कमलेश पांडेय
बिहार भाजपा विधायक दल ने अपने उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी को पुनः विधायक दल का नेता चुन लिया है जबकि दूसरे उपमुख्यमंत्री रहे विजय सिन्हा को भी उपनेता चुना गया है। इससे स्पष्ट है कि बिहार भाजपा में गुजरात के पूर्व राज्यपाल कैलाशपति मिश्रा, और पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी के बाद सम्राट चौधरी बिहार भाजपा के तीसरे बड़े नेता के रूप में स्थापित हो चुके हैं लेकिन अपनी सियासी सूझबूझ और कुशल रणनीति से भाजपा की राजनीति में वो लम्बे रेस के घोड़े साबित होंगे, यह बात मैं अपने पेशेवर अनुभव से कह सकता हूँ।
दरअसल, सम्राट चौधरी बिना लाग-लपेट के अपनी बातें कहने और खुद से जुड़े लोगों का सदैव ख्याल रखने वाले नेता हैं। ऐसा इसलिए कि तारापुर से विधायक बनने से पहले वह परबत्ता के विधायक और मंत्री रह चुके हैं। वहीं, जब वह एमएलसी बने तो न केवल परबत्ता बल्कि तारापुर के लोगों से भी जुड़े रहे। यह कोई मामूली बात नहीं है। उन्हें बिहार भाजपा की मूल राजनीतिक समझ है और इसी के अनुरूप उन्होंने अपना सियासी गोल भी फिक्स कर रखा है जो बात समय के साथ आपको पता चलती जाएगी।
जानकार बताते हैं कि भाजपा में सम्राट चौधरी की सफलता की मूल वजहें उनके विविधता भरे राजनीतिक अनुभव, सियासी रूप से प्रासंगिक जातिगत समीकरण, राजनीतिक व सामाजिक संगठन कौशल और भाजपा की मौजूदा रणनीतिक जरूरतों से जुड़ी हैं जिसका संकेत मैं अपने आलेख व सोशल मीडिया पोस्ट में पिछले दशक में ही दे चुका हूं। यही मेरा पेशेवर दायित्व भी था ताकि भाजपा मजबूत बने।
पहला, विविधता भरा राजनीतिक अनुभव और इंद्रधनुषी रणनीति:
सम्राट चौधरी 25 वर्षों से विभिन्न दलों (RJD, JDU और भाजपा) में सक्रिय रहे हैं और कई बार विधायक तथा मंत्री बन चुके हैं। उनका अनुभव उन्हें राज्य के नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच विश्वसनीय बनाता है।
दूसरा, ओबीसी और सामाजिक समीकरण:
सम्राट चौधरी कोइरी (कुशवाहा) समुदाय से आते हैं, जिसकी बिहार के ओबीसी मतदाताओं में अहम भूमिका है। भाजपा ने उन्हें इस समुदाय की मजबूत पकड़ और “लव-कुश” समीकरण को भुनाने के लिए आगे रखा है ताकि ओबीसी वोटों को पार्टी के पक्ष में मजबूत किया जा सके।
तीसरा, संगठनात्मक और विचारधारा से सामंजस्य:
हालांकि पार्टी का कोर वोटर वैचारिक पृष्ठभूमि और अनुशासन पसंद करता है, सम्राट चौधरी ने सेवा, संगठन, और संकल्प जैसे भाजपा के तीन स्तंभों को अपनाकर संगठन के भीतर अपनी पकड़ बनाई है।
चतुर्थ, आक्रामक नेतृत्व और संचार कौशल:
सम्राट चौधरी के भाषण देने की क्षमता और आक्रामक राजनीतिक शैली ने उन्हें नेतृत्वकर्ता के रूप में चर्चित किया है। वे हर मंच पर भाजपा की राष्ट्रवादी विचारधारा और विकास की प्रतिबद्धता स्पष्ट करते हैं।
पंचम, भाजपा की रणनीतिक जरूरत:
जब नीतीश कुमार विपक्ष के साथ चले गए, भाजपा को ओबीसी समाज में नेतृत्व की तलाश थी। सम्राट चौधरी के आने से भाजपा को कुशवाहा समाज और लव-कुश समीकरण में सेंध लगाने का साधन मिला।
