कविता
देश के गांवों को सलाम
by रवि श्रीवास्तव
-रवि श्रीवास्तव- लगा सोचने बैठकर इक दिन, शहर और गांवों मे अन्तर, बोली यहां की कितनी कड़वी, गांवों में मीठी बोली का मंतर। आस-पास के पास पड़ोसी, रखते नहीं किसी से मतलब, मिलना और हाल-चाल को, घर-घर पूंछते गांवों में सब, भाग दौड़ की इस दुनिया में, लोग बने रहते अंजान, गांवों में होती है […]
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