।वे अब अग्निपरीक्षा नहीं देतीं,क्योंकि वे जान चुकी हैं —आग से नहीं,सवालों से […]
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