चिंतन अपने बाड़ों से बाहर निकलें, जमाने को देखें, अपने आप खुलने लगेगा अक्ल का ताला April 15, 2012 / April 15, 2012 by डॉ. दीपक आचार्य | 1 Comment on अपने बाड़ों से बाहर निकलें, जमाने को देखें, अपने आप खुलने लगेगा अक्ल का ताला – डॉ. दीपक आचार्य समाज-जीवन में अजीब सी स्थिरता और जड़ता आ गई है, न कोई हलचल हो रही है न कोई उत्साह। ‘जैसा चल रहा है वैसा चलने दो’ का नारा हर कहीं प्रतिध्वनित हो रहा है। धक्कागाड़ी की तरह चल रहा है सब कुछ। इसमें पुरानी गाड़ी है, घिसे-पिटे-टूटे पुर्जे हैं, नए हैं […] Read more » social life समाज-जीवन