विदेशों में जमा कालाधन की वापसी के यह स्वयंभू पैरोकार

6
172

तनवीर जाफ़री

अन्ना हज़ारे व उनके सहयोगियों द्वारा छेड़े गए जनलोकपाल विधेयक संबंधी आंदोलन की ही तरह बाबा रामदेव द्वारा विदेशों में जमा काला धन वापसी के मुद्दे पर छेड़ा गया आंदोलन भी पूरे देश के लिए आकर्षण व चर्चा का केंद्र रहा। इन आंदोलनों की परिणिति क्या हुई अथवा यह आंदोलन सफल रहे या असफल, ऐसी मुहिम को आंदोलन का नाम दिया भी जाए या नहीं अथवा इसे सफलता या असफलता के पैमाने पर तौला जाए या नहीं इन सभी प्रश्रों से अलग इस वास्तविकता से तो हरगिज़ इंकार किया ही नहीं जा कता कि इस मुहिम ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जनता को जागृत करने, झकझोरने तथा उसे अपने-अपने घरों से निकल कर इस मुहिम में शरीक होने के लिए तो ज़रूर मजबूर किया।

परंतु सवाल यह है कि यदि हम आंदोलन अन्ना को बिना किसी निष्कर्ष पर पहुंचे हुए उसकी इतिश्री मान भी लें तो क्या बाबा रामदेव का काले धन के मुद्दे पर छेड़ा गया आंदोलन सफलता की राह तय कर रहा है? क्या रामदेव इस बार दिल्ली से एक फातेह अथवा विजेता के रूप में व सरकार को नाकों चने चबवा कर वापस हरिद्वार गए। क्या वास्तव में इस कथित आंदोलन का मकसद वही है जैसाकि देखने व सुनने को मिल रहा है या फिर कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना की कहावत को यह आंदोलन चरितार्थ कर रहा है?

इसमें कोई शक नहीं कि हमारे देश के ‘होनहार’ नेताओं ने व ऊंचे रुसूखदारों ने इस देश को लूटने में कोई कसर उठा नहीं रखी है। स्वतंत्रता के समय से ही धनलोभी व धन संग्रह करने की अपार लालसा रखने वाले ऐसे सैकड़ों लोगों ने भारतीय क़ानून से बचने के लिए तथा आम लोगों की नज़रों से छुपाने के लिए अपना अपार धन विदेशी बैंकों में खासकर स्विटज़रलैंड स्थित कई बैंकों में जमा कर रखा है। ज़ाहिर है यह रकम न तो किसी की मेहनत की कमाई है न ही उनकी तनख्‍वाहें हैं। बल्कि यह महज़ भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी,आय से अधिक धन अर्जित किया गया धन ही है।

लिहाज़ा इस विदेशी धन संग्रह को काला धन कहा जाना कतई गलत नहीं है। अब यदि इस अपार धन को वापस लाकर देश की गरीबी दूर किए जाने जैसी लोकलुभावनी बात जनता को समझाई जाए तो निश्चित रूप से देश की आम जनता इस मुद्दे की ओर ज़रूर आकर्षित होगी। और वही होता देखा भी जा रहा है। परंतु सवाल यह है कि क्या यह मुहिम शुद्ध रूप से काला धन वापसी के लिए चलाई गई मुहिम ही है या इसके कुछ और निहितार्थ हैं? इसके लिए सर्वप्रथम तो इस मुहिम के सिपहसालार बाबा रामदेव की आर्थिक हैसियत पर तथा इस मुहिम के दौरान उनके द्वारा दिए जा रहे वक्तव्यों पर नज़र डालनी होगी। कहा जाता है कि मात्र एक दशक पूर्व तक बाबा रामदेव साईकल की सवारी किया करते थे। जो आज अपनी योग साधना के आकर्षण के फलस्वरूप कथित रूप से हवाई जहाज़ के मालिक तक हो गए हैं। जिस देश में कभी किसी ने सुभाषचंद्र बोस, चंद्रशेखर आज़ाद, भगतसिंह व महात्मा गांधी जैसे आदर्श महापुरुषों को स्वतंत्रता आंदोलन में संघर्ष करने हेतु एक कार तक दान में न दी हो उसी देश में आज रामदेव को वायुयान दान में देने वाले लोग देखे जा रहे हैं। खबर है कि उनके किसी भक्त ने उन्हें विदेश में एक पूरा टापू भी दान में दे दिया है। पिछले दिनों रामलीला मैदान में भी उन्होंने बड़ी सफाई के साथ यह बात कह डाली कि उनके भक्तगण देश-विदेश में उन्हें धन व भूमि दान दे रहे हैं और भविष्य में भी देंगे। उनके आलोचक तो उन्हें साफतौर पर काला धन जमा करने वाला तथा अपना आयुर्वेद व किराना व्यापार फैलाने वाला एक व्यापारी बता रहे हैं।

