कविता कविता – चिँता या चेतना-मोतीलाल April 26, 2012 / April 26, 2012 by मोतीलाल | Leave a Comment मोतीलाल अपना कोई भी कदम नए रुपोँ के सामने कर्म और विचार के अंतराल मेँ अनुभव से उपजी हुई कोई मौलिक विवेचना नहीँ बन पाता है और विचार करने की फुर्सत मेँ ज्यादा बुनियादी ईलाज उपभोक्ताओँ की सक्रियता के बीच पुरानी चिँता बनकर रह जाती है शून्य जैसी हालात मेँ स्वीकृति के विस्तार को […] Read more » poem by motilal कविता- चिँता या चेतना-मोतीलाल