कमलेश पांडेय
दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी भाजपा भले ही अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनने में असमंजस के दौर से गुजर रही हो लेकिन भारत राष्ट्र के प्रति उसके समर्पण का ही यह तकाजा है कि अब वह अजेय पार्टी बनने जा रही है, खासकर आम चुनाव 2029 में! और यदि ऐसा हुआ तो फिर भाजपा को हराना भारतीय विपक्षी पार्टियों और उनके तथाकथित इण्डिया गठबंधन के लिए बेहद मुश्किल हो जायेगा। दरअसल, यह बात मैं नहीं कह रहा हूँ बल्कि दिग्गज कांग्रेस रणनीतिकार रहे पी चिदंबरम ने खुद कहा है। इसलिए सियासी हल्के में यह सवाल उठाया जा रहा कि क्या एक और कांग्रेस दिग्गज भी एक अन्य कांग्रेस दिग्गज शशि थरूर की राह पर चल रहे हैं, जो पहले से ही कांग्रेस लाइन से बे-लाइन चल रहे थे क्योंकि उनके बयानों से तो यही जाहिर होता है कि वे कांग्रेस के वरिष्ठ राजनेता नहीं बल्कि बीजेपी के वरिष्ठ राजनेता हैं। ऐसा इसलिए कि अब चिदंबरम ने भी कुछ शशि थरूर जैसे ही बयान देने शुरू कर दिए हैं!
ऐसे में सवाल है कि कांग्रेस नेताओं के लिए यह महज संयोग है या फिर वैचारिक भूलभुलैय्या वाला कोई अभिनव प्रयोग! समझा जाता है कि सत्ता जाने के बाद बड़े नेताओं द्वारा इधर उधर गुंजाइश तलाशना कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन जब गाँधी परिवार के विश्वासपात्र नेता ही ऐसा करने लगें तो राहुल-प्रियंका गाँधी का चिंतित होना स्वाभाविक है जबकि वे दोनों बेफिक्र लग रहे हैं और इन बडबोले नेताओं के खिलाफ कोई कार्रवाई भी नहीं कर रहे हैं। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कांग्रेस में हो रहे पीढ़ी परिवर्तन से ये नेता अनफिट घोषित किए जा चुके हैं, इसलिए वो अपने-अपने बयानों से भाजपा को पटाने में जुटे हैं।
राजनीतिक विश्लेषक भी मानते हैं कि थरूर की सहानुभूति से केरल भाजपा और चिदंबरम की दरियादिली से तमिलनाडू भाजपा को आशातीत बढ़त मिल सकती है क्योंकि कांग्रेस के जो वफादार पुराने प्रहरी हैं उनमें से चिदंबरम-थरूर का नाम राजनीतिक हलकों में बड़ी ही साफगोई पूर्वक लिया जाता है। इसकी एक नहीं, बल्कि सैकड़ों वजहें हैं। आखिर तमाम उतार-चढ़ाव के बावजूद भी पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के जमाने से ही चिदंबरम कांग्रेस का झंडा मजबूती से पकड़े हुए हैं। हालाँकि कई बार उनके बयानों में भी कांग्रेस को कड़वी सच्चाई का सामना करना पड़ जाता है। वो भी बिलकुल वैसे ही कुछ करते हुए दिखाई दे जाते हैं जैसे शशि थरूर करते रहते हैं। हालाँकि कांग्रेस के कुछ अन्य नेताओं की फितरत भी यही रहती है लेकिन वो उतने बड़े और प्रभावी नहीं हैं जितने कि ये दोनों।
अब ताजा मामला ही देखिए कि चिदम्बरम ने पाकिस्तान वाले ऑप्रेशन सिंदूर के मसले पर भारत सरकार की पहले ही तारीफ की थी और अब इंडिया गठबंधन को भी जो सही आइना दिखाते हुए खरी खोटी सुना दी है, उसके अपने सियासी मायने हैं जिन्हें भुनाने में भाजपा और उसका राजग गठबंधन कतई पीछे नहीं रहेगा। उल्लेखनीय है कि राज्यसभा सांसद चिदंबरम सलमान खुर्शीद और मृत्युंजय सिंह यादव की किताब ‘कंटेस्टिंग डेमोक्रेटिक डेफिसिट’ के विमोचन अवसर पर बोल रहे थे। इस किताब में सलमान खुर्शीद और मृत्युंजय यादव ने पिछले साल के लोकसभा चुनावों से पहले कांग्रेस के पुनरुद्धार के प्रयासों पर प्रकाश डाला है। उन्होंने बताया है कि कैसे कांग्रेस ने भारत जोड़ो यात्रा और विपक्षी दलों के साथ मिलकर इंडिया ब्लॉक का गठन किया जिससे भारत में लोकतंत्र को बचाने की कोशिश की गई। उन्होंने कहा कि इंडिया ब्लॉक से जुड़े कुछ मुद्दे हैं जिनका समाधान किया जाना चाहिए।
