राजनीति

आतंकवाद का नया चेहरा बेहद घातक है 

राजेश कुमार पासी

10 नवंबर को दिल्ली में हुए बम विस्फोट ने पूरे देश को आतंकित किया है क्योंकि ये देश आतंकवादी हमलों को लगभग भुला चुका था । जम्मू-कश्मीर के बाहर आतंकवादी पूरी कोशिश के बाद भी हमले करने में असफल हो रहे थे लेकिन 11 साल बाद आतंकवादियों को देश की राजधानी दिल्ली में आतंकवादी हमला करने में सफलता मिल गयी । 2014 से पहले भारतीयों को आतंकवादी हमलों का डर सताता रहता था लेकिन मोदी सरकार इन हमलों पर लगाम लगाने में सफल रही है । देश यह मानने लगा था कि अब आतंकवादी हमले सिर्फ जम्मू-कश्मीर में ही होते हैं । यही कारण है कि जब सुरक्षा एजेंसियों ने फरीदाबाद से विस्फोटक बरामद किए तो कहा गया कि ये तो खाद बनाने में इस्तेमाल होने वाला पदार्थ है । मोदी विरोधी लोगों ने यह भी विमर्श चलाने की कोशिश की कि यह मुस्लिमों को सताने का एक नया तरीका है । इस आतंकवादी मॉड्यूल में डॉक्टर पकड़े गए थे, इसलिए भी सरकार को निशाना बनाया जा रहा था । जब दिल्ली में इसी मॉड्यूल ने आतंकवादी हमला कर दिया तो देश को पता चला कि विस्फोटक खाद बनाने के लिए नहीं थे । ये भी अजीब बात है कि डॉक्टर खाद बनाने में इस्तेमाल होने वाले पदार्थों का क्यों संग्रह कर रहे थे, इसका भी विचार नहीं किया जा रहा था ।

 आतंकवादी हमले को लेकर सुरक्षा एजेंसियों पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं, लेकिन कोई यह सोचने को तैयार नहीं है कि उनकी सतर्कता के कारण ही हजारों लोगों की जान बच गई है । आतंकवादियों की तैयारी तो हजारों लोगों की जान लेने की थी लेकिन समय रहते सुरक्षा एजेंसियों ने साजिश का खुलासा कर दिया । गुजरात में राईसिन के जहर से लाखों लोगों को मारने की साजिश की जा रही थी, उसे भी हमारी गुप्तचर एजेंसियां नाकामयाब करने में सफल रही हैं । बेहद घातक इस जहर को अगर सार्वजनिक जल सप्लाई में मिला दिया जाता तो हजारों लोगों की जान जाने के बाद साजिश का पता चलता । फरीदाबाद में पकड़े गए विस्फोटकों से 50 से ज्यादा बड़े बम धमाके किए जा सकते थे । देखा जाए तो सुरक्षा एजेंसियों ने देशहित में बड़ा काम किया है लेकिन उनकी आलोचना हो रही है क्योंकि आतंकवादी एक हमला करने में सफल हो गए हैं । यही सुरक्षा एजेंसियों की सबसे बड़ी समस्या है कि उन्हें हर बार सफल होना पड़ता है लेकिन आतंकवादियों को सिर्फ एक मौका चाहिए होता है । ये मौका उन्हें दिल्ली में मिल गया लेकिन एक सच यह है कि सुरक्षा बलों के दबाव के कारण ये हमला जल्दबाजी में किया गया था। 

            इस आतंकवादी साजिश में डॉक्टर जैसे सम्मानित पेशे में काम करने वाले लोग शामिल है, इसलिए सुरक्षा बलों की समस्या को समझने की जरूरत है । अगर इन पर हाथ डालने के बाद पुलिस को कुछ नहीं मिलता तो पूरे देश के मुस्लिम, वामपंथी और सेकुलर बुद्धिजीवी उसके पीछे पड़ जाते । हमें अपनी पुलिस व्यवस्था की तारीफ करनी चाहिए कि उसकी सतर्कता के कारण हजारो लोग अपने परिवार के साथ जिंदा हैं । पूरा विपक्ष और उसका इको सिस्टम वर्षों से यह नैरेटिव चला रहा है कि गरीबी और अनपढ़ता के कारण मुस्लिम समाज के युवा आतंकवादी बनते हैं ।

बेरोजगारी को भी इसका बड़ा कारण माना जाता है लेकिन ये नैरेटिव चलाने वाले लोग भूल जाते हैं कि यह समस्या तो गैर-मुस्लिम समाज के युवाओँ के लिए भी परेशानी का सबब है । इसका जवाब उनके पास नहीं है कि इन समस्याओं के कारण सिर्फ मुस्लिम समाज के युवा ही क्यों आतंकवाद के रास्ते पर जाते हैं । अब भारत में नया आतंकवाद सिर उठा रहा है जिसमें डॉक्टर, इंजीनियर, अध्यापक और दूसरे उच्च-शिक्षित लोग शामिल हैं । इन लोगों ने आतंकवादी बनकर बता दिया है कि वास्तविक समस्या से ध्यान हटाया जा रहा है । वास्तव में आतंकवाद के लिए इस्लाम और उसकी कट्टरवादी विचारधारा जिम्मेदार है जो कि आत्मघाती हमलावर डॉक्टर उमर के वीडियो से भी साबित होती है । इस्लामिक कट्टरता आतंकवादी बनने की पहली सीढ़ी है, इसके बाद ही आतंकवाद का रास्ता शुरू होता है। मुस्लिम समाज की जिम्मेदारी है कि वो इस कट्टरता के खिलाफ खड़ा हो।

