हिंदी दिवस
राष्ट्रभाषा पर बहस चले!
/ by बरुण कुमार सिंह
नमस्कार! प्रणाम! हम भूल चले,हैलो! हाय! बाय! हम बोल चले।चरण स्पर्श! भूल चले,आलिंगन को हाथ बढ़े। संस्कृति को भूल चूकें,विकृति को बढ़ चले।पौराणिकता को भूल चले,आधुनिकता को हाथ बढ़े। अपव्यय पर हाथ रूके,मितव्यय पर हाथ बढ़े।कृत्रिमता को भूल चले,अकृत्रिमता को बढ़ चले। सुप्रीमकोर्ट में बहस बेमानी है,न्याय की चौखट पर,राष्ट्रभाषा हारी है,मंजिल अभी बाकी है। […]
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