जिन्दगी की कहानी

जिन्दगी की कहानी

जिन्दगी के रंग में

जिन्दगी के संग में उमेश कुमार यादव

नये नये ढंग में

नये नये रुप में

संगी मिलते रहे

मौसम खीलते रहे

मौसमों के खेल में

जिन्दगी गुज़र गई

संवर जाये जिन्दगी

इस होड़ में लगे रहे

जिन्दगी सम्भली नहीं

और जिन्दगी निकल गई ।

जिन्दगी की आस में

जिन्दगी भटक गई ।

++

जिन्दगी की आस में

जिन्दगी गुजर गई

आगे का सोचा नहीं

और जिन्दगी बदल गई

आस थी कुछ खास थी

कुछ करने की चाह थी

चाह पूरी न हुई

और जिन्दगी सहम गई

सच झूठ के द्वंद में

जिन्दगी मचल गई

2

हार जीत की सोच में

जिन्दगी बिगड़ गई

हिन्द में हो हिन्दी ही

अरमान धरी ही रह गई

++

क्या करें क्या न करें

यह सोचते ही रह गये

सोच ही कर क्या करें

जब जिन्दगी ठहर गई

पढ़ने की होड़ में

क्या क्या न जाने पढ़ गये

बिना किसी योजना के

पढ़ते ही रह गये

अपनी सभ्यता भूल

पाश्चात्य पर जा रम गये

सोचकर ही क्या करें जब

जिन्दगी बदल गई

जिन्दगी की आस में

जिन्दगी भटक गई ।

—-

क्या करने आये थे

किस काम में हम लग गये

सत्कर्म छोड़कर

क्या क्या करते रह गये

परमार्थ का कार्य छोड़

निज स्वार्थ में ही रम गये

क्या करने आये थे

क्या क्या करते रह गये ।

3

धन के अति लोभ में

जिन्दगी बिगड़ गई

इधर गई उधर गई

जाने किधर किधर गई

हाथ मलते रह गये

और जिन्दगी निकल गई

जितने हम दूर गये

दूरियाँ बढ़ती गई

फ़ाँसलों की फ़ाँद में

फ़ँसते चले गये

जिन्दगी बेचैन थी

जिन्दगी बेजान थी

फ़ैसलों की आड़ में

बहुत परेशान थी

क्या करें क्या ना करें

यह सोचकर हैरान थी

जिन्दगी की आस में

जिन्दगी निकल गई

दिन गिनते रह गये

और उम्र सारी ढल गई

हम देखते रह गये

और जिन्दगी बदल गई

जिन्दगी की आस में

जिन्दगी भटक गई ।

4 COMMENTS

  1. कवि उमेश यादव जी,
    मेरा कुछ कहना शायद आपको अतिशयोक्ति लगे ,
    रचना पढ्ने से यह एक हास्य गीत भी प्रतित नही होता है , निराशा व कुन्ठाओ के एक बचकाने पन से ज्यादा मुझे इसमे कुछ नही दिखा ।.
    अर्थ की सार गर्भिता ,प्रवाह ,और अभिव्यक्ति मे संतुलन का अभाव है ,परन्तु लय का तालमेल अच्छा है । मै कोइ बडा कवि व समीक्षक.
    नही हू परन्तु जो मुझे दिखा वह लिखना मेरा कर्तव्य बनता है । आपका प्रयास प्रशन्सनिय है , और भी बेहतर, सकारात्मक ,समाजोपयोगी.
    व सार्थक लिखे । धन्यवाद ।.

  2. वाह वाह उमेश जी आप तो कवि हो गए
    असल में संसार में जो भी झेलता है वह कवि होता जाता है
    और जितना ज्यादा झेलता जाता है उतना ही कवित्व निखरता चलता है
    अब बताइए आपको बधाइयों के साथ-साथ क्या हम आशा व्यक्त करें कि
    आप खूब झेलें और हमें अच्छा पढ़ने के मिले .
    शुभकामनाएं

  3. ह्रदय से निकली उदगार मन भानाओं को खोल देती है और वही बातें मन को झगझोर कर एक नई पहेली बन जाती है जो मन को तृप्त कर शांती पहुंचाती है साहित्य समाज को नई दिशा प्रदान करती है …

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,211 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress