गजल बेज़ार मैं रोती रही, वो बे-इन्तेहाँ हँसता रहा August 3, 2009 / December 27, 2011 by दीपक चौरसिया ‘मशाल’ | 11 Comments on बेज़ार मैं रोती रही, वो बे-इन्तेहाँ हँसता रहा बेज़ार मैं रोती रही, वो बे-इन्तेहाँ हँसता रहा। वक़्त का हर एक कदम, राहे ज़ुल्म पर बढ़ता रहा। ये सोच के कि आँच से प्यार की पिघलेगा कभी, मैं मोमदिल कहती रही, वो पत्थर बना ठगता रहा। उसको खबर नहीं थी कि मैं बेखबर नहीं, मैं अमृत समझ पीती रही, वो जब भी ज़हर देता […] Read more » Bezar बेज़ार