वहीं, इसी ऐन मौके पर चिदंबरम ने भी इंडिया गठबंधन को आइना दिखा दिया और साफ-साफ कह दिया कि ऐसा नहीं लगता कि इंडिया गठबंधन अब भी पूरी तरह से एकजुट है। यह लगभग बिखरता हुआ दिखाई देता है और इसका भविष्य उज्ज्वल नहीं दिखता। उन्होंने यहां तक कह दिया कि इंडिया ब्लॉक का भविष्य उतना उज्जवल नहीं है जैसा कि मृत्युंजय यादव ने कहा। उन्हें लगता है कि गठबंधन अभी भी बरकरार है लेकिन मुझे यकीन नहीं है। इसका उत्तर केवल सलमान खुर्शीद ही दे सकते हैं, क्योंकि वे इंडिया ब्लॉक के लिए वार्ता करने वाली टीम का हिस्सा थे। ऐसे में अगर गठबंधन पूरी तरह बरकरार रहता है तो मुझे बहुत खुशी होगी लेकिन आए दिन उजागर होने वाली कमजोरियों से पता चलता है कि गठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं है। हालांकि उन्होंने यह भी उम्मीद जताई कि गठबंधन अभी भी बच सकता है। अभी भी समय है। वहीं, चतुर सियासी खिलाड़ी रहे चिदंबरम ने आखिरी में यह उम्मीद भी जता दी कि इंडिया गठबंधन को अब भी जोड़ा जा सकता है। अगर समय रहते इस पर काम हुआ तो कुछ हो सकता है।
समझा जा रहा है कि यह राहुल गाँधी की नेतृत्व क्षमता पर तो सवाल है ही, कांग्रेस के सहयोगी दलों के नेताओं की निष्ठा पर उससे भी बड़ा सवाल पैदा कर जाता है। इसलिए यह शब्द सुनकर शायद ही कांग्रेस आलाकमान और इस गठबंधन में मौजूद पार्टियों को अच्छा लगेगा। बता दें कि इससे पहले भी चिदंबरम ने एक अंग्रेजी दैनिक में अपने एक लेख में पीएम मोदी के नेतृत्व को सराहा और कहा कि सरकार ने सीमित सैन्य कार्रवाई का रास्ता चुनकर एक बड़ा युद्ध टाल दिया। भारत ने जो कार्रवाई की वो बेहद सीमित और सुनियोजित थी, जिसका उद्देश्य आतंकी संगठनों की बुनियादी ढांचे को नष्ट करना था। वहीं उन्होंने इस कार्रवाई को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का समझदारी भरा कदम बताया है।
यही वजह है कि उनके इस परिवर्तित दृष्टिकोण ने कांग्रेस आलाकमान को सकते में डाल दिया है। कहने का तात्पर्य यह कि चिदंबरम ने महज एक सप्ताह के अंदर दूसरी बार कांग्रेस की कोर टीम को अपने बयानों से बेचैन कर दिया है। लिहाजा राजनीतिक जानकार उनके बयान को बड़ी ही करीबी से देख रहे हैं क्योंकि इससे पहले कांग्रेस के बड़े नेताओं में शशि थरूर ऐसा करते हुए पाए गए हैं जो लंबे समय से पीएम मोदी के अंदाज के मुरीद रहे हैं। इसलिए अब देखना यह होगा कि चिदंबरम के बयानों के मायने क्या निकलकर आते हैं! हालाँकि फ़िलहाल यह कहना जल्दबाजी होगी कि क्योंकि चिदंबरम कई बार अपने बयानों से चौंकाते रहे हैं। इस बार भी उन्होंने ऐसा ही किया है| ऐसा करके वो शायद अपने बेटे के लिए कोई बड़ी जिम्मेदारी चाहते हों। तमिलनाडू भाजपा को अभी ऐसे ही नेताओं के नेटवर्क की जरूरत भी है ताकि दक्षिण भारत में भाजपा की पैर जमे!
