पंकज जायसवाल
हाल ही में इंडिगो एयरलाइंस से जुड़ी घटना ने एक बार फिर यह सच्चाई उजागर कर दी है कि आधुनिक एविएशन जितना भी टेक्नोलॉजी-ड्रिवन क्यों न दिखे, उसकी रीढ़ आज भी मानव संसाधन ही है। हवाई जहाज़, एयरपोर्ट, रनवे, रडार, सॉफ्टवेयर और ऑटोमेशन ये सभी तभी तक अर्थ रखते हैं, जब तक उन्हें संचालित करने वाला प्रशिक्षित, संतुलित और संतुष्ट मानव संसाधन उपलब्ध है।
सच्चाई यह है कि एविएशन सेक्टर अभी भी पूरी तरह मशीन-डिपेंडेंट नहीं हुआ है और ना हो सकता है। इसका सबसे बड़ा “इंजन” आज भी इंसान ही है। एक पायलट नहीं होगा तो पाँच सौ करोड़ रुपये का अत्याधुनिक विमान भी केवल धातु का एक ढांचा भर रह जाता है। विमान कोई जनरल श्रेणी का वाहन नहीं है जिसे कोई भी चालक चला सके। यह एक अत्यधिक विशिष्ट मशीन है जिसे केवल प्रशिक्षित, लाइसेंस प्राप्त और मानसिक रूप से संतुलित पायलट ही उड़ा सकता है।
इसका सीधा सा अर्थ यह हुआ कि एक विमान और एक पायलट का मूल्य लगभग बराबर है। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और दोनों में से किसी एक के बिना दूसरा निष्प्रभावी हो जाता है। भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में जो भी विमान उड़ रहे हैं, वे पायलटों के कारण ही उड़ रहे हैं, इसलिए एविएशन इंडस्ट्री में मानव संसाधन प्रबंधन कोई सामान्य एचआर फंक्शन नहीं बल्कि एक क्रिटिकल नेशनल रिस्क मैनेजमेंट फंक्शन भी है।
एयरपोर्ट ऑपरेशन और ग्राउंड हैंडलिंग आज भी पूरी तरह मानव-श्रम आधारित व्यवस्था हैं. चाहे वह एप्रन सर्विस हो, बैगेज हैंडलिंग हो, एयरक्राफ्ट क्लीनिंग, कैटरिंग, फ्यूलिंग, पुशबैक, लोड कंट्रोल या सेफ्टी चेक हो, ये सभी गतिविधियाँ आज भी बड़े पैमाने पर मानव श्रम पर निर्भर हैं। यहाँ एक छोटी-सी ड्यूटी रोस्टर की गलती या शेड्यूलिंग की चूक भी पूरे सिस्टम को पंगु बना सकती है। ध्यान देने वाली बात यह है कि एक ही विमान एक दिन में देश के कई शहरों के एयरपोर्ट को जोड़ता है। यदि एक स्टेशन पर कोई गड़बड़ी होती है तो उसका असर अगले फ्लाइट सेक्टर पर, अन्य विमानों पर, कई एयरपोर्ट्स की टाइमिंग पर और अंततः पूरे नेटवर्क पर पड़ता है, यानी एक फ्लाइट की देरी, कई फ्लाइट्स और कई एयरपोर्ट्स की देरी बन जाती है। यही कारण है कि एविएशन सिस्टम को “नॉइज़ी चेन” भी कहा जाता है जहाँ एक छोटी चूक की गूँज पूरे देश में सुनाई देती है।
इस छोटी चूक के बड़े असर से देश की अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होती है । अक्सर लोग एविएशन संकट को केवल “यात्रियों की असुविधा” के रूप में देखते हैं जबकि इसका असर इससे कहीं गहरा होता है। हवाई यात्रा आज देश की अर्थव्यवस्था की नस बन चुकी है। देश का शीर्ष प्रबंधन, नीति निर्माता, उद्योगपति, निवेशक, डॉक्टर, इंजीनियर, सैन्य और सुरक्षा से जुड़े अधिकारी सबसे अधिक यात्रा हवाई माध्यम से ही करते हैं। जब फ्लाइट ऑपरेशन बाधित होता है तो बिज़नेस मीटिंग्स कैंसल होती हैं, निवेश निर्णय टलते हैं, जरूरी सेवाओं में देरी होती है, ट्रेवल टूरिज्म उद्योग को नुकसान होता है और आर्थिक गतिविधियाँ ठहर जाती हैं.
