चुनाव आयोग पर हमला गंभीर रूप ले चुका है

राजेश कुमार पासी

राहुल गांधी और विपक्ष के दूसरे नेताओं का चुनाव आयोग पर हमला अब बहुत गंभीर हो चुका है क्योंकि अब ये लोकतंत्र और संविधान पर सवाल खड़े करने तक पहुँच गया है। कुछ लोग कह सकते हैं कि विपक्ष तो संविधान और लोकतंत्र बचाने की जंग लड़ रहा है तो फिर चुनाव आयोग के खिलाफ उसकी मुहिम लोकतंत्र और संविधान के लिए खतरा कैसे हो सकती है। वास्तव में संविधान और लोकतंत्र तब तक सुरक्षित हैं तब तक कि जनता का उनमें विश्वास है । जिस दिन देश की जनता का विश्वास लोकतंत्र और संविधान से उठ गया, उस दिन से इनकी समाप्ति का वक्त शुरू हो जाएगा। भारत की सारी व्यवस्था संविधान से उत्पन्न हुई है. अगर संविधान के ऊपर से विश्वास खत्म हो गया तो व्यवस्था से भी जनता का भरोसा खत्म हो जाएगा।

 चुनाव आयोग के पास वो काम है जो लोकतंत्र का आधार है. अगर चुनाव आयोग की विश्वसनीयता ही खत्म हो गई तो फिर लोकतंत्र कैसे बच सकता है । लोकतंत्र का मतलब ही है जनता द्वारा चुनी गई जनता की सरकार लेकिन जब चुनाव आयोग बेईमानी करके सरकार बनाने लगेगा तो फिर सरकार जनता द्वारा चुनी हुई कैसे मानी जायेगी। जो सरकार जनता द्वारा नहीं चुनी गई होगी, वो जनता द्वारा और जनता के लिए बनी सरकार कैसे मानी जायेगी। संविधान का संरक्षक सुप्रीम कोर्ट है लेकिन जब उसकी भी बात नहीं सुनी जाएगी तो संविधान का संरक्षण कौन करेगा । प्रधानमंत्री मोदी को तीसरा कार्यकाल मिलने के बाद विपक्ष को लग रहा था कि इस बार उनके पास पूर्ण बहुमत नहीं है, वो सहयोगी दलों पर निर्भर हैं इसलिए उनकी सरकार ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाएगी । सरकार ने जिस तरह से अपने कार्यकाल का एक साल पूरा किया है और मोदी जी आत्मविश्वास के साथ सभी को साथ लेकर चल रहे हैं, उससे विपक्ष को अहसास हो गया है कि ये सरकार अपना कार्यकाल पूरा करने वाली है। इस अहसास ने विपक्ष को हताशा और निराशा से भर दिया है जिसके कारण वो कुंठित हो गया है। 

                 विपक्ष को अहसास हो चला है कि उसके लिए केंद्र की सत्ता पाना बहुत मुश्किल होने वाला है । आने वाले  कौन से चुनाव में उसे सत्ता मिलेगी, यह भी उसे पता नहीं है । अपनी कुंठा में राहुल गांधी चुनाव आयोग पर उल्टे-सीधे आरोप लगाने में सारी हदें पार करते जा रहे हैं । वो सीधे तौर पर चुनाव आयोग पर भाजपा के लिए चुनाव चोरी करने का आरोप लगा रहे हैं । अब तो उनकी हालत यह हो गई है कि उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव में भी धांधली का आरोप लगा दिया है । हैरानी की बात है कि उनकी सरकार के अधीन  होने वाले चुनाव में चुनाव आयोग कैसे धांधली कर गया । दूसरी बात यह है कि उस चुनाव आयोग का चयन तो यूपीए सरकार द्वारा ही किया गया था तो वो कैसे भाजपा के साथ चला गया । राहुल गांधी चुनाव आयोग को सार्वजनिक रूप से धमकी देने लगे हैं कि जब उनकी सरकार आएगी तो सबका हिसाब होगा। अगर कोई रिटायर भी हो गया होगा तो उसके खिलाफ भी कार्यवाही की जाएगी ।

