कविता तिरस्कृत ग्रामदेवता October 14, 2014 by राघवेन्द्र कुमार 'राघव' | Leave a Comment कहीं डूबती फसल बाढ़ में कहीं ज़मीं बंजर फटती । भारत माँ के कृषक पुत्र की रातें रोते ही कटती । डूब कर्ज में फ़र्ज़ की खातिर चुनते ज़हर व फांसी । भारत माँ अब आज बन गयी सत्ताधीशों की दासी । धरतीपुत्रों की लाशों पर यहाँ खेल सियासी होते हैं । जीवनदाता इस धरती […] Read more » तिरस्कृत ग्रामदेवता