जो कहा वो करके दिखाया, जो नहीं कहा वो भी कर दिखाया
सुशील कुमार ‘नवीन’
आज लिखने का मन बना तो एक पुराना किस्सा याद हो आया। एक अकडू और अड़ियल परिवार रेलयात्रा कर रहा था। पति-पत्नी,बेटा-बेटी कुल चार सदस्य। टिकट चार थी। कब्जा छह सीट पर किए बैठे थे। कोई सरकने की कहता तो उलझ पड़ते। एक स्टेशन पर एक पहलवान रेल में सवार हुआ। उसने बैठने के लिए सीट मांगी तो परिवार के मुखिया ने आदतन पहलवान को झिड़क दिया। पहलवान को गुस्सा आया और उसने एक जोरदार मुक्का हेड ऑफ द फैमिली के मुंह पर जड़ दिया। मुक्का लगते ही हेड का सिर चकरा गया। शेष मेंबर देखते रह गए पर किसी की हिम्मत नहीं पड़ी कि पहलवान को कुछ कह दे।
पिटाई के शिकार बने हेड ने सोचा कि पहलवान से मुकाबला तो हो ही नहीं सकता। चुप रहा तो घर जाकर पत्नी मजाक उड़ाएगी कि बड़े हीरो बने फिरते हो। एक मुक्के ने सारी हीरोगिरी निकाल दी। हिम्मत जुटाई और पहलवान को ललकारा। ओ पहलवान! तुमने मेरे मारा, मैने सहन कर लिया। हिम्मत है तो मेरी पत्नी को मारकर दिखा। फिर बताता हूं। पत्नी कुछ कह पाती, इतनी देर में पहलवान ने उसके मुंह पर एक धर दिया। पत्नी के मुक्का लगते ही हेड चुप बैठ गया।
अब पत्नी ने सोचा कि पति तो चाल चल गया। बेटा तेरा जरूर मजाक उड़ाएगा कि पापा पर तो अकड़ दिखाती रहती हो। आज एक पहलवान ने तुम्हारी सारी अकड़ ढीली कर दी। दर्द को सहन करती हुई गुस्से में उसने पहलवान को ऐसे ललकारा मानो अब खैर नहीं। बोली- सुन ले पहलवान! तुमने मेरे पति को मारा, मैं चुप रही। मुझे मारा, चलो यहां तक भी चुप हूं। तुम इतने ही बड़े पहलवान हो तो मेरे बेटे को मारकर दिखाओ वो तेरा एक बार में हो कल्याण कर देगा।
अब बेटे का चेहरा देखने लायक था। समझ आ गया कि मम्मी ने उसे फंसा दिया। कुछ बोलता, इससे पहले पहलवान ने उसके भी मुक्का जड़ दिया। अब बिना मार खाए सिर्फ बहन बची थी। घर पर तो वह शेरनी बनी रहती है, पापा मम्मी से कई बार पिटवाया हुआ था। आज मौका मिल गया। पहलवान को ललकारा। पहलवान! ये मत समझना कि मेरे मम्मी-पापा को मारकर तुमने कोई बड़ी जंग जीत ली है। वे तो शरीफ हैं , पर मैं ऐसा नहीं हूं। तेरा इलाज पक्का होगा। इससे पहले तू मेरी शेरनी बहन को मारकर दिखा। एक झटके में तेरा काम न कर दें, तो फिर कहना। बहन कुछ समझ पाती इससे पहले एक मुक्का उसे भी जा लगा। अब चारों पिटाई के मामले में बराबर हो चुके थे। अब डिब्बे में सन्नाटा था।
पहलवान को सीट मिल गई। तीन-चार स्टेशन के बाद वह उतर गया। साइड की सीट पर बैठे बुजुर्ग ने हेड को कहा- भले मानस, तुम तो पिट लिए थे, ये सारे घर वाले क्यों पिटवाए। सीट पहले ही उसे दे देते। कम से कम इन्हें तो मार नहीं पड़ती। जवाब मिला कि बाबा! अगर मैं अकेला पिट जाता तो घर जाकर ये सब मेरा मजाक उड़ाते। अब अब पिट गए हैं तो कोई किसी का मजाक नहीं बनाएगा।
