कविता
मौन में पलने दो
by विजय निकोर
तुम मेरे संतृप्त स्नेह की शिल्पकार जैसे भी चाहो तराशो इसको, नाम दो, आकार दो, ….. पर शब्द न दो, कि शब्दों में छिपे होते हैं भ्रम अनेक, छंटता है इनसे अनिष्ट छलावा, शब्द छोड़ जाते हैं छलनी मुझको, प्रिय, मैं अब स्नेह से नहीं स्नेहमय शब्दों से डरता हूँ । आओ, बैठो पास, और पास मेरे, कहो […]
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