व्यंग्य साहित्य चरित्र पर तो नहीं पुती कालिख! November 2, 2015 / December 7, 2015 by अशोक मिश्र | Leave a Comment अशोक मिश्र जब मैं उस्ताद गुनाहगार के घर पहुंचा, तो वे भागने की तैयारी में थे। हड़बड़ी में उन्होंने शरीर पर कुर्ता डाला और उल्टी चप्पल पहनकर बाहर आ गए। संयोग से तभी मैं पहुंच गया, अभिवादन किया। उन्होंने अभिवादन का उत्तर दिए बिना मेरी बांह पकड़ी और खींचते हुए कहा, ‘चलो..सामने वाले पार्क में […] Read more » चरित्र पर तो नहीं पुती कालिख!