राजनीति

अंतिम सांसें ले रहा है-रेड कारिडोर

नक्सलवाद हमारे देश के लिए एक बड़ी समस्या रहा है। कहना ग़लत नहीं होगा कि नक्सलवाद देश के विकास पर लगा एक गहरा दंश है, जो वर्षों से शांति और प्रगति को चोट पहुँचाता रहा है।यह नासूर न केवल सुरक्षा व्यवस्था को चुनौती देता है, बल्कि गरीब और आदिवासी क्षेत्रों की उन्नति को भी रोकता है। हिंसा के रास्ते ने हजारों परिवारों को दर्द, भय और असुरक्षा के सिवा कुछ नहीं दिया, लेकिन अब धीरे-धीरे हमारा देश नक्सलवाद के संपूर्ण खात्मे की ओर बढ़ रहा है, यह बहुत अच्छी बात है।एक उपलब्ध जानकारी के अनुसार वर्ष 2013 में देश में 182 जिलों में नक्सलवाद था,जो वर्तमान में यानी कि वर्ष 2025 तक केवल 11 जिलों में सिमट कर रह गया है। यह भी उल्लेखनीय है कि साल 2013 से 2025 के बीच नक्सलवाद (लेफ़्ट विंग एक्सट्रीमिज्म) में उल्लेखनीय गिरावट आई है। वर्ष 2013 में लगभग 126 जिले नक्सलवाद से प्रभावित थे, लेकिन अप्रैल 2024 तक यह संख्या घटकर सिर्फ 38 जिले रह गई है। इसके साथ ही हिंसात्मक घटनाओं में भी भारी कमी आई है-उदाहरण के तौर पर, 2010 में लगभग 1,936 घटनाएं हुई थीं, जो 2024 में घटकर 374 पर आ गईं, यानी 81 % की गिरावट हुई है। इतना ही नहीं, नागरिकों और सुरक्षा बलों की मौतों में भी 85 % तक की कमी दर्ज की गई है- 2010 में 1,005 मौतें थीं, जो 2024 में करीब 150 तक सीमित हो गईं। कुल मिलाकर, इन आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि नक्सलवाद का भौगोलिक विस्तार और हिंसा दोनों ही पिछले दशक में काफी कम हुए हैं, जो भारत की सुरक्षा नीतियों और विकास पहलों की सफलता को दर्शाता है। बहरहाल, यहां यह कहना ग़लत नहीं होगा कि पिछले 12 सालों में नक्सलवाद से प्रभावित जिलों में तेज़ी से कमी आई है। वास्तव में यह दर्शाता है कि वर्तमान में रेड कारिडोर अब अपनी अंतिम सांसें ले रहा है और अब वह दिन दूर नहीं जब नक्सलवाद इस देश से पूरी तरह से खत्म हो जाएगा। इस क्रम में, हाल ही में नक्सलवाद का  सबसे क्रूर और खूंखार चेहरा माड़वी हिड़मा आखिरकार मारा गया। पाठकों को बताता चलूं कि हिड़मा और उसकी पत्नी राजे समेत चार अन्य नक्सलियों को 18 नवंबर 2025 मंगलवार सुबह आंध्र प्रदेश के मरेडमिल्ली के जंगल में ढेर कर दिया गया। यह इलाका छत्तीसगढ़ के बॉर्डर से लगा हुआ है। जानकारी के अनुसार एक सप्ताह पहले विजयवाड़ा और विशाखापट्टनम के आसपास से 31 नक्सलियों की गिरफ्तारी की गई थी। इनमें से 7 नक्सल चीफ देवजी के बॉडीगार्ड थे। दरअसल, इनकी निशानदेही और इनपुट के आधार पर दो दिन पहले एक बड़ा ऑपरेशन लांच किया गया। इस ऑपरेशन में आंध्र प्रदेश की ग्रेहाउंडस और सीआरपीएफ जवान शामिल थे। सुरक्षा बलों ने आंध्रप्रदेश के अल्लूरी सीतारामा राजू जिले में हिड़मा और साथियों को मार गिराया। गौरतलब है कि हिड़मा पर छत्तीसगढ़ समेत अलग-अलग राज्यों में 1 करोड का इनाम था तथा उसकी पत्नी राजे भी 40 लाख की इनामी थी। हिड़मा नक्सल संगठन में इकलौता बस्तर का निवासी था, जिसे सेंट्रल कमेटी का मेंबर बनाया गया था तथा बस्तर में हुए हर बड़े हमले से उसका नाम जुड़ता रहा। हिड़मा लगभग 25 सालों तक समूचे बस्तर में आतंक का पर्याय बना रहा। उपलब्ध जानकारी के अनुसार 

