कविता वो जिन्दगी ही क्या,जो छाँव छाँव चली August 1, 2019 / August 1, 2019 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment आर के रस्तोगी हद-ए-शहर से निकली तो गाँव गाँव चली |कुछ सुनेहरी यादे,मेरे संग पाँव पाँव चली || सफर धूप का किया,तो ये तजुर्बा हुआ |वो जिन्दगी ही क्या,जो छाँव छाँव चली || पता है सबको,जो पांड्वो का हश्र जुए में हुआ |द्रोपदी की इज्जत,भरे दरबार में दाँव दाँव चली || रोक न सकी महँगाई,जो […] Read more » life poem shadow