कहानी साहित्य न इधर के रहे न उधर के रहे.. February 20, 2016 by विजय कुमार | Leave a Comment मैं जिस सरकारी विभाग में काम करता था, वहां से पिछले दिनों मेरा स्थानांतरण कर दिया गया। नये स्थान पर सरकारी आवास में मरम्मत और रंगाई-पुताई का कुछ काम बाकी था। अतः कुछ समय के लिए एक कमरा किराये पर ले लिया। मकान मालिक एक वकील साहब थे। उनकी वकालत तो कोई खास नहीं चलती […] Read more » न इधर के रहे न उधर के रहे..