वह 16 साल की उम्र में संगठन से जुड़ गया था तथा उसके नेतृत्व में नक्सलियों की पीएलजीए बटालियन ने बड़े हमलों को अंजाम दिया। बस्तर में बीते 25 साल में हुए हर बड़े हमले के साथ उसका नाम जुड़ता रहा। इतना ही नहीं,हिड़मा नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (एनआइए) और आइबी जैसी सुरक्षा एजेंसियों के रडार पर रहा। पाठकों को बताता चलूं कि हिड़मा कम से कम 100 वारदातों में शामिल रहा था तथा वह क्रमशः 2007 में रानीबोदली हमले(55 जवान शहीद), वर्ष 2010 में ताड़मेटला हमले(76 जवान शहीद) वर्ष 2013 में झीरम घाटी कांड(32 कांग्रेस नेताओं की हत्या), वर्ष 2014 में (टाहकवाड़ा सुकमा हमले( 16 जवान शहीद), वर्ष 2017 में बुरकापाल हमले( 25 जवान शहीद), वर्ष 2020 में चिंतागुफा हमले(17 जवान शहीद) तथा वर्ष 2021 में टेकलगुड़म हमले( 22 जवान शहीद) जैसे बड़े हमलों का मास्टरमाइंड रहा था। उल्लेखनीय है कि 6 अप्रेल, 2010 सुकमा के ताड़मेटला में सीआरपीएफ की एक टुकड़ी ताड़मेटला जंगल में में गश्त गश्त कर कर रही रही थी। इस दौरान नक्सलियों की ओर से घात लगाकर किए गए हमले में 76 जवान शहीद हो गए थे। यह नक्सली हमलों के इतिहास में सबसे घातक हमलों में से एक माना जाता है। हिड़मा पर इस हमले की योजना बनाने और अंजाम देने का आरोप था। इतना ही नहीं, झीरम घाटी हमले (25 मई, 2013) में भी हिड़मा का ही हाथ था। उपलब्ध जानकारी के अनुसार छत्तीसगढ़ में 2013 में विधानसभा चुनाव होने थे। कांग्रेस ने परिवर्तन यात्रा शुरू की थी। 25 मई, 2013 को यात्रा सुकमा से जगदलपुर लौट रही थी। उसी दौरान नक्सलियों ने झीरम घाटी के पास हमला कर दिया। हमले में छत्तीसगढ़ कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल, महेंद्र कर्मा, उदय मूदलियार, योगेंद्र शर्मा समेत कई कांग्रेस नेताओं सहित 32 लोग मारे गए। बहरहाल, हिड़मा जैसे बहुत ही कुख्यात व खतरनाक नक्सली को मार गिराना वाकई हमारे देश के सुरक्षा बलों, पुलिस, प्रशासन व सरकार की बहुत बड़ी उपलब्धि है।सच तो यह है कि शीर्ष नक्सली कमांडर माडवी हिड़मा का खात्मा नक्सलवाद के खिलाफ मिली बहुत बड़ी सफलताओं में से एक कही जा सकती है। उसके एनकाउंटर से सुरक्षाबलों की लगभग दो दशक पुरानी तलाश ही खत्म नहीं हुई है, अपितु इससे नक्सलियों के पहले से ही कमजोर पड़े शीर्ष नेतृत्व पर भी तगड़ी चोट पहुंची है। इससे देश अगले साल यानी कि साल 2026 के 31 मार्च तक नक्सली हिंसा से पूरी तरह मुक्त होने के लक्ष्य के और करीब पहुंच गया है। गौरतलब है कि हिड़मा से पहले इस साल मई में सुरक्षाबलों ने सीपीआई (माओवादी) के जनरल सेक्रेटरी नरसिम्हा उर्फ नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू को मार गिराया था। इसके अलावा इस साल विभिन्न मुठभेड़ों में भी 300 से ज्यादा नक्सली मारे जा चुके हैं, जिनमें पोलित ब्यूरो के