भारत के लिये स्थाई सिरदर्द बन चुका आतंक पोषक पाकिस्तान

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  तनवीर जाफ़री 

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में गत 22 अप्रैल को हुए बर्बरतापूर्ण व अमानवीय आतंकी हमले को देश जल्दी भुला नहीं पायेगा। इसमें 27 बेगुनाहों की जान चली गई जिनमें अधिकांश देश के विभिन्न राज्यों से आये हुये पर्यटक शामिल थे। इस अमानवीय घटना की जितनी भी निंदा की जाये वह कम है। इस घटना के बाद राजनीति,भारतीय मीडिया,सोशल मीडिया, पक्ष और विपक्ष से जुड़े कई ऐसे पहलू थे जिनपर चर्चा होनी स्वभाविक थी और वह हुई भी।

                                       बहरहाल 22 अप्रैल से लेकर अब तक इस विषय को लेकर दोनों देशों की ओर से कई क़दम उठाये जा चुके हैं। भारत ने पाकिस्तान के विरुद्ध जो अहम फ़ैसले लिए हैं उनमें मुख्य रूप से भारत-पाकिस्तान के बीच हुये सिंधु जल समझौते को स्थगित करना,अटारी बॉर्डर को बंद करना,भारत आए पाकिस्तानी नागरिकों को इसी मार्ग से लौटने के लिए 1 मई तक की समय सीमा निर्धारित करना,पाकिस्तानी नागरिकों को भारत का वीज़ा न देना,भारत में मौजूद पाकिस्तानी नागरिकों को भारत छोड़ने के लिए 48 घंटे का समय देना, सभी पाकिस्तानी नागरिकों के वीज़ा रद्द करना, नई दिल्ली स्थित पाकिस्तानी हाईकमीशन में तैनात पाकिस्तानी डिफ़ेन्स एडवाइज़र्स को भारत छोड़ने के लिए एक हफ़्ते का समय देना, तथा दोनों हाई कमीशन में तैनात कर्मचारियों की संख्या 55 से घटाकर 30 तक किया जाना शामिल है। इसके जवाब में पाकिस्तान ने भी भारत के विरुद्ध कई फ़ैसले लिये हैं जिनमें भारत के साथ हुआ शिमला समझौता स्थगित करना,वाघा बॉर्डर से व्यापार पूरी तरह बंद करना,30 अप्रैल तक जिन लोगों ने वैध काग़ज़ों के साथ इस रास्ते से पाकिस्तान प्रवेश किया है, उन्हें वापस लौटने का निर्देश देना,सार्क वीज़ा छूट योजना के तहत भारतीय नागरिकों को दी गई वीज़ा छूट खत्म करना (सिख तीर्थयात्रियों को छोड़कर), भारतीय हाई कमीशन में काम कर रहे सैन्य सलाहकारों – डिफ़ेंस, नेवी और एयर अटैची को अवांछित व्यक्ति(persona non grata) घोषित करना और उन्हें व उनके सहायक स्टाफ़ को 30 अप्रैल तक पाकिस्तान छोड़ने का निर्देश देना,इस्लामाबाद में भारतीय हाई कमीशन के कर्मचारियों की संख्या घटाकर 30 करना,पाकिस्तानी एयरस्पेस को अब भारतीय स्वामित्व या संचालन वाली सभी एयरलाइंस के लिए बंद करना तथा हर प्रकार का व्यापार चाहे वह सीधे भारत से हो या किसी तीसरे देश के ज़रिए, तत्काल प्रभाव से बंद कर देना जैसी घोषणायें शामिल हैं। 

                          उधर दोनों देशों द्वारा एक दूसरे के विरुद्ध उठाये जा रहे इन क़दमों के बीच पाकिस्तान की ओर से की गयी एक ऐसी स्वीकारोक्ति ने भारत द्वारा पाकिस्तान के विरुद्ध लगभग चार दशकों से लगाये जा रहे इन आरोपों को सच साबित कर दिया है कि पाकिस्तान आतंकवाद की नर्सरी भी है और पनाहगाह भी। ग़ौरतलब है कि स्काई न्यूज़ के संवाददाता ने पहलगाम में आतंकी हमले के सन्दर्भ में जब पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख़्वाजा आसिफ़ से पूछा कि- “क्या आप मानते हैं कि पाकिस्तान का इन आतंकी संगठनों को समर्थन देने, प्रशिक्षण देने और धन मुहैया कराने का लंबा इतिहास रहा है? तो ख़्वाजा आसिफ़ ने स्वीकार किया कि पाकिस्तान आतंकी समूहों को धन मुहैया कराने के साथ-साथ उन्हें हर तरह से समर्थन करता रहा है। ख़्वाजा आसिफ़ ने एक बातचीत के दौरान कहा कि – “हम अमेरिका और ब्रिटेन समेत पश्चिमी देशों के लिए क़रीब तीन दशकों से यह गंदा काम कर रहे हैं।” इसे दूसरे शब्दों में कहा जाये तो पाकिस्तान अमेरिका व ब्रिटेन जैसे पश्चिमी देशों की कठपुतली बनकर आतंकवाद की पनाहगाह व आतंकवादियों का ‘मुख्य उत्पादक देश’ बना हुआ है। रक्षा मंत्री ख़्वाजा आसिफ़ ने यह भी कहा कि -‘यदि हम सोवियत संघ के विरुद्ध युद्ध में और बाद में 9/11 के बाद के युद्ध में शामिल नहीं होते, तो पाकिस्तान का ट्रैक रिकॉर्ड बेदाग़ होता।’