छठा, व्यक्तिगत चुनौतियाँ और सार्वजनिक विवाद: वैसे तो उनकी राजनीति पर जातिवाद और अवसरवाद के आरोप भी लगे हैं और कुछ वर्ग उन्हें भाजपा की वैचारिक मुख्यधारा में बाहरी मानते हैं। लेकिन उनके लोकप्रिय व्यवहार के सामने ये बातें बेहद ओछी प्रतीत होती हैं।
सम्राट चौधरी की सुलझी हुईं राजनीतिक रणनीतियाँ
सम्राट चौधरी की सियासी सफलता के पीछे उनका लंबा राजनीतिक अनुभव, ओबीसी समाज में गहरी पकड़, अद्भुत संगठनात्मक क्षमता, और भाजपा की समसामयिक रणनीतिक जरूरतें प्रमुख हैं। खास बात यह कि सम्राट चौधरी की राजनीतिक रणनीतियाँ और संगठन कौशल मुख्य रूप से उनकी जातीय राजनीति, संगठनात्मक नेतृत्व और भाजपा के भीतर सामंजस्य बनाने की क्षमता पर केंद्रित हैं।
पहला, सम्राट चौधरी की राजनीतिक रणनीतियाँ:
सम्राट चौधरी ने बिहार की जातीय राजनीति को समझते हुए ओबीसी, विशेषकर कुशवाहा (कोइरी) समुदाय को भाजपा की ओर आकर्षित किया है। यह एक संगठित जातीय वोट बैंक बनाने की रणनीति है। यही नहीं, उन्होंने “लव-कुश” समीकरण को भाजपा के लिए मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई है, जो कुर्मी-कोइरी समुदायों का गठजोड़ है। वे भाजपा की राष्ट्रवादी विचारधारा को स्थानीय जनता तक पहुंचाने तथा विकास और संगठन को सबल बनाने पर जोर देते हैं। आक्रामक राजनीतिक बोलचाल और चुनावी माहौल में सतत सक्रियता उनकी प्रमुख रणनीतियों में शामिल है।
दूसरा, व्यक्तिगत संगठन कौशल:
उन्होंने पार्टी संगठन को पटरी पर लाने और स्थानीय नेतृत्वों को जोड़ने में अपनी कुशलता दिखाई है। संवाद क्षमता, टीम समन्वय और स्थानीय पार्टी कार्यकर्ताओं से मजबूत संपर्क उनकी संगठनात्मक ताकत हैं। पार्टी के विभिन्न घटक दलों के बीच तालमेल और गठबंधन में उनका महत्वपूर्ण योगदान है। संगठनात्मक राजनीति में वे सौदेबाजी, गठबंधन और स्थिति निर्माण के माहिर हैं जो पार्टी को राज्य स्तर पर मजबूती प्रदान करता है।
तीसरा, सम्राट चौधरी का जातीय समीकरण:
सम्राट चौधरी का जातीय समीकरण उनकी पार्टी की विचारधारा को जोड़ने वाली है, जबकि संगठन कौशल कई स्तरों पर पार्टी को सामंजस्य और मजबूती देने वाला है। उनकी ये क्षमताएं उन्हें बिहार और भाजपा की राजनीति में एक प्रभावशाली नेतृत्व चेहरा बनाती हैं।
चतुर्थ, जातीय समीकरण का निर्माण और मजबूत करना:
उन्होंने विशेष रूप से कुशवाहा (कोइरी) ओबीसी समुदाय को भाजपा की ओर आकर्षित करने पर फोकस किया है।उदाहरण: “लव-कुश” समीकरण को भाजपा की चुनावी रणनीति में शामिल करना, जो कुर्मी और कोइरी जातियों के वोट बैंक को जोड़ता है, जिससे पार्टी को बिहार में ओबीसी मतदाताओं का समर्थन मिलता है।
पंचम, संगठन को मजबूती देना:
पार्टी स्थानीय स्तर पर मजबूत संगठन बनाना और कार्यकर्ताओं से सीधे जुड़ना उनकी रणनीतियों का हिस्सा है। उदाहरण: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में भाजपा की क्षेत्रों में संगठन मजबूत कर कई सीटों पर सफलता पाना।
छठा, आक्रामक और प्रभावी संचार:
वे अपने भाषणों और मीडिया में अपने विचारों को स्पष्ट और जोरदार तरीके से प्रस्तुत करते हैं, जिससे उनकी लोकप्रियता बढ़ती है।उदाहरण: विपक्ष पर सीधे आक्रमण करते हुए पार्टी की विचारधारा को जन-जन तक पहुँचाना।