स्वयं को फ़क़ीर कह कर लोगों की हमदर्दी हासिल करने की कोशिश करने वाले बाबा रामदेव शायद देश के पहले ऐसे तथाकथित फ़क़ीर होंगे जिनके पास इतनी अकूत संपत्ति है। दूसरी ओर उनके परम सहयोगी बालकिशन को भी कई गैरकानूनी मामलों में जेल जाना पड़ा। स्वयं रामदेव का व्यापार भी संदेह के घेरे में हैं तथा कई बार उनके विभिन्न प्रतिष्ठानों पर छापे भी पड़ चुके हैं व जांच-पड़ताल हो चुकी है। इतना ही नहीं बल्कि वे स्वयं अपने योगगुरु की संदिग्ध अवस्था में हुई गुमशुदगी के लिए भी आलोचना का सामना कर चुके हैं व इस मामले में उन्हें भी संदिग्ध समझा जा चुका है। क्या इस प्रकार का नेतृत्व देश को काला धन विदेशों से वापस दिला सकता है जोकि स्वयं ही धन संग्रह में लगा हो? क्या बाबा रामदेव को दान देने वालों में सभी दानदाता ऐसे हैं जो उन्हें अपनी मेहनत व हक-हलाल की कमाई से ही दान देते हैं? यह हवाई जहाज़ और टापू इसके अतिरिक्त तमाम ज़मीनें क्या यह सब दानदाताओं की मेहनत की कमाई की संपत्ति है?

13 अगस्त को रामलीला मैदान में बाबा रामदेव के साथ भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी व राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन प्रमुख शरद यादव भी नज़र आए। मज़े की बात तो यह है कि यह नेता भी विदेशों से काला धन वापसी के ज़बरदस्त पैरोकार नज़र आए। और भी कई एनडीए नेताओं व एनडीए घटक दलों का समर्थन बाबा रामदेव को मिला। मुलायम सिंह व मायावती जैसे आय से अधिक संपत्ति के आरोपी भी इस मुद्दे पर बाबा रामदेव के सुर से सुर मिलाते दिखाई दिए। अब ज़रा इन नेताओं की विश्वसनीयता को भी मुलाहिज़ा $फरमाईए। जिस काला धन वापसी के मुद्दे पर आज यह नेता कांग्रेस हटाओं देश बचाओ, भ्रष्टाचार मिटाओ देश बचाओ और काला धन वापस लाओ जैसे नारे लगा रहे हैं यही नेता एनडीए की सरकार में सात वर्षों तक सत्ता में रहे। यदि यह इन पैसों को देश में वापस लाए जाने के लिए गंभीर थे तो क्या उस समय कांग्रेस पार्टी, सोनिया गांधी या फिर राहुल गांधी ने इन्हें विदेशों से काला धन वापस लाने व इसे राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करने के लिए मना किया था? इस मुहिम में शरद यादव भी पेशपेश थे। यह भी परिचय के मोहताज नहीं हैं। याद कीजिए 1995 का वह समय जबकि लालकृष्ण अडवाणी सहित देश के कई प्रमुख नेताओं का नाम जिनमें कांग्रेस के भी कई नेता शामिल थे जैन हवाला कांड में सामने आया था। शरद यादव भी उनमें से एक थे। स्वयं शरद यादव ने उस समय मीडिया के समक्ष यह स्वीकार भी किया था कि कोई व्यक्ति आया और उन्हें तीन लाख रुपये दे गया था। इन नेताओं पर आरोप यह भी था कि इन्होंने ऐसे हवाला कारोबारियों से यह पैसे लिए थे जोकि कश्मीरी अलगाववादियों व चरमपंथियों को धन मुहैया कराया करते थे। स्वयं नितिन गडकरी जी भी कर्नाटक के रेड्डी बंधुओं के विशेष शुभचिंतक हैं और $खुद भी एक व्यापारी हैं। क्या इस प्रकार का संदिग्ध नेतृत्व बाबा रामदेव को साथ लेकर विदेशों में जमा काला धन वापस लाने हेतु विश्चसनीयस माना जा सकता है?

