शिक्षण संस्थाओं को खोलने की जल्दबाजी कहीं महंगी ना पड़ जाए ?

श्रीनिवास आर्य

आंकड़ों के हिसाब से संक्रमण की रफ्तार बेशक धीमी दिख रही हो, लेकिन कोरोना महामारी से अभी छुटकारा नहीं मिला है। वैक्सीन के लिए लंबी-लंबी कतारें लग रही हैं। फिर बच्चों के लिए तो वैक्सीन अभी आई तक नहीं। ऐसे में उन्हें स्कूल बुलाना उनकी सेहत के साथ खिलवाड़ हो सकता है। यह सही है कि हर कोई चाहता है कि स्थिति सामान्य हो और स्कूल फिर से गुलजार हों। स्कूल बंद होने के कारण कई तरह की गतिविधियां भी ठप हैं, जिनका सीधा संबंध आर्थिक व्यवस्था से है, लेकिन हालात कैसे हैं, यह भी किसी से छिपा नहीं है। पिछले दिनों हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और छत्तीसगढ़ समेत कई राज्य सरकारों ने स्कूलों को खोलने की कवायद की। कुछ राज्यों में स्कूलों ने अभिभावकों से दो-तीन बार सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करवाये। कई राज्यों में पहले 10वीं और 12वीं के बच्चों की पढ़ाई शुरू करवाई गयी, फिर कक्षा 6 से ऊपर के बच्चों को भी बुलाना शुरू हुआ। लेकिन इसी दौरान अनेक बच्चों के बीमार पड़ने की खबरें आईं और सरकारों को अपने फैसले से पीछे हटना पड़ा। हिमाचल सरकार ने फिलहाल 22 अगस्त तक स्कूलों में बच्चों को न बुलाने का फरमान जारी कर दिया है। राज्य सरकार ने तो अब बाहर से आने वालों के लिए कोरोना की नेगेटिव रिपोर्ट या वैक्सीन की दोनों डोज लगवाने का प्रमाणपत्र दिखाना भी अनिवार्य कर दिया है। इससे पहले हिमाचल प्रदेश ने अपने दरवाजे जैसे ही पर्यटकों के लिए खोले, तुरंत ही ज्यादातर पर्यटन स्थल ‘ओवरलोडेड’ हो गये। नतीजतन, संक्रमण की दर बढ़ गयी और राज्य सरकार को फिर से कड़े कदम उठाने पड़े। पर्यटकों को ‘बुलावा भेजना’ जैसी जल्दबाजी अनेक राज्यों ने स्कूल खोलने में भी दिखाई। इसके चलते अकेले हिमाचल प्रदेश में ही 150 से ज्यादा विद्यार्थी कोरोना की चपेट में आ गये। पंजाब में दो स्कूलों में 20 बच्चे ‘पॉजिटिव’ मिले। इसी तरह छत्तीसगढ़ में 47 बच्चों को कोरोना संक्रमण की पुष्टि हुई है। कर्नाटक में करीब 500 बच्चे संक्रमित मिले। इनमें ज्यादातर बच्चे 10 से 17 साल के बीच के बताये जा रहे हैं। महाराष्ट्र में तो स्थिति और भी विकट है। यहां अकेले सोलापुर में ही 600 बच्चे कोरोना पॉजिटिव पाये गये।

बच्चों में बढ़ते संक्रमण से अभिभावक बेहद चिंतित हैं। विशेषज्ञों ने पहले से ही आगाह किया है कि तीसरी लहर में सबसे अधिक बच्चे ही प्रभावित हो सकते हैं, ऐसे में स्कूलों को खोलने की जल्दबाजी समझ से परे है। दूसरी लहर के खौफनाक मंजर से अभी हम उबरे भी नहीं हैं कि बच्चों के संक्रमित होने की खबरें व्यथित करने वाली हैं। बच्चों को स्कूल बुलाने से पहले हमें कई बातों पर गौर करना होगा। मसलन, यह सुनिश्चित करना होगा कि सभी शिक्षकों एवं अन्य स्टाफ को वैक्सीन की दोनों डोज लग चुकी हों। स्कूल परिसर की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जा रहा हो और पर्याप्त दूरी पर बिठाकर पढ़ाई करवाई जा रही हो। लेकिन ये कवायदें भी तब हों जब हम वैज्ञानिक आधार पर ‘कोविड से मुक्ति’ की ओर बढ़ चले हों। कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए जारी ‘गाइडलाइंस’ को मानने में जब वयस्क ही लापरवाह नजर आते हैं, तो बच्चों के बारे में हम अंदाजा लगा सकते हैं। बच्चे तो बच्चे हैं, वे सामाजिक दूरी का ध्यान शायद ही रख पाएं। ऐसे में जरूरी है कि उनकी ऑनलाइन पढ़ाई को ही ज्यादा तार्किक और सटीक बनाने की ओर ध्यान दिया जाये। बेशक स्कूल अभिभावकों से सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करवाकर ही बच्चों को बुला रहे हों, लेकिन सहमति लेने भर से ही हमारे कर्तव्य की इतिश्री नहीं हो जाती। बच्चे देश का भविष्य हैं, भविष्य के साथ ‘खिलवाड़’ ठीक नहीं। इसलिए अभी स्कूलों को खोलने में जल्दबाजी न ही दिखाई जाये।

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