ब्लड प्रेशर की समस्या से अछूते नहीं रहे बच्चे
पुनीत उपाध्याय
बालपन का समय चिंता से मुक्त माना जाता है लेकिन आधुनिकता की दौड़ में यह तस्वीर बदल रही है। बच्चे दिल से जुड़ी बीमारियों के शुरुआती जोखिम का सामना कर रहे हैं। बचपन में उच्च रक्तचाप एक महत्वपूर्ण वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है। हाल ही में एक अध्ययन से पता चला है पिछले दो दशकों के दौरान बच्चों में हाई ब्लड प्रेशर के मामले करीब दोगुने हो चुके हैं। द लैंसेट चाइल्ड एंड अडोलेसेंट हेल्थ में प्रकाशित एक अध्ययन ने चेताया है कि बढ़ता खतरा आने वाले वर्षों में बच्चों के दिल और किडनी की बीमारियों को कहीं ज्यादा गंभीर बना सकता है। अध्ययन में बताया है कि करीब 9.2 फीसदी बच्चे मास्क्ड हाइपरटेंशष् से जूझ रहे हैं। मास्क्ड हाइपरटेंशन ऐसी स्थिति है जिसमें ब्लड प्रेशर सामान्य जांच में तो ठीक दिखता है लेकिन 24 घंटे की गई निगरानी में बढ़ा मिलता है।
अध्ययन में यह भी सामने आया है कि मोटापा बचपन में उच्च रक्तचाप का सबसे बड़ा कारण बन गया है। आंकड़ों के मुताबिक मोटापे से ग्रस्त 19 फीसदी बच्चे हाई ब्लड प्रेशर का शिकार हैं। वहीं स्वस्थ वजन वाले बच्चों में यह दर महज 2.4 फीसदी दर्ज की गई। यानी मोटापे से ग्रस्त बच्चों में हाई ब्लड प्रेशर का खतरा आठ गुणा अधिक है। इस अध्य्ययन के निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए 1 जनवरीए 2000 और 19 अप्रैल 2025 के बीच प्रकाशित जनसंख्या.आधारित अध्ययनों पर खोज की गई जो 19 वर्ष या उससे कम आयु की सामान्य बाल चिकित्सा आबादी में उच्च रक्तचाप की व्यापकता की रिपोर्ट करते हैं। प्राथमिक परिणाम बचपन में उच्च रक्तचाप की व्यापकता का आकलन थे
8.2 फीसदी बच्चे और किशोर अब प्री-हाइपरटेंशन का शिकार
अध्ययन में यह भी सामने आया है कि 8.2 फीसदी बच्चे और किशोर अब प्री.हाइपरटेंशन का शिकार हैं। गौरतलब है कि प्री.हाइपरटेंशन एक ऐसी स्थिति हैए जहां से शरीर में उच्च रक्तचाप की शुरूआत होती है। इसे स्टेज1 हाइपरटेंशन भी कहा जाता है। प्रीहाइपरटेंशन की स्थिति तब बनती है जब ब्लड प्रेशर सामान्य से तो ऊपर होता है लेकिन उस स्तर तक नहीं पहुंचा होता जिसे हाइपरटेशन माना जाए। गौरतलब है कि प्री.हाइपरटेंशन सबसे ज्यादा किशोरों में देखा गया जहां इसकी दर 11.8 फीसदी है जबकि करीब सात फीसदी छोटे बच्चों इस समस्या का शिकार हैं। अध्ययन में पाया गया कि 14 साल की उम्र के आसपास बच्चों का बीपी सबसे तेजी से बढ़ता है और यह बढ़त खास तौर पर लड़कों में ज्यादा स्पष्ट दिखती है। प्री.हाइपरटेंशन आगे चलकर आसानी से हाई ब्लड प्रेशर में बदल सकता है।
अध्ययन से पता चला है कि दुनिया में 19 वर्ष या उससे छोटे 11.4 करोड़ बच्चे उच्च रक्तचाप की समस्या से जूझ रहे हैं। अध्ययन में पाया गया कि सिर्फ डॉक्टर के क्लिनिक में बीपी मापने से कई बार गलत तस्वीर सामने आती है। उदाहरण के लिए अध्ययन में लगातार तीन बार क्लिनिक विजिट में बीपी मापने पर हाई बीपी की दर करीब 4.3 फीसदी मिली लेकिन जब घर या 24 घंटे की एम्बुलेटरी बीपी मॉनिटरिंग शामिल की गई तो यह दर बढ़कर 6.7 फीसदी हो गई, यानी बड़ी संख्या में बच्चे या तो गलत तरीके से सामान्य मान लिए जाते हैं या फिर सिर्फ क्लिनिक में घबरा कर बीपी बढ़ा हुआ दिखाते हैं। अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर इगोर रुडान का प्रेस विज्ञप्ति में कहना है कि 20 वर्षों में बच्चों में हाई ब्लड प्रेशर का दोगुना होना एक बहुत बड़ी चेतावनी है।
चीन के झेजियांग यूनिवर्सिटी और अध्ययन से जुड़ी शोधकर्ता डॉक्टर पेज सॉन्ग का कहना है कि बच्चों में हाई बीपी अब उतना विरला नहीं है जितना पहले माना जाता था। ऐसे में अब पहले से ज्यादा जरूरी है कि जिन बच्चों पर इसका खतरा मंडरा रहा हैए उनकी समय रहते पहचान हो और उन्हें रोकथाम व इलाज की बेहतर सुविधा मिले। अध्ययन से पता चला है कि दुनिया में 19 वर्ष या उससे छोटे 11.4 करोड़ बच्चे उच्च रक्तचाप की समस्या से जूझ रहे हैं। बचपन में ही इस समस्या को संभालना जरूरी है ताकि बड़े होने पर गंभीर बीमारियों का खतरा कम हो सके। विशेषज्ञों का मानना है कि अब स्वास्थ्य प्रणालियों को बच्चों में हाई ब्लड प्रेशर की जांच को सामान्य प्रोटोकॉल का हिस्सा बनाना होगा। ज्यादा से ज्यादा घर और 24 घंटे की मॉनिटरिंग को बढ़ावा देना होगा। डॉक्टरों, परिवारों और नीति.निर्माताओं को इस खतरे के प्रति जागरूक करना जरूरी है। साथ ही मोटापे पर नियंत्रण, नियमित व्यायाम और संतुलित खानपान को प्राथमिकता देनी होगी।
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी ग्लोबल रिपोर्ट ऑन हाइपरटेंशन 2025 के मुताबिक दुनिया भर में करीब 140 करोड़ उच्च रक्तचाप से पीड़ित हैं। मतलब की वैश्विक आबादी का करीब 34 फीसदी हिस्सा इस समस्या से जूझ रहा है। भारत से जुड़े आंकड़ों को देखें तो देश में 21 करोड़ से ज्यादा वयस्क हाइपरटेंशन से पीड़ित हैं जिनमें से 17 करोड़ का रक्तचाप अनियंत्रित है। चिंता की बात यह है कि इनमें से महज 39 फीसदी ;8.22 करोड़द्ध ही जानते हैं कि वो इस समस्या से पीड़ित हैं जबकि करीब 83 फीसदी मरीजों यानी 17.3 करोड़ से ज्यादा का रक्तचाप नियंत्रित नहीं है। मतलब कि देश में हाई ब्लड प्रेशर के महज 17 फीसदी मरीजों में ही रक्तचाप नियंत्रित है।
पुनीत उपाध्याय