समस्या यह है कि मुस्लिम समाज विपरीत दिशा में जा रहा है, वो आतंकवादियो और आतंकवाद का बचाव कर रहा है। समस्या से भागने से कुछ नहीं होता, उसका समाधान करने की जरूरत है। दिल्ली बम विस्फोट में तीन मुस्लिम भी मारे गए हैं क्योंकि बम को नहीं पता कि मरने वाले का धर्म क्या है। आतंकवादी दीवाली, राममंदिर और काशी विश्वनाथ को निशाना बनाना चाहते थे। अगर वो कामयाब हो जाते तो देश में कैसी आग लगती, इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है। अगर विपक्ष और मुस्लिम समाज चाहता है कि देश में शांति और भाईचारा बना रहे तो आतंकवाद की जड़ को खत्म करने में देश की मदद करे।  दिल्ली में आत्मघाती हमला करके विस्फोट करने वाले आतंकवादी डॉ उमर ने एक वीडियो बनाया था, जो कि अब सामने आ गया है। हमारे देश के सेक्युलर और वामपंथी बुद्धिजीवी आतंकवाद और आतंकवादियों का मुस्लिम बुद्धिजीवियों से भी ज्यादा बचाव करते हैं ।  डॉक्टर उमर ने वीडियो में स्पष्ट रूप से कहा है कि वो इस्लाम के लिए जान दे रहा है क्योंकि जिहाद में जान देना इस्लाम में जन्नत जाने का रास्ता है। उसने कहीं नहीं कहा कि वो गरीबी, बेरोजगारी या अत्याचार के कारण जान दे रहा है। उसने कोशिश की, कि उसके हमले में ज्यादा से ज्यादा लोग मारे जाएं। उसने इस्लाम के लिए जान दी है और लोगों की जान ली है । 

                  डॉ उमर का वीडियो बड़े खतरे की ओर इशारा करता है जिसे पूरे देश को समझना होगा कि एक उच्च-शिक्षित व्यक्ति भी कैसे आतंकवाद के रास्ते पर जा सकता है । ऐसे व्यक्ति को समझाया भी नहीं जा सकता क्योंकि उसने अपनी एक समझ पैदा की है जिसे मिटाना बहुत मुश्किल होता है । वो अपने वीडियो में न केवल आतंकवादी हमले को जायज ठहरा रहा है बल्कि यह भी कह रहा है कि यह हमला इस्लामी मान्यताओं के अनुसार सही है । वो आत्मघाती हमलों को गैर-इस्लामी घोषित करने को गलत करार दे रहा है । क्या हम नहीं जानते हैं कि दुनिया भर में आतंकवादी संगठन आत्मघाती हमलों को जायज बताते हैं और इसे जिहाद से जोड़ते हैं । यही कारण है कि पूरी दुनिया में आत्मघाती हमले बढ़ते जा रहे हैं । भारत में आत्मघाती हमले बहुत कम हुए हैं, लेकिन अब जो आतंकी मॉड्यूल पकड़े जा रहे हैं, उनका इरादा कई आत्मघाती हमलों का अंजाम देने का था । इसके लिए वो ऐसे लोगों की भर्ती कर रहे थे जिन्हें आत्मघाती हमले के लिए तैयार किया जा सके । जो मुस्लिम संगठन और विद्वान आतंकवाद के खिलाफ काम कर रहे हैं, उनके लिए बड़ी मुश्किल खड़ी होने वाली है क्योंकि अब उच्च-शिक्षित युवा आतंकवादी बन रहे हैं ।