कुछ ऐसा ही इस बार एशिया कप में पाकिस्तान के साथ हुआ है। टीम की तो जलालत तीनों मैचों में हुई ही है,जाते जाते उनके बोर्ड मुखिया भी करवा गए। अब अब बराबर हो गए हैं कोई किसी को कुछ नहीं कहेगा। महाभारत में महात्मा विदुर ने कहा है-
कृते प्रतिकृतिं कुर्याद्विंसिते प्रतिहिंसितम्।
तत्र दोषं न पश्यामि शठे शाठ्यं समाचरेत्॥
भाव है कि जो जैसा करता है, उसके साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए। हिंसा करता है, तो हिंसा करनी चाहिए। यदि दुष्ट(शठ) के साथ दुष्टता(शठता) की जाए, तो इसमें कोई दोष नहीं माना जाता।
एशिया कप की शुरुआत से ही भारत इस बार पाकिस्तान के खिलाफ मुखर रहा है। टूर्नामेंट में खेलने या न खेलने पर भी अंतिम समय तक संशय था। न खेलते तो सीधा फायदा पाकिस्तान को होना था। जो भारत के हर क्रिकेट प्रेमी को नागवार गुजरता। इसलिए इस बार कुछ अलग ही खेल खेलना तय हुआ। उधर, एशिया कप की शुरुआत से पहले दूसरी तरफ से बयानबाजी जोरों पर थी, हम ये कर देंगे, वो कर देंगे। बुमराह की छह की छह गेंदों पर छक्के मारेंगे। हमारे आफरीदी के आगे बुमराह कुछ नहीं है। कप पर हमारा हक है। इसे हम हर हाल में जीतकर लौटेंगे। पर दावा भारत के साथ पहले ही मैच में फुस्स हो गया। जलालत में कोई कमी नहीं छोड़ी गई। न टॉस पर, न मैच के बाद पाकिस्तानी टीम से हाथ मिलाया गया। हाथ मिलाना तो दूर उनकी तरफ देखा तक भी नहीं गया। मिर्ची लगी तो शिकायत भी की गई, एशिया कप के बायकॉट करने के ड्रामे का भी भारतीय टीम पर कोई असर नहीं पड़ा। मैच में भी छेड़खानी का प्रयास किया तो बल्ले के साथ जुबान से जोरदार जवाब मिला। साथ ही पहले ही ये कह दिया गया था कि भारत एशिया कप जीतता है तो एसीसी और पीसीबी प्रमुख मोहसिन नकवी के हाथों ट्रॉफी स्वीकार नहीं करेगा।
फाइनल मैच जीतकर भारतीय टीम ने इस कथन को मात्र कथन न रखकर चरितार्थ भी करके दिखा दिया। पोडियम पर अन्य अतिथियों के हाथों मिलने वाले प्रत्येक सम्मान को इज्जत के साथ ग्रहण किया गया। नकवी इंतजार करते रहे। बार बार बुलाया जाता रहा पर भारतीय टीम अपने फैसले पर अड़ी रही। अंत में ट्रॉफी नकवी अपने साथ वापस ले गए। टीम ने बिना ट्रॉफी विक्ट्री सेलिब्रेशन किया।
अब सीधे मुद्दे पर आते हैं। भारतीय टीम कोई खैरात, मान मनौव्वल, सेटिंग या किसी छल प्रपंच से नहीं जीती है। हर एक मैच को केवल जीता नहीं है, उसे पूर्ण रूप से अपने अंदर आत्मसात किया है। भारत ने लगातार दस मैच जीते हैं और पाकिस्तान ने केवल चार। अंतराष्ट्रीय स्तर तक सबको पता था कि भारतीय टीम अंत तक अपने फैसले पर अड़ी रहने वाली है तो फिर धक्काशाही क्यों। बार-बार जलील होने की क्या जरूरत थी। टॉस पर हाथ नहीं मिलाया तो शिकायत, मैच जीतने के बाद हाथ नहीं मिलाया तो शिकायत। सीधी सी बात है मेंढकों के टर्राने से शेर कभी राह नहीं बदलते। अब चीखते रहो, चिल्लाते रहो।
लेखक:
सुशील कुमार ‘नवीन’ , हिसार