पी चिदंबरम ने भाजपा को लेकर भी विपक्षी गठबंधन को चेतावनी दी और साफगोई पूर्वक कहा कि विपक्षी गठबंधन एक दुर्जेय मशीनरी के खिलाफ लड़ रहा है, जिसे सभी मोर्चों पर लड़ा जाना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘मेरे अनुभव और इतिहास के मेरे अध्ययन में, भाजपा जितनी मजबूत संगठित कोई राजनीतिक पार्टी नहीं रही है। यह सिर्फ एक पार्टी नहीं, बल्कि एक मशीनरी की तरह है, और इस मशीन के पीछे एक और मशीन है जो चुनाव आयोग से लेकर देश के सबसे निचले पुलिस स्टेशन तक को नियंत्रित करती है और कभी-कभी उन पर कब्जा करने में सक्षम है। यह एक दुर्जेय मशीनरी है।’
केंद्रीय मंत्री चिदंबरम ने कहा कि चुनाव परिणामों ने दिखाया है कि कोई भी भारत में चुनावों को कमजोर नहीं कर सकता जो अभी भी एक चुनावी लोकतंत्र है। आप भारत में चुनावों में हस्तक्षेप कर सकते हैं। आप उनमें छेड़छाड़ कर सकते हैं, लेकिन आप चुनावों से बच नहीं सकते। आप ऐसे चुनाव नहीं कर सकते जहां सत्ताधारी पार्टी 98 फीसदी वोट ले जाए। भारत में ऐसा संभव नहीं है।इसलिए कांग्रेस नेता चिदंबरम ने चेताया कि अगर 2029 का आम चुनाव भाजपा के पक्ष में निर्णायक रूप से चला गया तो फिर शायद लोकतंत्र को बचाना बहुत मुश्किल हो जाएगा। इसलिए 2029 के चुनाव महत्वपूर्ण हैं और हमें पूर्ण लोकतंत्र में वापस लाना चाहिए।
वहीं दिलचस्प बात तो यह भी है कि एक अन्य कांग्रेसी दिग्गज सलमान खुर्शीद ने चिदंबरम की बात पर सहमति जताई और स्पष्ट कहा कि हमें 2029 में एक बहुत बड़ी लड़ाई के लिए तैयार रहना होगा। इस बात पर विचार करना होगा कि गठबंधन के सहयोगियों को कैसे एक साथ लाया जाए। अगर विपक्षी दलों को चुनावी रुझानों में बड़ा उलटफेर करना है, तो उन्हें बड़े पैमाने पर सोचना होगा। केवल यह सोचने से बात नहीं बनेगी कि कौनसी पार्टी कितनी सीटों पर लड़ेगी और नतीजे आने के बाद क्या होगा। अगर हम ऐसा करते हैं तो हम देश में चुनावी रुझानों में बड़ा उलटफेर करने से चूक जाएंगे।
भाजपा के लिए यह शुभ घड़ी है कि अब विपक्षी नेता ही उसकी रणनीति को सराह रहे हैं। ऐसे में पार्टी की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। अब तो उसके नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन से ही पता चलेगा कि आत्ममुग्ध भाजपा का भविष्य का दांव-प्रतिदाव कैसा और कितना सार्थक होगा। शायद इसलिए कद्दावर कांग्रेसी नेता पी. चिदंबरम और शशि थरूर की परिवर्तित सियासी निष्ठा से भाजपा के अजेय होने की चर्चा जोर पकड़ चुकी है। ऑपरेशन सिंदूर की सफलता से उसकी जनसाख भी बढ़ी है। मिशन 2029 में वह अभी से जुट गई है जबकि बिहार विधानसभा चुनाव 2025, पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2026 और उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव 2027 से यह स्पष्ट हो जाएगा कि कथित इंडिया गठबंधन भाजपा नीत एनडीए को टक्कर दे पाएगा या नहीं!