कई सदस्य भी है। कहना ग़लत नहीं होगा कि चारों तरफ से पड़ रहे दबाव के बीच नक्सलवाद अब एक छोटे-से इलाके में सिमट कर रह गया है। बहरहाल,नक्सलवाद का खात्मा केवल पुलिस व सुरक्षा बलों की कार्रवाई से नहीं, बल्कि बहुआयामी और संतुलित रणनीति से ही संभव है। इसके लिए सुरक्षा, विकास, विश्वास और शासन चारों मोर्चों पर एक साथ काम करना जरूरी है। अच्छी बात यह है कि सरकार नक्सलियों को समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए लगातार काम कर रही है। सरकार ने नक्सलियों के सामने सरेंडर का रास्ता खुला रखा है।हाल ही में 18 नवंबर 2025 मंगलवार को भी कई नक्सलियों ने हथियार डाले। ये अच्छे संकेत कहें जा सकते हैं। वास्तव में, जब नक्सली आत्मसमर्पण कर समाज की मुख्यधारा से जुड़ेंगे, तो जमीनी स्तर पर बदलाव भी आएगा।यह भी एक तथ्य है कि नक्सली खात्मे के साथ इन इलाकों को विकास भी चाहिए। आज सड़क-बिजली-मोबाइल नेटवर्क जैसे क्षेत्रों में काफी काम हुआ है और इससे भी नक्सलियों की पकड़ कमजोर करने में मदद मिली है। सरकारी आंकड़े बताते है कि 2014 से अभी तक नक्सल प्रभावित इलाकों में 12 हजार किमी से ज्यादा सड़कें बनी है, बैंकों की सैकड़ों-हजारों शाखाएं खोली गई है और स्किल डिवेलपमेंट पर काम किया जा रहा है। इन समन्वित प्रयासों से ही नक्सली जड़ से उखड़ेंगे। वैसे, नक्सल प्रभावित इलाकों में मजबूत सुरक्षा व्यवस्था, आधुनिक तकनीक और बेहतर खुफिया तंत्र जरूरी है, ताकि हिंसक गतिविधियों को रोका जा सके। इसके साथ ही इन क्षेत्रों में तेज विकास-सड़क, बिजली, पानी(बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर ) स्कूल, अस्पताल और रोजगार के अवसर लोगों को मुख्यधारा से जोड़ने में अहम भूमिका निभाते हैं। आदिवासी और स्थानीय समुदायों का विश्वास जीतना भी बेहद आवश्यक है; उन्हें भूमि, वन-अधिकार और आजीविका पर सुरक्षित हक मिलना चाहिए। गलत गिरफ्तारी, प्रशासनिक अत्याचार और भ्रष्टाचार पर रोक लगाकर शासन का भरोसा मजबूत किया जा सकता है। इसके अलावा, जो लोग हिंसा छोड़ना चाहते हैं, उनके लिए संवाद(जैसा कि यह लगातार हो भी रहा है), पुनर्वास, शिक्षा और नौकरी की व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि वे  समाज में सम्मानजनक जीवन जी सकें। अंततः, जब सुरक्षा, विकास, न्याय और विश्वास-ये चारों पहलू मिलकर काम करेंगे, तभी नक्सलवाद का स्थायी समाधान संभव होगा। अंत में निष्कर्षण: यही बात कही जा सकती है कि यह समस्या केवल कानून-व्यवस्था की चुनौती नहीं, बल्कि सामाजिक-आर्थिक असमानताओं की उपज भी है। विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार के अवसर बढ़ाकर ही नक्सल विचारधारा की जमीन कमजोर की जा सकती है। सुरक्षा बलों की सटीक और संवेदनशील कार्रवाई के साथ-साथ संवाद और विश्वास बहाली भी उतनी ही जरूरी है। जब शासन और जनता के बीच भरोसा गहरा होगा, तभी हिंसा का यह चक्र टूट सकेगा। अंततः नक्सलवाद का स्थायी समाधान समावेशी विकास और न्यायपूर्ण प्रशासन में ही निहित है।

सुनील कुमार महला