अब यह भी नहीं कहा जा सकता कि ये भटके हुए नौजवान हैं । कम पढ़े-लिखे युवाओं को समझाना फिर भी संभव है लेकिन उच्च-शिक्षित युवाओं को समझाना मौलानाओं के लिए भी आसान नहीं होगा । वो इस्लाम को अच्छी तरह समझते हैं और उन्होंने अपनी एक मान्यता बना ली है, इसलिए इन्हें सही रास्ते पर लाना लगभग असंभव काम है । ऐसे लोग न केवल खुद आतंकवादी बनते हैं बल्कि बहुत जल्दी अपने साथ और लोगों को भी जोड़ने में सफल हो जाते हैं । इनका मुकाबला करना सुरक्षा एजेंसियों के लिए आसान नहीं होने वाला है क्योंकि ऐसे लोग समाज में ऐसे घुले-मिले होते हैं कि इन पर संदेह करना भी मुश्किल होता है । अगर श्रीनगर पुलिस ने अपने इलाके में लगे पोस्टरों को गंभीरता से नहीं लिया होता तो ये आतंकी मॉड्यूल पकड़े नहीं जाते । इनका पता तब चलता जब ये अपनी साजिश को सफल करने में कामयाब हो जाते । ऐसे पोस्टर जम्मू-कश्मीर में लगाना आम बात है, इसके बावजूद पुलिस ने इसे गंभीरता से लिया और इसमें शामिल लोगों को ढूंढने की कोशिश की जिसके कारण एक बड़ी साजिश का भंडाफोड़ हो गया । पहलगाम आतंकी हमले के बाद दिल्ली हमले ने बता दिया है कि ऐसे हमलों में स्थानीय लोगों की मदद शामिल होती है । पहलगाम में आतंकियों को स्थानीय लोगों ने मदद दी थी, जिसके कारण वो हमला करने में सफल रहे और ऐसे ही डॉ उमर को कई लोगों ने मदद दी है, जिसके कारण वो दिल्ली को दहलाने में सफल रहा । सरकार को आतंकियों के मददगारों के साथ भी आतंकियों वाला व्यवहार करना चाहिए । आतंकवादियों और उसके मददगारों की एक ही सजा होनी चाहिए । 

           डॉक्टर आतंकियों को फरीदाबाद में  विस्फोटक जमा करने में इसलिए सफलता मिली क्योंकि उन्हें स्थानीय लोगों की मदद मिली थी । अल फलाह यूनिवर्सिटी जैसी संस्थाओं पर भी नजर रखनी होगी जो आतंकियों का अड्डा बन चुकी थी । इसके संचालको को बताना चाहिए कि उन्होंने अपने  संस्थान को आतंकियों का अड्डा क्यों बनने दिया । अपने संस्थान में ऐसे डॉक्टर क्यों नियुक्त किए जो कि संदिग्ध थे । फरीदाबाद आतंकी मॉड्यूल में मौलवी भी शामिल पाए गए हैं जो कि आतंक का पाठ पढ़ा रहे थे । ऐसे लोगों के निटपना बेहद मुश्किल होने वाला है क्योंकि ये लोग दीन-ईमान की शिक्षा देने के साथ-साथ जिहादी आतंक का पाठ भी पढ़ाने लग जाते हैं और किसी को पता भी नहीं चलता । इस मॉड्यूल के पकड़े जाने के बाद पता चलता है कि हमारी सरकार और सुरक्षा बलों के लिए इन लोगों से निपटना बहुत मुश्किल होने वाला है ।

उच्च-शिक्षित मुस्लिम युवाओं की छानबीन करने पर विक्टिम कार्ड खेला जाएगा कि सरकार मुस्लिम समाज को परेशान कर रही है । नए आतंकवाद ने कश्मीर और शेष भारत में अलगाव पैदा कर दिया है । आतंकवादी साजिश में शामिल लोगों का संबंध कश्मीर से निकल रहा है, इसलिए शेष भारत के लोग अब कश्मीरियों को संदेह की नजर से देखेंगे । पहलगाम हमले के बाद कश्मीर में सैलानियों का जाना बहुत कम हो गया है। दिल्ली हमले के बाद अब इसमें सुधार की संभावना बहुत कम रह गई है। कश्मीरियों को खुद से सवाल पूछना चाहिए कि शेष भारत के लोग उन पर विश्वास कैसे करें। एक तरफ केंद्र सरकार कश्मीर के विकास के लिए पानी की तरह पैसा बहा रही है तो दूसरी तरफ कश्मीरी युवा आतंकवाद के रास्ते पर जा रहे हैं। अजीब  बात है कि फारूक अब्दुल्ला पूछ रहे हैं कि ये लोग इस रास्ते पर क्यों जा रहे हैं । अभी उनके बेटे उमर अब्दुल्ला कश्मीर का मुख्यमंत्री हैं. इससे पहले फारूक अब्दुल्ला कई बार मुख्यमंत्री बन चुके हैं। उनके राज में ही पांच लाख कश्मीरी पंडितों को डरा धमका कर कश्मीर घाटी से भगा दिया गया था। उन्हें पूछने की जगह देश को बताना चाहिए कि क्यों उनके राज्य के युवा आतंकवाद के रास्ते पर जा रहे हैं।

आतंकवाद के कारण देश के धार्मिक सद्भाव के लिए बड़ा खतरा उत्पन्न हो गया है। आतंकवाद का नया रूप देश की एकता और अखंडता के लिए बड़ा खतरा बनकर आया है, इसे हमें गंभीरता से लेना होगा।  इसे हम सरकार के भरोसे नहीं छोड़ सकते, वो तो अपना काम कर रही है। एक समाज के रूप में हमें भी इस पर विचार करना होगा कि आतंकवादी क्यों पैदा हो रहे हैं । क्यों उच्च शिक्षित युवा कट्टरता की ओर जा रहे हैं और आत्मघाती हमलावर बन रहे हैं। आतंकवाद और आतंकवादियों का समर्थन और बचाव करने वालों की पहचान करके उन्हें भी सजा देने का इंतजाम करना होगा। 

राजेश कुमार पासी