सातवां, गठबंधन और दलगत समन्वय:
भाजपा और उसके सहयोगी दलों के बीच तालमेल बनाए रखने एवं गठबंधन को सशक्त करने में भूमिका निभाना। उदाहरण: एनडीए गठबंधन में ओबीसी वर्ग के प्रत्याशियों को उचित प्रतिनिधित्व दिलाना और गठबंधन मजबूत करना।
आठवां, क्षेत्रीय विकास और लोकसंपर्क:
अपने निर्वाचन क्षेत्र में विकास कार्यों को प्राथमिकता देना और जनता के साथ संवाद बनाए रखना। उदाहरण: तारापुर, मुँगेर विधानसभा क्षेत्र में विकास कार्यों पर फोकस करके वोटरों का विश्वास जीतना।
निःसन्देह, सम्राट चौधरी की रणनीतियाँ जातीय समीकरण मजबूत करने, संगठनात्मक सुदृढ़ता, आक्रामक संचार, गठबंधन निर्माण और क्षेत्रीय विकास पर आधारित हैं। इन कदमों के उदाहरण बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में भाजपा की जीत और उनकी व्यक्तिगत सफलता में स्पष्ट नजर आते हैं। जहां तक सम्राट चौधरी की ओबीसी आधारित वोट बैंक की विश्लेषण की बात है तो यह बिहार की जातीय राजनीति की संदर्भ में बहुत ही महत्वपूर्ण है।
वैसे तो वे कुशवाहा (कोइरी) समुदाय से हैं, जो बिहार में ओबीसी समुदाय का एक प्रभावशाली हिस्सा है। ओबीसी वोट बैंक की जनसांख्यिकी भी इस नजरिए से अहम है। क्योंकि कुशवाहा समाज बिहार की कुल आबादी का लगभग 6-7 प्रतिशत है, जो यादवों के बाद दूसरा सबसे बड़ा ओबीसी वोटर समूह माना जाता है। यह समुदाय पारंपरिक रूप से जनता दल यूनाइटेड (जदयू) से जुड़ा रहा है, लेकिन पिछले चुनावों में इस वोट बैंक का झुकाव भाजपा सहित अन्य पार्टियों की ओर भी देखा गया है।
कुशवाहा समाज पर सम्राट चौधरी का प्रभाव और प्रासंगिक भूमिका
वास्तव में, सम्राट चौधरी को भाजपा के ओबीसी चेहरों में एक मजबूत नेता माना जाता है जिनका प्रभाव कुशवाहा समाज के साथ-साथ कुछ अन्य ओबीसी समूहों में भी है। उन्होंने अपनी रणनीतिक कार्यकुशलता से कभी कुशवाहा समाज के एकछत्र नेता रहे उपेंद्र कुशवाहा को मात दी है, जो उनके गठबंधन सहयोगी भी हैं। मसलन, जब उपेंद्र कुशवाहा ने भाजपा को भाव न दी तो भाजपा ने कुशवाहा और अन्य ओबीसी वोटों को साधने के लिए सम्राट चौधरी को प्रमुखता दी है, ताकि “लव-कुश” समीकरण (लोस कुर्मी और कुशवाहा समुदाय) को पार्टी समर्थक बनाया जा सके।
इस प्रकार भाजपा ने सम्राट चौधरी के नेतृत्व में ओबीसी समुदाय में पकड़ मजबूत करने के लिए 23 सीटों पर कोईरी उम्मीदवार खड़े किए हैं, जिनमें से अधिकांश ने जीत दर्ज की है। वहीं, महागठबंधन ने भी इसी समुदाय के लिए 13 कोईरी उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं, जिससे ओबीसी वोट बैंक के लिए दोनों गठबंधनों के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिली है। लेकिन इस रेस में सम्राट चौधरी ने बाजी मारी है, क्योंकि उनकी पार्टी के कोर मध्यवर्गीय समर्थकों से भिन्न व्यक्तिगत शैली और जाति-आधारित राजनीति ने उन्हें ओबीसी वोट बैंक के लिए उपयोगी बनाया है, हालांकि पार्टी के कुछ पारंपरिक समर्थक उन्हें पूरी तरह स्वीकार नहीं करते।
