कमलेश पांडेय
केंद्र में विगत तीन आम-चुनावों से सत्तारूढ़ नरेंद्र मोदी सरकार ने अब तक जो कई महत्वपूर्ण सरकारी परिसरों और संस्थानों के नाम बदले दिए हैं, उनका एकमात्र मकसद प्रशासनिक और सांस्कृतिक सोच-समझ में बदलाव लाना है। साथ ही उन सभी को और अधिक जनहितैषी बनाना है। चूंकि शब्दों के मंत्रमय असर और व्यवहार से हम भारतीय वाकिफ हैं, इसलिए प्रधानमंत्री मोदी के इस फैसले की सर्वत्र सराहना हो रही है। खासकर आरएसएस-भाजपा के लोग तो इसे सांस्कृतिक सपनों के सच होने जैसा मान रहे हैं। इसलिए कहा जा सकता है कि केंद्रीय-सूबाई सत्ता में सनातनी संस्कार-व्यवहार प्रतिरोपित करने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार का देश-देशवासी सदैव आभारी रहेगा।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक, अब तक हुआ प्रमुख नाम परिवर्तन इस प्रकार हैं:- पहला, प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) का नाम बदलकर अब “सेवा तीर्थ” कर दिया गया है। इसमें पीएमओ के साथ-साथ मंत्रिमंडल सचिवालय, राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय और इंडिया हाउस शामिल हैं। यह बदलाव सत्ता से सेवा की ओर शासन की प्राथमिकताओं को दर्शाता है।
दूसरा, देश के सभी राजभवनों के नाम बदलकर “लोकभवन” कर दिए गए हैं। इसके पीछे औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति का मकसद बताया गया है। इसके साथ ही उपराज्यपालों के कार्यालय को “लोक निवास” कहा जाएगा।
तीसरा, केंद्रीय सचिवालय का नाम बदलकर “कर्तव्य भवन” किया गया है जो शासन की जिम्मेदारी और कर्तव्य केंद्रित सोच को दर्शाता है।
इसके अलावा, पहले भी “राजपथ” का नाम बदलकर “कर्तव्य पथ” और प्रधानमंत्री के आधिकारिक आवास पथ, सेवन रेसकोर्स रोड का नाम बदलकर “लोक कल्याण मार्ग” रखा गया। यह सारे नाम परिवर्तन प्रशासनिक ढांचे में सेवा और उत्तरदायित्व की भावना को प्रमुखता देने के लिए किए गए हैं, न कि केवल संरचनात्मक सुधार के रूप में।
इसी कड़ी में सबसे बड़ा बदलाव तो यह है कि अब रिपब्लिक ऑफ इंडिया को रिपब्लिक ऑफ भारत/भारत गणतंत्र कहा व लिखा जाने लगे। स्पष्ट है कि शहरों का नाम बदलने की जो शुरुआत मुगलकाल में शुरू हुई थी, और ब्रिटिश काल में भी जारी रही, उस विदेशी संस्कृति को बढ़ावा देने वाली सोच की देशी काट और कर्तव्यनिष्ठ पालन अब दिखाई दे रहा है जो सराहनीय है। इससे भारत माता के अरमान पूरे होने के आसार बढ़े हैं।
दरअसल, आरएसएस पृष्ठभूमि से आने वाले कौशांबी पार्षद मनोज गोयल का कहना है कि इन अहम बदलावों के पीछे सरकारी तर्क और उद्देश्य यह है कि सेवातीर्थ, लोकभवन, कर्तव्य भवन, लोककल्याण मार्ग, कर्तव्य पथ जैसे नाम से पुराने नाम बदले जाएं ताकि वे शासन और प्रशासन की औपनिवेशिक और शाही छवि से दूर होकर लोकतंत्र और सेवा की भावना को प्रतिबिंबित करें।
यही वजह है कि लोकभवन नाम राजभवन के स्थान पर अपनाया गया है क्योंकि राजभवन के “राज” शब्द में शासन या राज करने की औपनिवेशिक मानसिकता झलकती है। वहीं, लोकभवन का अर्थ “जनता का भवन” है जो यह संदेश देता है कि अब सत्ता राजा या गवर्नर के लिए नहीं बल्कि पूरी जनता के लिए है। यह नाम यह दर्शाता है कि ये इमारतें जनता के और ज्यादा करीब आएंगी और प्रशासन जनता की सेवा के लिए प्रतिबद्ध होगा।