                    परन्तु सच पूछिये तो धर्म के आधार पर भारत से विभाजित होकर 1947 में ही अलग अस्तित्व में आने वाले पाकिस्तान में शुरू से ही अधर्म,ज़ोर ज़बरदस्ती,कट्टरपंथ,हिंसा व आतंकवाद का बोल बाला रहा है। और समय के साथ से यह और भी बढ़ता ही गया है। पाकिस्तानी नेताओं व शासकों द्वारा पोषित व प्रायोजित आतंकवाद का पहला निशाना तो पूर्वी पाकिस्तान (तत्कालीन) के लोग ही बने। बड़े पैमाने पर हत्यायें बलात्कार क्या नहीं किया गया बंगाली मुसलमानों के साथ ? तब कहाँ चला गया था इनका ‘इस्लामी राष्ट्र ‘? क्यों 24 वर्षों में ही पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश वजूद में आया ? उसके बाद पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों विशेषकर हिन्दुओं,सिखों,शिया व अहमदिया मुसलमानों पर अत्याचार करने व उनकी हत्याओं का सिलसिला भी कोई केवल तीन दशक की कहानी नहीं है बल्कि यह सब घिनौनी हरकतें पाकिस्तान के वजूद में आते ही शुरू हो गयी थीं। स्वयं राष्ट्रपति ज़ियाउलहक़ के दौर में पाकिस्तान में कट्टरपंथ व आतंकवाद ख़ूब फला फूला। इसी पाकिस्तान में धर्म के नाम पर आत्मघातियों की भर्ती की गयी जिन्होंने मस्जिदों,दरगाहों,इमाम बारगाहों व अनेक धार्मिक जुलूसों में अब तक हज़ारों लोग मारे। उसके बाद इसी पाकिस्तान ने तालिबानों को शुरूआती दौर में पूरा संरक्षण दिया। उनके कार्यालय तक खोले गये और ओसामा बिन लादेन व मुल्ला उमर के समय में तालिबानी प्रवक्ता पाकिस्तान में बैठकर पत्रकार वार्ता करता तथा तालिबानी नीतियों को सार्वजनिक करता था। अफ़ग़ानिस्तान की कट्टरपंथी तालिबानी सरकार को मान्यता देने वाला पहला देश पाकिस्तान ही था। पाकिस्तान में पोषित तालिबानी ही आगे चलकर कट्टरपंथी व आतंकी गिरोह तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के नाम से जाने गये। और यही बाद में पाकिस्तान-अफ़गानिस्तान सीमा के क़रीब संघीय प्रशासित क़बायली क्षेत्र के चरमपन्थी उग्रवादी गुटों के संग्ठन के रूप में स्थापित हुये। इसका मक़सद पाकिस्तान में शरिया पर आधारित एक कट्टरपन्थी इस्लामी अमीरात को क़ायम करना था। इस संग्ठन ने भी कश्मीर में आतंकवाद फैलाने के प्रयास किये थे। तहरीक-ए-तालिबान ही वह संगठन था जिसके छः आतंकियों ने 16 दिसम्बर 2014 को पेशावर के सैनिक स्कूल पर हमला करके पाक फ़ौजियों के ही 126 बच्चों की हत्या कर दी थी।

                    इन सब वास्तविकताओं के बावजूद जब जब पाकिस्तान पर आतंकवाद फैलाने या उसे संरक्षण देने का आरोप भारत द्वारा लगाया जाता तो पाकिस्तान यह कहकर अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश करता कि ‘वह तो स्वयं आतंकवाद का दंश झेल रहा है और इसका भुक्तभोगी है ‘। परन्तु पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख़्वाजा आसिफ़ की ताज़ातरीन स्वीकारोक्ति से यह साबित हो चुका है कि पाकिस्तान आतंक फैलाने का केवल आरोपी ही नहीं बल्कि दोषी भी है। मसूद अज़हर,कंधार विमान अपहरण, हाफ़िज़ सईद,क़साब, पहलगाम का ताज़ातरीन अमानवीय हमला ऐसे दर्जनों सुबूत हैं जिसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि  पाकिस्तान द्वारा पोषित व संरक्षित आतंकवाद भारत के लिये स्थाई सिरदर्द बन चुका है लिहाज़ा इसका स्थाई समाधान होना भी ज़रूरी है। 

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