माताओं के बढ़ते शैक्षिक स्तर में छिपा बच्चों का भविष्य


अमरपाल सिंह वर्मा

शिक्षा के क्षेत्र में भारत आगे बढ़ रहा है। देश में शिक्षा केवल एक अधिकार नहीं बल्कि समग्र विकास की कुंजी बन गया है। एक समय में जहां शिक्षा के क्षेत्र में पिछडऩे के कारणों का विश्लेषण होता था, वहीं अब हर कोई शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढक़र अपने उज्ज्वल भविष्य की नींव रखने को आतुर है। देश में अब महिलाओं की शिक्षा महत्वपूर्ण साबित हो रही है, इनमें भी विशेषकर माताओं की शिक्षा एक सशक्त समाज की नींव रखने में मददगार साबित हो रही है। हाल ही में जारी वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट (एएसईआर) 2024 के अनुसार ग्रामीण भारत में माताओं की शिक्षा का स्तर लगातार बढ़ रहा है। वर्ष 2016 में 5 से 16 वर्ष की आयु के बच्चों की 46.6 प्रतिशत माताएं ऐसी थीं, जिन्होंने स्कूल का मुंह तक नहीं देखा था जबकि 2024 में यह संख्या घटकर 29.4 प्रतिशत रह गई है। इससे पता चलता है कि पढ़ी-लिखी माताओं की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हो रही है।

यह रिपोर्ट एक गैर सरकारी संगठन ने जारी की है और यह वर्ष 2024 में 605 ग्रामीण जिलों के 17 हजार 997 गांवों में कराए गए सर्वेक्षण पर आधारित है। यह रिपोर्ट एक नई उम्मीद जगाती है क्योंकि शिक्षा केवल व्यक्ति का विकास नहीं करती बल्कि पूरे परिवार और समाज की प्रगति का मार्ग प्रशस्त करती है। जब कोई मां शिक्षित होती है तो वह अपने बच्चों की शिक्षा को लेकर अधिक जागरूक होती है और उन्हें बेहतर अवसर उपलब्ध कराने का प्रयास करती है। विभिन्न शोध एवं अध्ययनों के नतीजे बताते हैं कि शिक्षित माताओं के बच्चे स्कूल में बेहतर प्रदर्शन करते हैं और उनकी शिक्षा जारी निरंतर रहने की संभावना अधिक होती है। इस प्रकार एक शिक्षित मां अपनी नई पीढ़ी के उज्ज्वल भविष्य की नींव रखती है।

हमारे देश, खासकर गांवों में शिक्षा का अभाव अनेक समस्याओं का कारण बना है। कृषि में व्यस्तता, आजीविका के लिए मजदूरी, लड़कियों की शिक्षा के प्रति रूढि़वादी विचार, नजदीकी स्थलों पर स्कूलों का अभाव जैसे कई कारण महिलाओं की अशिक्षा के लिए जिम्मेदार रहे हैं। अशिक्षा के कारण महिलाओं को अनेक सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। अशिक्षित माताएं न केवल अपने अधिकारों से अनभिज्ञ रहती हैं बल्कि वे स्वास्थ्य, पोषण और परिवार नियोजन से संबंधित आवश्यक निर्णय भी नहीं ले पातीं। शिक्षा की कमी से वे आर्थिक रूप से आत्म निर्भर नहीं बन पातीं और सामाजिक कुरीतियों का शिकार बनती हैं। महिलाओं के पिछडऩे का बच्चों की शिक्षा पर  प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अशिक्षित माताएं अपने बच्चों की पढ़ाई को उतनी प्राथमिकता नहीं दे पातीं जिससे बच्चों का विद्यालय छोडऩे की संभावना अधिक होती है। कई बार वे अपने बच्चों को घरेलू कामों या मजदूरी में लगाने को मजबूर होती देखी गई हैं जिससे उनका बचपन शिक्षा के अभाव में गुजर जाता है।

सरकार द्वारा शुरू किए गए सर्व शिक्षा अभियान (अब समग्र शिक्षा अभियान) और समाज में बढ़ती जागरूकता के कारण ग्रामीण महिलाओं की शिक्षा में तेजी आई है। 2016 में जहां केवल 9.2 प्रतिशत माताएं कक्षा 10 से आगे पढ़ी थीं, वहीं 2024 में यह संख्या बढक़र 19.5 प्रतिशत हो गई है। यह बदलाव केवल आंकड़ों तक सीमित नहीं है बल्कि यह एक सामाजिक परिवर्तन का भी प्रमाण है।

