समय की जरूरत है डिजिटल फास्टिंग !

सुनील कुमार महला


डिजिटल क्रांति के इस युग में बच्चों का स्क्रीन टाइम लगातार बढ़ रहा है जो बच्चों की सेहत और भविष्य दोनों पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है। कहना ग़लत नहीं होगा कि बदलते दौर में आज मोबाइल, इंटरनेट, सोशल नेटवर्किंग साइट्स हर व्यक्ति की दिनचर्या के अभिन्न हिस्से हो चले हैं। वास्तव में आज किफायती डेटा प्लान और बढ़ती इंटरनेट सुविधाओं के साथ देश में बड़ी संख्या में युवा डिजिटल मीडिया की ओर लगातार रुख कर रहे हैं।इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म आभासी सार्वजनिक स्थान बन गए हैं और इसके माध्यम से युवा अपने विचारों और अनुभवों का आदान-प्रदान करते हैं। आज सामाजिक, प्रत्यक्ष संवाद बहुत कम हो गया है। आभासी दुनिया के ये प्लेटफॉर्म हर किसी को कनेक्टिविटी प्रदान करते हैं, वहीं दूसरी ओर ये स्क्रीन टाइम बढ़ाने में भी योगदान देते हैं।

आज सोशल मीडिया की वजह से हमारे युवाओं का स्क्रीन टाइम बहुत अधिक बढ़ गया है। इससे उनकी सेहत के साथ ही युवाओं का करियर तक प्रभावित हो रहा है। कहना ग़लत नहीं होगा कि बढ़ते स्क्रीन टाइम के चलते जहां बच्चों का मन एक ओर पढ़ाई से भटक रहा है वहीं दूसरी ओर बच्चे आज तनाव और अवसाद के शिकार भी इससे हो रहे हैं। सोशल नेटवर्किंग साइट्स का अधिक उपयोग और प्रयोग हमारे रिश्तों और सामाजिक संपर्क को भी लगातार कम करता चला जा रहा है। स्क्रीन टाइम की बढ़ती लत नींद की कमी और डिप्रेशन को जन्म दे रही है। आज भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में बच्चों का स्क्रीन टाइम लगातार बढ़ रहा है। इससे बच्चों की एकाग्रता घट रही है और उनमें चिड़चिड़ापन बढ़ रहा है लेकिन अब दुनिया के अनेक देश, जिसमें भारत भी शामिल है, बच्चों के सोशल नेटवर्किंग साइट्स इस्तेमाल करने पर रोक लगाने की अनेक पहलें कर रहे हैं। इसी क्रम में उल्लेखनीय है कि ऑस्ट्रेलिया ने 16 साल से कम उम्र के बच्चों के सोशल मीडिया इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई है। इसके लिए ऑस्ट्रेलियन सीनेट ने कुछ समय पहले ही एक बिल पारित किया है। अमेरिकी राज्य फ्लोरिडा में भी 14 साल से कम उम्र के बच्चे सोशल मीडिया इस्तेमाल नहीं कर सकते। इतना ही नहीं, आज फ्रांस, जर्मनी, बेल्जियम, इटली, नीदरलैंड, नॉर्वे, ब्रिटेन, आयरलैण्ड, कनाडा, नाइजीरिया, ब्राजील, कंबोडिया, मित्र, दक्षिण कोरिया व न्यूजीलैंड, यूरोपीय संघ और कई अन्य देशों में बच्चों के सोशल मीडिया उपयोग पर सख्ती है। स्वीडन में दो साल से कम उम्र के बच्चों के लिए मोबाइल इस्तेमाल पर पूरी तरह से रोक है। 2 से 5 साल, 6 से 12 साल तक के बच्चों का स्क्रीन टाइम तय है।

बहरहाल, यह बहुत अच्छी पहल है कि हाल ही में भारत में बच्चों के घंटों-घंटों तक लगातार स्क्रीन टाइम की लत को भांपते हुए अब ‘मोबाइल व्रत’ का नवाचार शुरू किया गया है। गौरतलब है कि मोबाइल व्रत या डिजिटल फास्टिंग लोगो के एक दिन या एक सप्ताह में स्मार्टफोन के इस्तेमाल की लिमिट निर्धारित करता है।डिजिटल फास्टिंग(मोबाइल व्रत) में लोग निर्धारित समय के अनुसार ही टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हैं। वास्तव में, इस फास्टिंग में आमतौर पर फोन, टैबलेट या लैपटॉप को शामिल किया जाता है। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि आज बच्चे ही नहीं हर कोई घंटों-घंटों मोबाइल पर अनावश्यक कंटेंट देखते हैं। मसलन, फेसबुक, इंस्टाग्राम, यू-ट्यूब, ट्विटर, व्हाट्स एप पर राजनीतिक, धार्मिक, शिक्षा ज्ञान व समाचार, मनोरंजन समेत असंख्य कंटेंट देखे-सुने जा रहे हैं। पाठकों को जानकारी के लिए बताता चलूं कि हाल ही में मुंबई में बोहरा समाज के घर्मगुरुओं ने समाज के लोगों को संदेश देते हुए यह बात कही है कि 15 वर्ष से कम आयु के बच्चों को मोबाइल से दूर रखा जाए। इसका असर देश के अनेक भागों में देखने को मिल रहा है और इस आशय की खबरें मीडिया के हवाले से लगातार आ रहीं हैं। ऐसा ही असर, हाल ही में  राजस्थान के बोहरा समाज में भी देखने को मिला।

