‘कटहल’ का स्वाद और ‘12th फेल’’ की कामयाबी

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प्रो. मनोज कुमार

मध्यप्रदेश सिनेमा के लिए हमेशा से ऊर्वरा भूमि रही है. संभवत: अपने जन्म के साथ ही रजतपट पर मध्यप्रदेश का दबदबा रहा है. साल 2025 के राष्ट्रीय पुरस्कारों में कटहल और  ‘12th फेल’’ नें पुरस्कार जीत कर यह एक बार फिर प्रमाणित हो गया कि रजतपट में मध्यप्रदेश का कोई सानी नहीं. इन पुरस्कारों के साथ ही मध्यप्रदेश में फिल्म सिटी को आकार लेने के दावों को एक और वजह मिल गई है. ‘कटहल’ के युवा निर्देशक और पटकथा लेखक मध्यप्रदेश के हैं. युवा निर्देशक यशोवर्धन एवं पटकथा लेखक अशोक मिश्र का रिश्ता पिता-पुत्र का है. खास बात यह है कि ‘कटहल’ यशोवर्धन निर्देशित पहली फिल्म है. इसी तरह ‘12ह्लद्ध फेल’ फेल एक ऐसे युवा की सच्ची कहानी है जिसने अपने आत्मविश्वास से नाकामयाबी को कामयाबी में बदल दिया. ऐसे युवक मनोज कुमार शर्मा का रिश्ता मध्यप्रदेश से हैं और वह वर्तमान में भारतीय पुलिस सेवा के उच्चाधिकारी हैं. उनकी कहानी को अनुराग पाठक ने ऐसे पिरोया कि ‘12th फेल’ ने ना केवल दर्शकों का दिल जीत लिया बल्कि एक बड़े निराश युवावर्ग में उत्साह का संचार किया.

‘कटहल’ का स्वाद और ‘12th फेल’ की कामयाबी से मध्यप्रदेश के सिने प्रेमियों का चेहरा खिल उठा. यह स्वाभाविक भी है और होना भी चाहिए. इस कामयाबी के बहाने फिल्म सिटी की संभावना और मध्यप्रदेश का रजतपट पर योगदान को भी समझा जा सकता है. मध्यप्रदेश हमेशा से सिनेमा के लिए मुफीद रहा है. शोमेन राजकपूर से लेकर दिग्गज फिल्म निर्देशक प्रकाश झा को मध्यप्रदेश लुभाता रहा है. यही नहीं, राजकपूर, पे्रमनाथ और सदी के नायक कहे जाने वाले अमिताभ बच्चन का ससुराल भी मध्यप्रदेश है. लता मंगेशकर से लेकर किशोर कुमार, अशोक कुमार, अनूप कुमार, जया भादुड़ी, निदा फाजली, अन्नू कपूर जैसे अनेक नाम लिए जा सकते हैं तो पटकथा लेखकों में जावेद अख्तर और सलीम को कौन भुला सकता है? पीयूष मिश्रा की अदायगी, लेखन और आवाज के तो युवा पीढ़ी दीवानी है. यह तो थोड़े नाम हैं जिनके बिना रजतपट पर रंग नहीं चढ़ता है. नए समय में यशोवर्धन जैसे निर्देशक उम्मीद जगाते हैं. यहां इस बात का स्मरण कर लेना चाहिए कि बीते एक दशक में अनेक मल्टीस्टारर फिल्मों और टेलीविजन सीरियल्स के साथ वेबसीरिज का निर्माण हो रहा है. यह मध्यप्रदेश के कलाकारोंं, पटकथा लेखकों और तकनीकी जानकारों के लिए सुनहरा अवसर है. इस संभावना के साथ मध्यप्रदेश में फिल्मसिटी बनाने के लिए लम्बे समय से प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन अभी तक फिल्मसिटी की योजना मूर्तरूप नहीं ले सका है. यह एक टीस देने वाली बात है.

उल्लेखनीय है कि कभी मध्यप्रदेश फिल्म विकास निगम नाम से फिल्मों निर्माण एवं इससे संबंधित पक्षों को प्रोत्साहित करने की मकबूल संस्था थी. अनेक कारणों और नाकामी के चलते इसे बंद कर दिया गया. फिल्म विकास निगम के विसर्जन के साथ सिनेमा की असीमित संभवनाएं भी हाशिए पर चली गई. सबसे बड़ा नुकसान हुआ फिल्म विकास निगम द्वारा प्रकाशित गंभीर वैचारिक पत्रिका ‘पटकथा’ का अवसान. फिल्मसिटी के साथ इन सबको पुर्नजीवन देने की एक बार फिर जरूरत महसूस की जा रही है. मध्यप्रदेश में सिनेमा और फिल्मसिटी की जमीन तलाशने वाले श्रीराम तिवारी के हिस्से में फिल्म विकास निगम की जिम्मेदारी थी और आज वे मुख्यमंत्री डॉ. मोहन  यादव के संस्कृति सलाहाकार हैं तो सहज अपेक्षा होती है कि रजतपट पर मध्यप्रदेश की सशक्त उपस्थिति दर्ज कराने और मध्यप्रदेश की सिने प्रतिभाओं को तराशने के लिए अपने पुरानी पहल को आगे बढ़ाएं. 