यानी एविएशन में मानव संसाधन की चूक का असर केवल एयरलाइन तक सीमित नहीं रहता, वह देश की अर्थव्यवस्था तक पहुँचता है। यहां श्रम असंतोष एक छुपा हुआ लेकिन बड़ा जोखिम है. एविएशन में जोखिम केवल शेड्यूलिंग और रोस्टर तक सीमित नहीं है। यदि इन श्रम संपत्तियों पायलट, ग्राउंड स्टाफ, एटीसी सपोर्ट स्टाफ को ठीक तरह से प्रबंधित नहीं किया गया तो उनके बीच फैला असंतोष किसी भी एयरपोर्ट या एयरलाइन के संचालन को ठप कर सकता है।
इतिहास गवाह है कि जब-जब एविएशन सेक्टर में श्रमिक असंतोष फैला है, तब-तब यात्रियों को बंधक-सी स्थिति का सामना करना पड़ा है, सरकारों को हस्तक्षेप करना पड़ा है और देश की छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नुकसान पहुँचा है.
इसलिए एविएशन में मानव संसाधन जोखिम, वित्तीय या तकनीकी जोखिम से कहीं अधिक संवेदनशील और खतरनाक होता है। चीफ ह्यूमन रिसोर्स ऑफिसर (सीएचआरओ) का पद नाम मात्र नहीं, रणनीतिक पद होता है. यहाँ सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है क्या एविएशन कंपनियाँ अपने सीएचआरओ के पद को उतनी ही गंभीरता से ले रही हैं, जितनी सीईओ सीएफओ या सीओओ के पद को? एविएशन जैसी इंडस्ट्री में सीएचआरओ कोई सामान्य एचआर एडमिनिस्ट्रेटर नहीं हो सकता। उसे एविएशन के ऑपरेशनल रिस्क की समझ, ड्यूटी रोस्टर और सेफ्टी रूल्स की संवेदनशीलता , श्रमिक कानूनों और सरकारी निर्देशों की गहरी जानकारी और सबसे बढ़कर, निर्णयों के दीर्घकालिक प्रभावों की दूरदर्शिता आकलन करने की क्षमता होनी चाहिए.
वर्तमान की घटना में ड्यूटी रोस्टर संबंधी सरकारी आदेश महीनों पहले आ चुका था। यदि उसके परिणामों की सही फोरकास्टिंग मानव संसाधन विभाग ने की होती, तो शायद संकट को टाला जा सकता था। यह दिखाता है कि मानव संसाधन प्रबंधन को ‘चलता है’ के नजरिये से लिया गया और उसकी गंभीरता को कम आंका गया। अब समय है समीक्षा का. आज यह समय है कि सभी एयरलाइंस, एयरपोर्ट ऑपरेटर्स, ग्राउंड हैंडलिंग कंपनियाँ अपने मानव संसाधन विभाग की स्वतंत्र और ईमानदार समीक्षा करें। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि सीएचआरओ जैसे संवेदनशील पद पर केवल वही व्यक्ति बैठे जिसे एविएशन का अनुभव हो, उच्च दबाव वाली परिस्थितियों को संभालने की क्षमता हो और राष्ट्रीय हित के दृष्टिकोण से निर्णय लेने की समझ हो.
इसमें सरकार और नागरिक उड्डयन मंत्रालय की भूमिका भी है. चूँकि एविएशन सेवाएँ सीधे देश के नागरिकों और आवश्यक सेवाओं से जुड़ी हैं, इसलिए बेहतर होगा कि नागरिक उड्डयन मंत्रालय इस संबंध में न्यूनतम योग्यता और अनुभव से जुड़े दिशानिर्देश तय करे। जिस तरह डीजीसीए पायलटों और इंजीनियरों के लिए मानक तय करता है, उसी तरह एविएशन सेक्टर के शीर्ष मानव संसाधन पदों के लिए भी फिट एंड प्रॉपर क्राइटेरिया होना चाहिए अन्यथा, देश, उसकी अर्थव्यवस्था और उसके नागरिक बार-बार ऐसे संकटों में फँसते रहेंगे जिनकी कीमत केवल यात्री ही नहीं बल्कि पूरा राष्ट्र चुकाता है।
इस पूरी घटना और इसके विमर्श का लब्बोलुबाब यह है कि इंडिगो की घटना केवल एक एयरलाइन की समस्या नहीं है. यह पूरे एविएशन इकोसिस्टम के लिए एक चेतावनी है। यह याद दिलाती है कि एविएशन में मशीनें महत्वपूर्ण हैं पर उनसे भी अधिक महत्वपूर्ण हैं इन्हें संचालित करने वाले इंसान। जब तक मानव संसाधन को रणनीतिक, संवेदनशील और राष्ट्रीय दृष्टि से प्रबंधित नहीं किया जाएगा, तब तक एविएशन चाहे जितना आधुनिक हो जाए, वह उतना ही असुरक्षित बना रहेगा। आज जो भी हालात सामने आ रहें हैं उसे मानव संसाधन विभाग संभाल सकता था लेकिन यहाँ चूक हो गई है कारण चाहे जो भी हो.
पंकज जायसवाल