लेख
मौन की राख, विजय की आँच
/ by प्रियंका सौरभ
प्रियंका सौरभ छायाओं में ढलती साँझ सी,वह हार जब आयी चुपचाप,न याचना, न प्रतिकार…बस दृष्टि में एक बुझा हुआ आकाश। होठों पर थरथराती साँसें,मन भीतर एक अनसुनी रागिनी,जिसे किसी ने सुना नहीं,जिसे कोई बाँध न सका आँसू की धार में। वह पुरुष…जो शिखरों का स्वप्न लिएघाटियों में उतर गया था चुपचाप,कहीं कोई पतझड़ था उसकी […]
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