विविधा दायरों को लांघना April 26, 2009 / December 25, 2011 by ब्रजेश कुमार झा | Leave a Comment नई दिल्ली के बीचोंबीच अपना वजूद बनाए जे.पी.कॉलोनी की कहानियां अंकुर के सहारे हम तक पहुंच रही है।ठौर-ठिकाने लोगों की ज़िन्दगी भर की दौड़धूप के बाद ही बनते हैं। किसी जगह को बनाने में कितनी ही ज़िन्दगियाँ और कितनी ही मौतें शामिल होती हैं, कितने ही मरहलों से गुज़रकर लोग अपने लिये एक मुकाम, एक […] Read more » clearing the scope दायरों को लांघना