कविता
मातृभाषा और मातृभूमि
/ by शकुन्तला बहादुर
जिन्होंने छोड़ा अपना देश ,उनमें से बहुतों ने छोड़ी,अपनी भाषा अपना वेष।**जो रहते अपने ही देश,उनमें से भी युवा जनों ने,भाषा छोड़ी,त्यागा वेष।**भाषा संस्कृति की संवाहक,वेष देश का है परिचायक।भाषा ही तो अपनी निधि है,उस पर ही निर्भर संस्कृति है।**दोनों का संरक्षण यदि हो जाए,तो देश का गौरव भी बढ़ जाए।हम सब मिलकर करें प्रयास […]
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