कविता ख़याल November 12, 2012 / November 12, 2012 by विजय निकोर | 2 Comments on ख़याल विजय निकोर तारों से सुसज्जित रात में आज कोई मधुर छुवन ख़यालों की ख़यालों से बिन छुए मुझे आत्म-विभोर कर दे, मेरे उद्विग्न मन को सहलाती, हिलोरती, कहाँ से कहाँ उड़ा ले जाए, कि जैसे जा कर किसी इनसान की छाती से उसकी अंतिम साँस वापस लौट आए, और मुंदी-मुंदी पलकों के पीछे मुस्कराते वह […] Read more » poem by vijay nikor ख़याल