कविता साहित्य कविता ; लेन देन – दीपक खेतरपाल February 1, 2012 / February 1, 2012 by दीपक खेतरपाल | Leave a Comment लगती थी साथ साथ सीमा गांव और शहर की पर दोनों थे अलग अलग हवा शहर की एक दिन कर सीमा पार पंहुच गई गांव में और छोड़ आई वहां आलस्य फरेब मक्कारी आंकाक्षाएं महत्वआंकाक्षाएं बदले में ले आई निश्छलता निष्कपटता निस्वार्थ व्यव्हार पर इस लेन देन के बाद गांव गांव न रहा और ठुकरा […] Read more » city poem village कविता लेन देन
विविधा सिकुड़ती धरती, पसरता शहर May 28, 2010 / December 23, 2011 by सतीश सिंह | Leave a Comment -सतीश सिंह तेज शहरीकरण की आपाधापी में इंसान उन बुनियादी तथ्यों को भूल चुका है जो प्रकृति द्वारा प्रदत्ता संसाधनों की हदों से वास्ता रखते हैं। जमीन इंसान की तरह अपनी आबादी को नहीं बढ़ा सकती। इस वास्तविकता को इंसान समझने के लिए आज भी तैयार नहीं है। छोटे से लेकर बड़े शहरों में दनादन […] Read more » city शहर