गौरतलब है कि राजस्थान के कोटा, डूंगरपुर, उदयपुर के कुछ गांवों में शाम 7 बजे के बाद अभिभावकों द्वारा अपने बच्चों से मोबाइल ले लिया जाता है। इतना ही नहीं, स्वयं अभिभावक भी शाम को दो घंटे मोबाइल से दूर रहने(स्क्रीन टाइम कम करने) की कोशिश कर रहे हैं। महाराष्ट्र के अहिल्यानगर जिले के सौंदाला गांव में भी किया गया ऐसा प्रयोग इन दिनों मीडिया में खूब चर्चा का विषय बना हुआ है। यहां रोजाना शाम सात से नौ बजे तक बच्चे ‘मोबाइल व्रत’ रखते हैं। वैसे, पाठकों को जानकारी के लिए बताता चलूं कि मोबाइल व्रत को ई-उपवास या डिजिटल फास्टिंग का नाम भी दिया गया है। इतना ही नहीं, डिजिटल फास्टिंग को डिजिटल डिटॉक्स, डोपामाइन फास्टिंग, अनप्लगिंग फ्रॉम टेक्नोलॉजी और डिजिटल सब्बाथ आदि के नाम से भी जाना जाता है।जैन समाज तो बहुत समय पहले ही प्रयुर्षण के दौरान मोबाइल व्रत या डिजिटल फास्टिंग की शुरुआत कर चुका है।

कहना ग़लत नहीं होगा कि आज मोबाइल व्रत/मोबाइल उपवास समय की जरूरत है। आज हमने स्मार्टफोन, लैपटॉप , कंप्यूटर, इंटरनेट के इर्द-गिर्द अपनी एक छोटी-सी दुनिया बना ली है और हमारी यह आदत बिलकुल ठीक नहीं है, क्यों कि यह स्वास्थ्य, सामाजिक समस्याओं समेत अनेक समस्याओं को जन्म दे रही है। आज की भागम भाग इस जिंदगी में मोबाइल फास्टिंग बहुत ही जरूरी है क्योंकि मनुष्य को हर तरफ से आज तनाव और अवसाद घेरे हुए है। आदमी के पास आज स्वयं के लिए भी समय नहीं है, पदार्थ की इस दुनिया में आदमी खोया हुआ है और भौतिकवादी हो चुका है। कहना ग़लत नहीं होगा कि डिजिटल फास्टिंग को अपने रूटीन में शामिल करने से हम हमारे रिश्तों को सामाजिक मजबूती दे सकते हैं। हम कोई भी प्रोडक्टिव काम कर पाते हैं, हमारा स्वास्थ्य भी अच्छा बना रहता है। मोबाइल व्रत से हमें बेहतर कामों के लिए समय मिल जाता है। मोबाइल व्रत हमारे तन-मन दोनों को स्वस्थ और अच्छा रखेगा। हमारी सनातन परंपरा और संस्कृति में भी तो उपवास जीवन पद्धति का एक अहम हिस्सा बताया गया है, तो आज हम हमारे जीवन में मोबाइल डिटाक्स को क्यों न अपनायें ?

 बहरहाल, यदि हम आंकड़ों की बात करें तो डेलॉइट के 2022 ग्लोबल टीएमटी अध्ययन में कहा गया है कि भारत में 2026 तक 100 करोड़ स्मार्टफोन उपयोगकर्ता होंगे, यह अपने आप में एक बहुत बड़ी संख्या है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत में आज कितने लोग स्मार्टफोन का उपयोग, प्रयोग करते होंगे। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत आज दुनिया में सबसे अधिक डेटा उपयोग करने वाले देशों में है। भारत में लोग अन्य देशों की तुलना में स्मार्ट फोन पर औसतन ज्यादा समय बिताते हैं। रिपोर्ट के अनुसार भारत में स्मार्ट फोन पर वीडियो देखने का चलन खासा बढ़ा है और यह 2025 तक बढ़ कर चार गुना तक हो जायेगा। भारत में 2021 में डेटा ट्रैफिक में 31 फीसदी की वृद्धि हुई और औसत मोबाइल डेटा खपत प्रति उपयोगकर्ता प्रति माह 17 जीबी तक पहुंच गयी है। इतना ही नहीं, युवाओं द्वारा सोशल मीडिया के उपयोग पर भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) रोहतक द्वारा किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि एक पुरुष का औसत स्क्रीन टाइम 6 घंटे 45 मिनट है जबकि एक महिला का औसत स्क्रीन टाइम 7 घंटे 5 मिनट है। अध्ययन से यह भी पता चला कि लगभग 60.66 प्रतिशत युवा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग करते हैं, जिसका सबसे अधिक उपयोग शाम को होता है। सबसे अधिक दर्शक संख्या 50 प्रतिशत से अधिक मनोरंजन से संबंधित सामग्री की है।

 अंत में यही कहूंगा कि स्क्रीन टाइम बढ़ने से हमारी शारीरिक सक्रियता कम होने लगती है, जिससे वजन बढ़ने और मोटापा(ओबैसिटी) का जोखिम रहता है जिसे कई गंभीर क्रोनिक बीमारियों जैसे हृदय रोग, डायबिटीज आदि का प्रमुख कारक माना  जाता है।कम उम्र में मोबाइल या अन्य स्क्रीन्स के संपर्क के कारण बच्चों का मानसिक व शारीरिक विकास प्रभावित हो सकता है, एकाग्रता, तनाव, अवसाद की समस्याएं हो सकतीं हैं। अतः हमें यह चाहिए कि हम बच्चों की सेहत और उनके भविष्य को बचाने की दिशा में काम करते हुए डिजिटल फास्टिंग करना सुनिश्चित करें।

सुनील कुमार महला

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