कांग्रेस के  दूसरे नेता भी राहुल गांधी की शह पर चुनाव आयोग के खिलाफ उल्टे-सीधे बयान देने लगे हैं । पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम ने बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण को लेकर कहा है कि चुनाव आयोग अपनी शक्तियों को दुरुपयोग कर रहा है और इसका मुकाबला कानूनी तरीके से किया जाएगा । सवाल यह है कि चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची के पुनरीक्षण का काम उसका संवैधानिक कर्तव्य है और वो अपना कर्तव्य पूरा कर रहा है तो विपक्ष क्यों परेशान है । अगर चुनाव आयोग के काम में कुछ गलत है तो उसे इसकी शिकायत करनी चाहिए लेकिन चुनाव आयोग ने कहा है कि उसने मतदाता सूची का जो  प्रारूप तैयार किया है उस पर अभी तक उसे किसी भी राजनीतिक दल की आपत्ति नहीं मिली है । सवाल यह है कि चुनाव आयोग के खिलाफ विपक्ष सुप्रीम कोर्ट भी जा  चुका है और सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक नहीं लगाई है तो विपक्ष क्यों बवाल कर रहा है । दूसरी बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट जब मामले की सुनवाई कर रहा है तो उसे विपक्ष के झूठे आरोपों का संज्ञान लेना चाहिए लेकिन वो ऐसा क्यों नहीं कर रहा है । 

             राहुल  गांधी ने बयान दिया है कि उनके पास एटम बम है, जब वो इसे फोड़ेंगे तो चुनाव आयोग दिखाई नहीं देगा । उनके कहने का मतलब है कि उनके पास चुनाव आयोग की धांधली के पक्के सबूत हैं जिन्हें वो जनता के सामने रखेंगे तो चुनाव आयोग की विश्वसनीयता खत्म हो जाएगी । केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने उन्हें चुनौती देते हुए कहा है कि वो जल्दी से जल्दी यह एटम बम फोड़ दें और सारे सबूत जनता के सामने रख दें । सवाल यह है कि अगर राहुल गांधी के पास कोई सबूत है तो वो उसे सुप्रीम कोर्ट में क्यों नहीं पेश कर देते या संसद के पटल पर क्यों नहीं रखते । वास्तव में राहुल गांधी को सनसनीखेज बयान देने का शौक है. कभी वो भूकंप लाने की बात करते हैं, कभी सुनामी ले आते हैं और अब एटम बम फोड़ने वाले हैं हालांकि उनकी हालत खोदा पहाड़, निकली चुहिया से भी ज्यादा बुरी है ।

 झूठ बोलना राहुल की फितरत बन गई है और इसके लिए वो कई बार सुप्रीम कोर्ट की डांट खा चुके हैं । उन्होंने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान बयान दिया था कि चीन ने भारत की 2000 वर्ग किलोमीटर जमीन कब्जा कर ली है और 20 भारतीय जवानों को शहीद कर दिया है । उन्होंने कहा कि चीन की सेना भारतीय जवानों को पीट रही है । सुप्रीम कोर्ट ने राहुल को फटकार लगाते हुए कहा है कि आपको कैसे पता कि भारत की जमीन कब्जा हो गई है. क्या आपके पास कोई दस्तावेज है? और दो देशों की लड़ाई में दोनों पक्षों का नुकसान होता है तो आप कैसे बयान दे रहे हैं । राहुल को झाड़ लगाते हुए माननीय अदालत ने कहा है कि कोई भी सच्चा भारतीय ऐसी बात नहीं कर सकता लेकिन राहुल गांधी इतने ज्यादा कुंठित हैं कि उन पर कोई असर नहीं होता । ऑपरेशन सिंदूर के बाद भी वो सरकार से लगातार सवाल कर रहे हैं कि भारत के कितने जहाज पाकिस्तान ने गिराए हैं । सवाल यह है कि 1962, 1965 और 1971 की जंग में भारत का कितना नुकसान हुआ था, क्या तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने मीडिया या संसद को बताया था । राहुल गांधी को इतनी छोटी सी बात समझ नहीं आती है लेकिन एक पूरा इको सिस्टम उन्हें भारत पर प्रधानमंत्री बनाकर थोपना चाहता है । 