वहीं, चुनाव परिणाम और हालिया रुझान से भी इसी बात की तस्दीक हुई। क्योंकि हाल के विधानसभा चुनावों में सम्राट चौधरी ने अपने क्षेत्र में बड़ी जीत दर्ज की है, जिससे यह साबित होता है कि उनके ओबीसी वोट बैंक में अच्छी पकड़ है। हालांकि कुशवाहा वोट अब पूरी तरह किसी एक दल के साथ नहीं है और दो प्रमुख गठबंधनों के बीच बँटा हुआ है। इस प्रकार, सम्राट चौधरी की ओबीसी वोट बैंक में सफलता उनके कुशवाहा जातीय आधार, संगठनात्मक भूमिका, और भाजपा की रणनीतिक फोकस का प्रतिफल है, जो बिहार की जातीय राजनीति में एक निर्णायक कारक है।
भाजपा के भीतर सम्राट चौधरी का बढ़ता असर
यह ठीक है कि सम्राट चौधरी का भाजपा के भीतर वर्तमान में मध्यम स्तर का असर है, लेकिन अब उन्होंने इसमें भी इजाफा कर लिया है। विधानसभा में भाजपा विधायक दल द्वारा उन्हें पुनः नेता चुना जाना इसी बात का द्योतक है।उनकी भविष्य की राजनीतिक संभावनाएं अच्छे संगठनात्मक कौशल, ओबीसी वोट बैंक से जुड़ी पकड़ और भाजपा की रणनीतिक आवश्यकताओं के आधार पर महत्वपूर्ण हैं। सम्राट चौधरी पार्टी के ओबीसी वर्ग का प्रमुख चेहरा हैं, विशेषकर कुशवाहा (कोइरी) समुदाय में उनकी पकड़ मजबूत है, जो बिहार में भाजपा का एक महत्वपूर्ण वोट बैंक है। हालांकि वे पार्टी के मुख्य संगठनिक नेतृत्व या शीर्ष पदों पर नहीं हैं, फिर भी उनकी भूमिका पार्टी के जातीय समीकरण संवारने में केंद्रीय है। उनकी आक्रामक राजनीतिक शैली और संगठनात्मक क्षमता ने पार्टी में उनकी स्थिति मजबूत करने में मदद की है, लेकिन पार्टी के सघन विचारधारा और संघ से जुड़ी मुख्य धारा में उनकी सीमित स्वीकार्यता भी है।
सम्राट चौधरी में छिपीं भविष्य की राजनीतिक संभावनाएँ
भाजपा के लिए सम्राट चौधरी की राजनीतिक संभावनाएं बेहतर हैं क्योंकि बिहार की जातीय राजनीति में ओबीसी वोट बैंक बढ़ाने के लिए उनकी भूमिका अहम है। भाजपा की रणनीति में “लव-कुश” समीकरण को मजबूत करने के लिए उनकी मौजूदगी जरूरी है। गठबंधन राजनीति में उनका प्रभाव सहयोगी दलों के बीच भाजपा को सामंजस्यित करने में उपयोगी हो सकता है। मोदी-शाह के नेतृत्व वाली भाजपा में जीतने की क्षमता और ओबीसी प्रतिनिधित्व के कारण उन्हें आगे के बड़े नेतृत्व पदों के लिए मौका मिल सकता है। हाल के विधानसभा चुनावों में उनकी जीत ने पार्टी के लिए उनकी उपयोगिता सिद्ध की है।
सम्राट चौधरी की संभावित सियासी चुनौतियाँ
जातीय एवं वैचारिक आधार पर पार्टी के अन्य सदस्यों से संघर्ष और स्वीकार्यता की कुछ कमी है, जिसे पूरा करने के लिए वे ततपर हैं। वहीं, भाजपा की केंद्रीय संगठनात्मक प्राथमिकता में बदलाव और नए चेहरों के उदय से उनके ऊपर भी चौतरफा दबाव बना रहेगा। लिहाजा, बिहार में गठबंधन समीकरण और राजनीतिक परिवर्तनों में अप्रत्याशित बदलाव भविष्य में उनके प्रभाव को सीमित कर सकते हैं। बावजूद इसके, सम्राट चौधरी भाजपा के भीतर एक महत्वपूर्ण ओबीसी चेहरे के रूप में उभर रहे हैं, जिनकी भविष्य की संभावनाएं उनके समुदाय के समर्थन, संगठनात्मक भूमिका और पार्टी की रणनीतिक जरूरतों पर निर्भर हैं। यदि वे अपने संगठनिक प्रभाव को और मजबूत करते हैं, तो वे बिहार में पार्टी के अगले स्तर के नेतृत्व में स्थान पा सकते हैं।
कमलेश पांडेय