दरअसल काले धन का मुद्दा इस मुहिम के स्वयंभू पैरोकारों के चलते महज़ एक लोकलुभावन व आकर्षक मुद्दा मात्र ही प्रतीत होता है। यह सारी कवायद,शोर-शराबा, होहल्ला महज़ राजनैतिक है तथा इस मुहिम में शामिल सभी नेताओं व राजनैतिक दलों द्वारा एक-एक तीर से कई-कई निशाने साधे जा रहे हैं। मंहगाई व भ्रष्टाचार के आरोपों से जूझती कांग्रेस पार्टी को धक्का देकर सत्ता से हटाने का प्रयास उन राजनैतिक शक्तियों द्वारा किया जा रहा है जो स्वयं यह महसूस कर रहे हैं कि संभवत: 2014 में भी सत्ता उनके हाथों में नहीं आने वाली। इसलिए दुश्मन का दुश्मन अपना दोस्त वाली कहावत चरितार्थ होते हुए देखी जा रही है। सीधे तौर पर कांग्रसे पार्टी, सोनिया गांधी व राहुल गांधी को निशाना बनाया जा रहा है। स्वयं संदिग्ध लोगों द्वारा तथा दूसरों की आलोचनाओं का सामना करने वाले लोगों द्वारा स्वयं को तो राष्ट्रभक्त के रूप में पेश करने की कोशिश की जा रही है जबकि नेहरू-गांधी परिवार को देश का सबसे बड़ा अपराधी साबित करने का प्रयास किया जा रहा है। बाबा रामदेव के अनशन की समाप्ति पर 14 अगस्त को रामजेठमलानी ने जिस प्रकार राहुल गांधी पर यह आरोप लगाया कि उनका पैसा भी विदेशी बैंकों में जमा है तो यदि ऐसा है तो उसे भी न सिर्फ स्वेदश वापस आना चाहिए बल्कि राहुल गांधी के इस संबंध में देश के समक्ष अपनी स्थिति भी स्पष्ट करनी चाहिए। पंरतु बिना किसी ठोस प्रमाण के या फकत राजनैतिक विद्वेष के चलते इस प्रकार के मुद्दे उछालकर आंदोलन खड़ा करना व अपने राजनैतिक स्वार्थ साधने के लिए आम जनता को वरगलाना व उसे भावनात्मक रूप से अपने साथ जोडऩे का प्रयास करना मुनासिब नहीं है।

6 COMMENTS

  1. तन्वीर जाफ्रि की सोच बहुत तन्ग है. ठीक दिमाग से येह नहि सोच सक्ते.

