कविता

वो बात नहीं आ पाती है

सुंदर सुमनों की क्यारी में
फूलों की इस फुलवारी में
एक मधुर महक मंडराती है
यौवन की याद दिलाती है
यूं लगे की भंवरे बहकेंगे
ये फूल सदा ही महकेंगे

पेड़ों पर पंछी रहते हैं
क्या मधुर शब्द ये कहते हैं
यहां मधु कामिनी खिलती है
कलियों से शबनम मिलती है
कब कहां कुमुदिनी सोती है
जब निशा चांदनी होती है

हर फूल ये बात सुनाता है
जैसे जन्मों का नाता है
ये रंग सदा ही चटकेंगे
राही के चक्षु अटकेंगे
कुछ कांटों की शैतानी है
लेकिन ये गंध तो आनी है

पर जब कोई तूफां आता है
कुछ शाख उड़ा ले जाता है
तब इन घावों के भरने में
उपवन के सजने संवरने में
फिर एक उम्र लग जाती है
वो बात नहीं आ पाती है

डॉ राजपाल शर्मा ‘राज