राजेश जैन
फरवरी 2022 में शुरू हुआ रूस-यूक्रेन युद्ध चौथे साल में चल रहा है। लाखों लोगों की जान जा चुकी है, शहर उजड़ चुके हैं और अब दुनिया की नजरें इस सवाल पर टिकी हैं — आखिर कौन जीत रहा है यह युद्ध? क्या यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की रूस के ताकतवर राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को मात दे रहे हैं या फिर रूस धीरे-धीरे अपनी रणनीति में सफल हो रहा है?
ड्रोन वार ने बदले समीकरण
विश्लेषकों का मानना है कि तुर्की में रूस और यूक्रेन के बीच हुई बातचीत के बाद स्थिति और उलझ गई है। पुतिन ने साफ कर दिया है कि उन्हें सिर्फ एक ही बात स्वीकार है—यूक्रेन का सरेंडर। दूसरी ओर, यूक्रेन कुछ शर्तों पर रियायत देने को तैयार है लेकिन रूस अपने कठोर रुख से टस से मस नहीं हो रहा। यूक्रेन, टेक्नोलॉजी के मोर्चे पर, रूस को कड़ी टक्कर दे रहा है। हाल ही में यूक्रेनी ड्रोन हमलों ने रूस के बमवर्षक विमानों को भारी नुकसान पहुंचाया है। रूस ने सोचा भी नहीं होगा कि यूक्रेन रूस के 4000 किलोमीटर अंदर घुसकर उसके एयरबेस उड़ा सकता है लेकिन उसने ऐसा किया। अब 5 एयरबेस पर हमले का नुकसान तो बड़ा है और रूसी राष्ट्रपति पुतिन का गुस्सा भी स्वाभविक है। ऐसे में रूस-यूक्रेन युद्ध एक बार फिर से भड़कता दिख रहा है और शांति की उम्मीदें लगभग मंद हो गई हैं।
लंबी है युद्ध के हताहतों की सूची
मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि इस युद्ध में अब तक करीब 14 लाख लोग हताहत हो चुके हैं। यूक्रेन के 75 हजार से ज्यादा सैनिक या तो मारे जा चुके हैं या गंभीर रूप से घायल हुए हैं। रूस की कुर्स्क पर भारी कार्रवाई के बाद यूक्रेनी सेना को पीछे हटना पड़ा। इसके बाद रूस ने पलटवार करते हुए सूमी प्रांत पर हमला शुरू कर दिया है। सूमी की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि यदि रूस इस पर कब्जा कर लेता है तो वह सीधे कीव की ओर जमीनी हमला कर सकता है। इससे यूक्रेन की राजधानी की सुरक्षा व्यवस्था कमजोर हो जाएगी। फिलहाल, यूक्रेनी सेना रूस के कब्जे वाले इलाकों में जवाबी कार्रवाई कर रही है। उन्हें अमेरिका और यूरोपीय देशों से तकनीकी और खुफिया जानकारी मिल रही है जिससे उन्हें हमलों की रणनीति बनाने में मदद मिलती है। इसके अलावा, यूक्रेन में अब अपने ही ड्रोन बनाने की फैक्ट्री और विशेषज्ञ तैयार हो चुके हैं।
कम नहीं यूक्रेन की चुनौतियां
हालांकि यूक्रेन को आधुनिक तकनीक और समर्थन मिल रहा है लेकिन उसकी चुनौतियां भी कम नहीं हैं। जैसे ड्रोन हमले रूसी सेना को धीमा कर सकते हैं लेकिन उन्हें पूरी तरह रोक नहीं सकते, – रूस लगातार मिसाइल और बमबारी करता जा रहा है, यूरोप और अमेरिका से हथियारों की सप्लाई बनाए रखना ओर नए हथियारों के लिए सैनिकों को ट्रेनिंग देना भी यूक्रेन के लिए बड़ी चुनौती है।
यह है रूस की रणनीति
रूस की रणनीति अब यह है कि यूक्रेनी सेना की सप्लाई लाइन को काटा जाए, उन्हें घेरा जाए और धीरे-धीरे एक-एक इलाके पर कब्जा किया जाए। इसके लिए रूसी सेना छोटे-छोटे समूहों में काम कर रही है ताकि वे ड्रोन हमलों से बच सकें। यूक्रेन की गैर पारंपरिक रणनीतियां—जैसे लंबी दूरी तक ड्रोन से हमला—रूस के लिए परेशानी बन चुकी हैं, लेकिन रूस अब भी उनके खिलाफ कोई ठोस समाधान नहीं निकाल पाया है। इससे संकेत नहीं मिलते कि रूस हमला धीमा करने वाला है।
क्रीमिया से आगे भी है रूस की मांगें
इस समय रूस ने 5 यूक्रेनी प्रांतों के 19% हिस्से पर कब्जा कर लिया है। इनमें से 12% इलाके पर वह पहले ही 2014 में कब्जा कर चुका था। पुतिन की चाहत है कि यूक्रेन की 25% जमीन रूस के अधीन आ जाए जिसमें एक बफर ज़ोन भी शामिल हो। आपको बता दें कि रूस क्रीमिया पर 2014 में कब्जा कर चुका है लेकिन उसकी मांग सिर्फ क्रीमिया तक सीमित नहीं है, अब वह उन इलाकों को भी यूक्रेन से चाहता है, जिन पर उसकी सेना ने अभी तक कब्जा नहीं किया है, लेकिन रूस अपना दावा करता है। इसके अलावा, वह चाहता है कि युद्ध खत्म होने के बाद यूक्रेन की सेना, उसके हथियार और उसकी सीमाएं नियंत्रित कर दी जाएं—कुछ-कुछ वैसा ही जैसा प्रथम विश्व युद्ध के बाद जर्मनी के साथ किया गया था।
कोई स्पष्ट विजेता, न शांति की आस
इस समय दोनों पक्षों के पास न तो निर्णायक जीत है और न ही शांति का कोई साफ रास्ता। इस लंबी और थकाऊ लड़ाई के बाद भी यह तय नहीं हो पाया है कि कौन जीत रहा है। रूस की धीमी लेकिन स्थायी बढ़त को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, वहीं यूक्रेन भी टेक्नोलॉजी और नाटो समर्थन के दम पर लगातार जवाबी कार्रवाई कर रहा है। अगर किसी तरह से शांति समझौता हो भी जाता है, तब भी यह जरूरी नहीं कि संघर्ष थम जाएगा। जानकारों का मानना है कि यूक्रेन के भीतर गुरिल्ला युद्ध चलता रहेगा और नाटो देश रूस के लिए लंबे समय तक परेशानी बने रहेंगे। फिलहाल दुनिया को इंतजार है कि यह युद्ध कब और कैसे खत्म होगा ?
राजेश जैन