विविधा हिन्दी की प्रासंगिकता / गंगानन्द झा November 14, 2011 / December 3, 2011 by गंगानन्द झा | Leave a Comment कहाँ तो तय था चिराग़ाँ हर एक घर के लिए कहाँ चिराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए जनजीवन में हिन्दी की स्थिति की बात करते हुए दुष्यन्त कुमार की गजल की ये पंक्तियाँ मर्मान्तक रूप में प्रासंगिक हो जाती हैं। कितने रूपों में हिन्दी को देश और समाज की पहचान विकसित करने में भूमिका लेने […] Read more » Authencity of Hindi Language हिंदी