वहीं, वैश्विक कूटनीति की धुरी बन चुके प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) का नया नाम “सेवातीर्थ” रखा गया है जिसका अर्थ है “सेवा का पवित्र स्थान”। यह नाम इस बात को दर्शाता है कि यह स्थान सत्ता के प्रदर्शन का नहीं, बल्कि भारत समेत दुनिया की जनसेवा और समर्पण का प्रतीक होगा। वहीं, केंद्रीय सचिवालय को “कर्तव्य भवन” नाम दिया गया है ताकि यह दिखाया जा सके कि सरकारी पद और प्रशासनिक काम जनता की सेवा का कर्तव्य है, न कि सम्मान या सत्ता का साधन।
समझा जाता है कि इसके पीछे सरकार का उद्देश्य नामों के माध्यम से सोच और दृष्टिकोण में बदलाव लाना है, जहां शक्ति और सत्ता से अधिक जिम्मेदारी और सेवा की प्राथमिकता हो। यह बदलाव प्रशासन को लोगों के ज्यादा करीब लाने और लोकतंत्र की भावना को मजबूती देने के लिए भी किया गया है। साथ ही, वेबसाइट, सरकारी दस्तावेजों, साइनबोर्ड आदि में भी ये नए नाम लागू किए जाएंगे ताकि संदेश व्यापक रूप से पहुंच सके।
बहरहाल, इन नए नामों का कानूनी और प्रशासनिक प्रभाव यह होगा कि इन नामों को आधिकारिक रूप से मान्यता देने के लिए सरकारी गजट में प्रकाशन जरूरी होगा। जहां तक इनके कानूनी प्रभाव की बात है तो इन नामों में यह बदलाव तब तक पूर्ण और वैध नहीं माना जाएगा जब तक इसे भारत सरकार के राजपत्र में प्रकाशित नहीं किया जाता। ऐसा इसलिए कि गजट नोटिफिकेशन एक वैधानिक दस्तावेज होता है, जो नाम परिवर्तन को सभी सरकारी और गैर-सरकारी संस्थानों के लिए बाध्यकारी बनाता है। इससे सरकारी दस्तावेज़, आदेश, और डिजिटल रजिस्टर में नए नामों का उपयोग शुरू होगा और पुरानी नामावली समाप्त मानी जाएगी।
जहां तक इन नामों के प्रशासनिक प्रभाव की बात है तो इन नए नामों के अनुसार सभी संबंधित सरकारी फॉर्म, वेबसाइट, नोटिस बोर्ड, और प्रशासनिक दस्तावेजों को अपडेट करना होगा। इससे प्रशासन में एक नई सेवा और कर्तव्य की भावना को बढ़ावा मिलेगा। कर्मचारी और अधिकारी नए नामों के अनुरूप अपनी पदस्थापना और कार्यप्रणाली को धयान में रखेंगे।
जहां तक इन नामों के सार्वजनिक और संवैधानिक पहचान की बात है तो ये नाम बदलाव शासन को अधिक लोकतांत्रिक और सेवा-केंद्रित बनाते हैं। इससे नियम और प्रक्रियाओं में पारदर्शिता बढ़ेगी और नागरिकों के साथ सरकारी संस्थाओं का रिश्ता मजबूत होगा। इस प्रकार, नामों के आधिकारिक और कानूनी रूप से बदले जाने के बाद प्रशासनिक-प्रक्रियाओं में आवश्यक संशोधन किए जाएंगे और सभी सरकारी संस्थान इन नए नामों को प्राथमिकता से अपनाएंगे। यह बदलाव शासन व्यवस्था के दृष्टिकोण में एक प्रतीकात्मक और वास्तविक परिवर्तन होगा जिसका प्रभाव रोजमर्रा के सरकारी संचालन और नीति निर्माण पर भी पड़ेगा।
चूंकि शब्दों का प्रभाव हमारे सोचने और अनुभव करने के तरीके को भी बदल देता है। इसलिए इन बदलावों को ऐतिहासिक कदम कहना ज्यादा तर्कसंगत होगा।क्योंकि सकारात्मक शब्द हमारी सोच को सकारात्मक दिशा देते हैं और जीवन में सफलता और खुशहाली लाने में मदद करते हैं। इसलिए शब्दों का संयोजन बुद्धिमत्ता और विवेक से करना चाहिए, क्योंकि वे मनोस्थिति, आत्मविश्वास और भविष्य को आकार देने में सक्षम होते हैं। मोदी प्रशासन ने यही किया है, जिसके लिए वह बधाई की पात्र है।
कमलेश पांडेय