प्रसंगवश याद दिला देना जरूरी हो जाता है कि अगस्त 2025 में अपने पचास साल पूरा करने जा रही फिल्म ‘शोले’ का मध्यप्रदेश कनेक्शन रहा है. फिल्म में अमितभ बच्चन, जया भादुड़ी, जगदीप ने अभिनय किया तो सलीम-जावेद की जोड़ी भी मध्यप्रदेश से ही है. और तो और गब्बर को कैसा अभिनय करना है, यह पाठ भी अमजद खान ने देश के सुपरिचित पत्रकार एवं लेखक तरूण कुमार भादुड़ी की पुस्तक ‘अभिशप्त चंबल’ से किया. इस समय भोपाल में रंगमंच में सक्रिय राजीव वर्मा एवं रीता (भादुड़ी) वर्मा का भी हिन्दी सिनेमा में योगदान रहा है. अनेक फिल्मो में वर्मा दंपत्ति ने अपनी छाप छोड़ी है. इसी तरह वरिष्ठ रंग निर्देशक संजय मेहता भी रंगमंच के साथ लगातार फिल्मों में काम कर रहे हैं. हालिया ‘धडक़न-2’ में भी उनकी भूमिका उल्लेखनीय है. ऐसे में मध्यप्रदेश में फिल्म सिटी की अनिवार्यता हो जाती है.

 देश का दिल मध्यप्रदेश सिनेमा के लिए सौफीसद माकूल है. लोकेशन के लिहाज से, अभिनय और कथानक की दृष्टि से और सुरक्षा और सुरक्षित होने की दृष्टि से. प्रकाश झा ने आरक्षण, राजनीति और चक्रव्यूह जैसी बड़ी फिल्मों का निर्माण मध्यप्रदेश की जमीं पर किया. इसके बाद उनकी वापसी कभी होगी, किसी नए विषय को लेकर लेकिन तब तक मझोले और छोटे फिल्मकार नियमित रूप से मध्यप्रदेश में सक्रिय हैं, उन्हें सुविधा मिलेगी तो मध्यप्रदेश की सिनेमा परिदृश्य उन्नत होगा. फिल्मसिटी बन जाने से टैक्स के रूप में ना केवल सरकार को राजस्व का लाभ होगा बल्कि कलाकारों को भी उचित मेहनताना मिल सकेगा. उम्मीद की जाना चाहिए कि सबके प्रयासों से फिल्मसिटी जल्द ही आकार लेगा. तब हम हर वर्ष राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में बार बार ‘कटहल’ का स्वाद और ‘12th फेल’ की कामयाबी का जश्र मना सकेंगे.

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मनोज कुमार
सन् उन्नीस सौ पैंसठ के अक्टूबर माह की सात तारीख को छत्तीसगढ़ के रायपुर में जन्म। शिक्षा रायपुर में। वर्ष 1981 में पत्रकारिता का आरंभ देशबन्धु से जहां वर्ष 1994 तक बने रहे। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से प्रकाशित हिन्दी दैनिक समवेत शिखर मंे सहायक संपादक 1996 तक। इसके बाद स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कार्य। वर्ष 2005-06 में मध्यप्रदेश शासन के वन्या प्रकाशन में बच्चों की मासिक पत्रिका समझ झरोखा में मानसेवी संपादक, यहीं देश के पहले जनजातीय समुदाय पर एकाग्र पाक्षिक आलेख सेवा वन्या संदर्भ का संयोजन। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी पत्रकारिता विवि वर्धा के साथ ही अनेक स्थानों पर लगातार अतिथि व्याख्यान। पत्रकारिता में साक्षात्कार विधा पर साक्षात्कार शीर्षक से पहली किताब मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी द्वारा वर्ष 1995 में पहला संस्करण एवं 2006 में द्वितीय संस्करण। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय से हिन्दी पत्रकारिता शोध परियोजना के अन्तर्गत फेलोशिप और बाद मे पुस्तकाकार में प्रकाशन। हॉल ही में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा संचालित आठ सामुदायिक रेडियो के राज्य समन्यक पद से मुक्त.

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