कविता
जीत नहीं तो क्या हुआ, जीत से बढ़कर ये हार है…
/ by सुशील कुमार नवीन
हारीं तुम नहीं चन्द्रिके,हारा वो हर शख्श है,जिसने सदा तुम्हें टोकाबढ़ते कदमों को पीछे मोड़ा,प्रगति पथ पर बन कर रोड़ा। जमाना औरों के लिए सुखदायी था,पर तुम्हारे लिए ये सदा खराब रहा,हल्की सी हंसी भी, तीर ज्यों चुभीसांस भी सोच समझकर लिया,क्योंकि,भले घर का मेडल, तुम्हारे ही नाम रहा। वक्त न कभी बुरा था, न […]
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