केरल इस बदलाव में सबसे आगे है। 2016 में जहां 40 प्रतिशत माताएं कक्षा 10 से आगे पढ़ी थीं वहीं 2024 में यह संख्या 69.6 प्रतिशत हो गई है। हिमाचल प्रदेश में भी यह संख्या 30.7 प्रतिशत से बढक़र 52.4 प्रतिशत हो गई है। हरियाणा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में भी 10 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि देखी गई है। हालांकि, मध्यप्रदेश को अभी लंबा रास्ता तय करना है। 2016 में यहां केवल 3.6 प्रतिशत माताएं कक्षा 10 से आगे पढ़ी थीं जो 2024 में बढक़र 9.7 प्रतिशत ही हुईं हैं। यह वृद्धि सकारात्मक है, लेकिन अन्य राज्यों की तुलना में अभी भी बहुत कुछ करने की जरूरत है।

देश में न केवल माताओं बल्कि पिताओं की शिक्षा का स्तर भी बढ़ा है। 2016 में जहां केवल 17.4 प्रतिशत पिता कक्षा 10 से आगे पढ़े थे, वहीं 2024 में यह आंकड़ा बढक़र 25 प्रतिशत हो गया है। हालांकि माताओं की शिक्षा में हुई प्रगति की तुलना में यह वृद्धि धीमी रही है लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि माताओं और पिताओं की शिक्षा के बीच का अंतर कम हो रहा है। 2016 में यह अंतर 8 प्रतिशत था, जो 2024 में घटकर 5 प्रतिशत रह गया है।

जब माताएं शिक्षित होती हैं तो वे केवल अपने जीवन को नहीं बदलतीं बल्कि पूरे समाज को एक नई दिशा प्रदान करती हैं। शिक्षित माताएं न केवल अपने बच्चों की शिक्षा में योगदान देती हैं बल्कि वे अपने परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने में भी सक्षम होती हैं। उनमेंं स्वास्थ्य, टीकाकरण और पोषण के प्रति जागरूकता आती है जिससे उनके परिवार के सदस्यों का संपूर्ण विकास संभव होता है।

शिक्षा का प्रभाव केवल एक पीढ़ी तक सीमित नहीं रहता। यह एक सतत् प्रक्रिया है जो आने वाली पीढिय़ों को भी प्रभावित करती है। यदि आज की माताएं शिक्षित होंगी तो वे अपनी बेटियों को भी शिक्षित करेंगी जिससे भविष्य में महिला सशक्तिकरण को और बल मिलेगा। यदि बेटियां पढ़ेंगी तो न केवल समाज आगे बढ़ेगा बल्कि एक समृद्ध एवं सशक्त राष्ट्र का निर्माण भी होगा।

यह वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट एक उत्साह का संचार करती है मगर यह सिलसिला इसी प्रकार बना रहे, इसके लिए जरूरी कदम उठाने होंगे। सरकार को शिक्षा संबंधी योजनाओं को अधिक प्रभावी बनाकर विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की शिक्षा तक अधिक पहुंच सुनिश्चित करनी चाहिए। महिला साक्षरता अभियानों को बढ़ावा देना होगा। ऑनलाइन शिक्षा और डिजिटल लर्निंग प्लेटफॉर्म का अधिकाधिक उपयोग कर महिलाओं को घर बैठे शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। महिलाओं की शिक्षा पूरे परिवार और समाज के लिए क्यों आवश्यक है, समाज में यह धारणा मजबूत की जानी चाहिए। आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों की महिलाओं को छात्रवृत्ति योजनाओं को और सार्थक और प्रभावकारी बनाया जाना चाहिए। महिलाओं के लिए जितनी औपचारिक शिक्षा जरूरी है, उतना ही व्यावसायिक शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण भी आवश्यक है। इससे उन्हें आत्मनिर्भर बनने मेंं मदद मिलेगी।

अमरपाल सिंह वर्मा

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