समाजवाद का नया कारनामा

सिद्धार्थ मिश्रस्‍वतंत्र

mulayamउत्‍तर प्रदेश में पूर्ण  ब‍हुमत  से  प्राप्‍त सत्‍ता सपा के हाजमे को बिगाड़ रही है । इसकी बानगी हमें कई अवसरों पर देखने को मिल चुकी है । तथाकथित समाजवादी मुलायम सिंह यादव के समाजवाद से तो हम सभी बखूबी परिचित हैं । अपने ही परिवार को पूरा समाज मानने वाले मुलायम सिंह यादव अपने इन्‍हीं कारनामों से पहले निं‍दनीय तो अब घृणित होते जा रहे हैं । घृणित  इसलिए क्‍योंकि उनकी सांप्रदायिक सोच,तुष्टिकरण परक राजनीति अब सतह पर आ चुकी है । ऐसे में सारी उम्‍मीदें अब समाजवाद के युवराज पर केंद्रित थीं । किंतु उनके डेढ़ वर्ष के कार्यकाल से ये बात स्‍पष्‍ट हो चुकी है कि अब वो भी सत्‍ता सुख पचा नहीं पा रहे हैं । अपने विभिन्‍न तुगलकी निणर्यों के लिए कुख्‍यात होते जा रहे अखिलेश की सियासी समझ अब संदेह के घेरे में आ चुकी है । कुछ दिनों पूर्व तक अखिलेश को सौम्‍यता की प्रतिमर्ति बताने वाले पुरनीये भी अब उनकी दुर्मती को देख कर हैरान  हो रहे हैं । विचारणीय प्रश्‍न हैं कि क्‍या मुलायम की रहा पकड़  रहे हैं अखिलेश  ?

विगत दिनों समाचार पत्रों में प्रकाशित कई खबरों ने अखिलेश यादव को सतह पर ला दिया है । सर्वप्रथम खबर में अखिलेश द्वारा बांटे जाने वाले लैपटाप को दीमक द्वारा चाटे जाता दिखाया गया है । स्‍मरण रहे कि सपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार के पीछे बेरोजगारी भत्‍ता और लैपटाप के वादे का बहुत अहम योगदान रहा है । आज उसी लैपटाप की ऐसी बेकदरी क्‍या जनता के पैसों का दुरूपयोग नहीं है । जहां तक प्रश्‍न है लैपटाप का तो वो महज समाजवादी प्रचार के उपकरण से ज्‍यादा कुछ नहीं है । दूसरी खबरों में प्रदेश राज्‍यमंत्रियों के चयन  एवं मंत्रीमंडल के फेरबदल ने ये साबित कर दिया कि युवा मुख्‍यमंत्री को उनके इस निर्णय से जनता पर पड़ने वाले बोझ का जरा भी ध्‍यान नहीं है । आप ही बताइये कितनी कारगर है अखिलेश के मंत्रियों की फौज ? अपराध,भ्रष्‍टाचार एवं सांप्रदायिक हिंसा पर लगाम लगाने में नाकाम रही ये सरकार क्‍या मंत्रियों की संख्‍या बढ़ाकर अपनी नाकामी को छुपा लेगी ? बीते दिनों जारी हुए आंकड़े जिनमें उत्‍तर प्रदेश को देश की विकास दर के गिरावट की वजह बताया गया था,अखिलेश की योग्‍यता का स्‍पष्‍अ आईना है । क्‍या इससे हमारे मुख्‍यमंत्री ने कोई सबक लिया ?

जहां तक प्रश्‍न है सपा सरकार में शामिल मंत्रियों का तो उनकी दबंगई एवं रंगीन मिजाजी प्राय सुर्खियों में रहती है । अभी हालिया समाचार पत्र प्रकाशित तस्‍वीरों में  इटावा के सिटी मजिस्‍ट्रेट एवं एएसपी को शिवपाल सिंह यादव के पैर छूते दिखाया गया है । राजपत्रित अधिकारियों की ये दुर्दशा क्‍या प्रदर्शित करती है ? जहां तक इसके विपरीत आचरण करने वालों का प्रश्‍न है तो उनका हाल दुर्गा नागपाल जैसा ही होता है  ?  जिन्‍हे ईमानदारी का पुरस्‍कार निलंबन के रूप में दिया जाता है । प्रदेश सरकार के इस निर्णय से भ्रष्‍टाचारियों के प्रति उनके प्रेम को सहज ही समझा जा सकता है । ज्ञात हो कि गौतम बुद्ध नगर में अवैध खनन में संलिप्‍त लोगों के विरूद्ध कड़ी कार्रवाई कर रही दुर्गा ने एक महीने में लगभग दो दर्जन मामले दर्ज किये थे । ऐसे में दुर्गा नागपाल के निलंबन ने ये साबित कर दिया है कि मुख्‍यमंत्री ने अवैध खनन करने वाले भ्रष्‍टाचारियों के दबाव में ये विभत्‍स निर्णय लिया है । इस बात की पुष्टि आइएएस एसोसियेशन के दुर्गा नागपाल को पूर्ण समर्थन से हो जाती है । इस पूरे मामले पर अखिलेश की सफाई भी हास्‍यापद ही है । इस मामले पर दिये बयान में उन्‍होने कहा कि दुर्गा नागपाल ने नोएडा में निर्माणाधीन मस्जिद को गिरवाने का दोषी पाये जाने पर निलंबित किया गया है । अब जब कि सत्‍य का पता सभी को है ऐसे में अखिलेश का ये बयान वोटबैंक की राजनीति नहीं तो और क्‍या है  ? अपने इस बयान से उन्‍होने मुस्लिम मतों के धु‍व्रीकरण का प्रयास किया है,क्‍या ऐसा नहीं है ? सबसे बड़ी बात सामाजिक कार्यकताओं,आईएएस एसोसियेशन समेत सपा के नेता राम गोपाल यादव द्वारा इस निर्णय को गलत बताना ये साबित करता है कि दाल में कुछ काला अवश्‍य है । कमी दुर्गा नागपाल की ईमानदारी या नीयत में नहीं कमी अखिलेश के अंदर है । विचारणीय प्रश्‍न है सांप्रदायिक हिंसा के नाम पर,शहादत के दोहरे मापदंडों के नाम पर कब तक जनता को बरगलाएंगे अखिलेश? बहरहाल समाजवाद का एक और नया कारनाम सतह पर आ गया है जो अखिलेश की काबिलियत एवं निष्‍पक्षता की कलई खोलने के लिए पर्याप्‍त है ।

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