कविता

जिसकी है नमकीन जिन्दगी

जिसकी है नमकीन जिन्दगी

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जो दिखती रंगीन जिन्दगी

वो सच में है दीन जिन्दगी

 

बचपन, यौवन और बुढ़ापा

होती सबकी तीन जिन्दगी

 

यौवन मीठा बोल सके तो

नहीं बुढ़ापा हीन जिन्दगी

 

जीते जो उलझन से लड़ के

उसकी है तल्लीन जिन्दगी

 

वही छिड़कते नमक जले पर

जिसकी है नमकीन जिन्दगी

 

दिल से हाथ मिले आपस में

होगी क्यों गमगीन जिन्दगी

 

जो करता है प्यार सुमन से

वो जीता शौकीन जिन्दगी

 

जगत है शब्दों का ही खेल

शब्द ब्रह्म कहलाते क्योंकि, यह अक्षर का मेल।
जगत है शब्दों का ही खेल।।

आपस में परिचय शब्दों से, शब्द प्रीत का कारण।
होते हैं शब्दों से झगड़े, शब्द ही करे निवारण।
कोई है स्वछन्द शब्द से, कसता शब्द नकेल।
जगत है शब्दों का ही खेल।।

शब्दों से मिलती ऊँचाई, शब्द गिराता नीचे।
गिरते को भी शब्द सम्भाले, या फिर टाँगें खींचे।
शासन का आसन शब्दों से, देता शब्द धकेल।
जगत है शब्दों का ही खेल।।

जीवन की हर दिशा-दशा में, शब्दों का ही मोल।
शब्द आईना अन्तर्मन का, सब कुछ देता बोल।
कैसे निकलें शब्द-जाल से, सोचे सुमन बलेल।