              सवाल यह है कि विपक्ष को चुनाव आयोग, सुप्रीम कोर्ट, सेना और मीडिया पर भरोसा नहीं है लेकिन उसे लोकतंत्र और संविधान बचाने की लड़ाई लड़नी है । वो समझ नहीं पा रहा है कि भारत में लोकतंत्र और संविधान पर सबसे बड़ा खतरा विपक्ष का रवैया ही बन गया है ।  2014 के चुनाव में धांधली का आरोप लगाकर राहुल गांधी ने बता दिया है कि उन्हें भाजपा से परेशानी नहीं है बल्कि लोकतंत्र और संविधान से ही परेशानी है । जब अपनी ही सरकार के शासन में हुए चुनाव में भी उन्हें धांधली  दिखाई देने लगी है तो इसका स्पष्ट संकेत है कि उन्हें लोकतांत्रिक मूल्यों में बिल्कुल भरोसा नहीं है। वो मोदी को एक प्रधानमंत्री के रूप में अभी तक स्वीकार नहीं कर पाए हैं । वो गांधी परिवार का वारिस होने के कारण अपने अलावा किसी और को प्रधानमंत्री बनते देखना बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं। इसलिये वो सरकार और देश के विरोध में अंतर को भी भूल गए हैं। जिस संविधान को सिर पर उठाकर घूमते हैं, वास्तव में उनके मन में उसके प्रति नफरत भरी हुई है, इसलिए वो संवैधानिक संस्थाओं पर हमला कर रहे हैं। उन्हें कोई समझाने वाला नहीं है कि संवैधानिक संस्थाओं की विश्वसनीयता खत्म करके संविधान को बचाया नहीं जा सकता ।

उन्होंने स्वर्गीय अरुण जेटली जी पर आरोप लगाया कि उन्होंने किसान आंदोलन के दौरान उन्हें किसानों का समर्थन करने पर धमकी दी थी जबकि जेटली जी डेढ़ साल पहले ही दुनिया से विदा हो चुके थे । मतलब साफ है कि राहुल गांधी ने उन पर झूठा आरोप इसलिए लगाया था क्योंकि अब वो सफाई नहीं दे सकते थे लेकिन उन्हें यह पता नहीं था कि किसान आंदोलन शुरू होने से बहुत पहले उनकी मौत हो गई थी। डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय अर्थव्यवस्था की मरती हुई अर्थव्यवस्था बताया तो राहुल गांधी ने उनका समर्थन कर दिया ।  मेरा मानना है कि राहुल गांधी के नेतृत्व में विपक्ष कुंठाग्रस्त होकर देशविरोधी कामों में जुट गया है । अगर देश की किसी भी संस्था से उसे शिकायत है तो उसे संवैधानिक तरीके से लड़ना चाहिए । देश की आधी से ज्यादा जनता विपक्ष की समर्थक है और उसकी बातों पर भरोसा करती है । अगर इस तरीके से विपक्ष भाजपा से लड़ेगा तो उसके समर्थकों की संख्या कम होती जाएगी । दूसरी बात यह है कि विपक्ष के गैर जिम्मेदाराना रवैये से उसके समर्थकों में लोकतंत्र, संविधान और व्यवस्था के खिलाफ गुस्सा बढ़ता जाएगा । विपक्ष को चुनाव आयोग के खिलाफ अपने अभियान पर गंभीरता पूर्वक विचार करना चाहिए क्योंकि चुनाव आयोग पर उसके हमले का गंभीर परिणाम निकल सकता है ।

राजेश कुमार पासी

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