गजल गज़ल: रफ़्ता रफ़्ता खुशियाँ –सतेन्द्रगुप्ता June 21, 2012 / June 20, 2012 by सत्येन्द्र गुप्ता | Leave a Comment रफ़्ता रफ़्ता खुशियाँ जुदा हो गई खुद-बुलंदी की राख़ जमा हो गई। लौटकर न आये वे लम्हे फिर कभी और ज़िन्दगी बड़ी ही तन्हा हो गई। ज़िस्म का शहर तो वही रहा मगर खुदमुख्तारी शहर की हवा हो गई। कैसे गुज़री शबे-फ़िराक़, ये न पूछ मेरे लिए तो मुहब्बत तुहफ़ा हो गई। इस क़दर बढ़ी […] Read more » gazal by satendra gupta गज़ल: रफ़्ता रफ़्ता खुशियाँ –सतेन्द्रगुप्ता
गजल गज़ल: तुम से मिलकर–सतेन्द्रगुप्ता June 20, 2012 / June 20, 2012 by सत्येन्द्र गुप्ता | Leave a Comment तुम से मिलकर, तुम को छूना अच्छा लगता है दिल पर यह एहसान करना, अच्छा लगता है। लबों की लाली से या नैनों की मस्ती से कभी चंद बूंदे मुहब्बत की चखना ,अच्छा लगता है। लाख छिप कर के रहे, लुभावने चेहरे , पर्दों में कातिल को कातिल ही कहना अच्छा लगता है। देखे हैं […] Read more » gazal by satendra gupta गज़ल: तुम से मिलकर –सतेन्द्रगुप्ता
गजल गज़ल:रिश्तों में प्यार का व्यापार नहीं होता– सत्येंद्र गुप्ता May 13, 2012 / May 13, 2012 by सत्येन्द्र गुप्ता | 1 Comment on गज़ल:रिश्तों में प्यार का व्यापार नहीं होता– सत्येंद्र गुप्ता रिश्तों में प्यार का व्यापार नहीं होता तराजू से तौलकर भी तो प्यार नहीं होता। दिल की ज़ागीर को मैं कैसे लुटा दूं हर कोई चाहत का हक़दार नहीं होता। उजाड़ शब की तन्हाई का आलम न पूछिए मरने का तब भी तो इंतज़ार नहीं होता। चमकते थे दरो-दीवार कभी मेरे घर के भी अब […] Read more » gazal by satendra gupta गज़ल:रिश्तों में प्यार का व्यापार नहीं होता– सत्येंद्र गुप्ता