कविता
रिक्त संपादकीय
/ by डॉ. सत्यवान सौरभ
डॉ. सत्यवान सौरभ स्याही की धार थम गई,शब्दों ने आत्महत्या कर ली,अख़बार का कोना ख़ाली है,जैसे लोकतंत्र ने मौन धर ली। न सेंसर की मुहर लगी,न टैंक चले, न हुक्मनामा,फिर भी हर कलम काँप रही है —शायद डर का रंग बदला है अबकी दफ़ा। जो लिखता है, वो बिकता है,जो चुप है, वही अब ज़िंदा […]
Read more »