    सुरेश माहेशवरी

  2. जाफरी साहेब आप ने बड़ी कुशलता से अन्ना और बाबा के आन्दोलन, व्यक्तित्व व नीयत के बारे में संदेह पैदा करने का प्रयास किया है. और भी अनेकों ने ऐसा करके अपनी विश्वसनीयता पर जन-मन में संदेह जगाया है या यूँ कहें की अपनी खुद की विश्वनीयता को आघात पहुंचाया है. महोदय यह तो बतलाईये की सोनिया सरकार की अभूतपूर्व लूट से देश को बचाने के विकल्पों पर सोचना और प्रयास करना कैसे गलत हो गया ? सोनिया सरकार से बहुत अच्छी नहीं तो कुछ अधिक अच्छी सरकार बनाने के प्रयास देश के लोग कर रहे हैं तो गलत क्या है ? परिवर्तन चाहने की इस जन भावना का नेतृत्व वे लोग करने का प्रयास कर रहे हैं जिनकी छवी वर्तमान नेताओं से तो बहुत अछि है. नए उभर रहे नेतृत्व को , नए प्रयास या प्रयोग की प्रक्रिया में बाधक बनाने का कोई जायज़ कारण नज़र नहीं आता. जहां तक बाबा पर छापे डालने व जाँच का प्रश्न है तो वह तो वर्तमान सरकार हर विरोधी के विरुद्ध कर रही है. कार्यवाही नहीं करती तो आतंकियों व अरबों रुपये के घोटाले बाजों के विरुद्ध नहीं करती क्यूंकि वे इन्ही के साथी तो होते हैं. मजबूरी में बहुत दबाव पड़ने पर करे भी तो आधी-अधूरी, दिखावे मात्र की जांच व कार्यवाही.
    – बाबा रामदेव के पास जो भी पैसा है उसका हिसाब तो वे कई बार सरकार जनता को सार्वजनिक रूप से दे चुके हैं. आपमें साहस हो तो ज़रा सोनिया जी और राहुल बाबा ( तथा इनके साथियों ) के अरबों रुपये के काले धन का हिसाब मांगिये. कोई संदेह हो तो गूगल पर उपलब्ध डा. सुब्रमनियम स्वामी द्वारा प्रमाणों सहित लगाए दहला देने वाले आरोप देखिये. बाबा रामदेव और अन्ना जी जैसों में यदि कोई कमी है भी तो सोनिया समूह के अपराधों के पहाड़ के आगे तो वह एक तिनके के सामान ही होगा. यदि आप पूर्वाग्रहों से ग्रसित नहीं और कोई निहित स्वार्थ नहीं तो ज़रा वह सब पढ़िए और तथ्यों के आधार पर कुछ सही, सार्थक व कल्याणकारी लिखिए. हम, आप जीवन की अंतिम संध्या में हैं. अब सत्य का साथ छोड़ कर आखिर क्या पाना है ? सदर आपका अपना, – राजेश कपूर.

  3. सोनिया जी और राहुल तथा कांग्रेस के प्रति लेखक महोदय की सहानुभूति समझ के परे है.जब विश्व की पत्रिकाएं सोनियाजी की सम्पति के आंकड़े छापती हैं तो उनके द्वारा कोई विरोध या प्रतिकिरिया नहीं दी जाती. इसका अर्थ है कि वे इस तथ्य को स्वीकार करती हैं ,और यदि करोड़ों कि वह राशि भारत के बैंकों में नहीं तो विदेशों के बैंक में है, उसका कोई स्रोत तो होगा, और यदि वह होता तो फिर वह देश के बैंकों में होती.यही हालत अन्य लोगों की है.कांग्रेस खुद कला धन वापस लेन की बात कहती है, यह अलग है की प्रयास केवल दिखने के होतें हैं, जब अपने ही लोग फंसे हो तो सक्रियता कैसे ? जब वह धन वहां से निकल कर अन्य सुरक्षित जगहों पर नहीं चला जाता ,तब तक यही टालमटोल की हालत रहेगी और उनके समर्थक दूसरों को कोसते रहेंगे अपने आकाओं को बचाते रहेंगे ,और करना भी चाहिए

  4. आदरणीय,
    लेख अच्छा है, किंतु निवेदन है कि अन्ना और रामदेव के उठाए सवालों को राहुल जी
    और कांग्रेस क्यों नहीं उठाते अर्थात आप उसी कुरसी को नहीं उठा सकते जिस पर आप बैठे हैं।
    आपके लेख की आखिरी दो पंक्तियों के विषम में निवेदन है कि- क्या कांग्रेस ने यह सब नहीं किया,गरीबी हटाओ- हट गई गरीबी आदि आदि।
    हमाम में सब नंगे हैं मेरे भाई, देश हित में अन्ना रामदेव की मुहिम का समर्थन करें।

    सादर

  5. इसका मतलब तो ये है के किसी भी ऐसे आदमी को कोइ ऐसी मांग नही करनी चाहिए जिस पर वह खुद खरा नही उतरता हो. तो क्या सरे सांसद दूध के धुले हैं जो तरेह तरेह के कानून बनाने मांग करते हैं और बनाते भी हैं. होना ये चाहिए के जिस कानून की जरूरत पूरा de

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress