राजनीति

कर्ज, कर और कुशासन का त्रिकोण! 

सोनम लववंशी 

हिमाचल प्रदेश की राजनीति और प्रशासनिक दिशा जिस मोड़ पर खड़ी है, वहाँ पिछले तीन वर्षों की सरकारी कार्यशैली राज्य की पीढ़ियों पर गहरा असर छोड़ती दिखाई देती है। 11 दिसंबर 2025 को सुक्खू सरकार अपने तीन वर्ष पूरे कर रही है, किंतु इस दौरान एक पहले से संतुलित और स्थिर राज्य ऐसा ढलान महसूस कर रहा है जिसकी कल्पना भी हिमाचल जैसे शांत प्रदेश के लोगों ने न की थी। वित्तीय संकट, अव्यवस्थित नीतियाँ, ध्वस्त प्रशासनिक ढांचा, बढ़ती बेरोजगारी, आपदा प्रबंधन की विफलता और उद्योगों का पलायन। इन सभी ने मिलकर हलचल भरी स्थिति पैदा कर दी है जिस पर अब न केवल विपक्ष, बल्कि आम नागरिक भी गंभीर सवाल उठा रहे हैं। आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के अनुसार बेरोजगारी दर 4.4 फीसदी तक पहुँच चुकी है, जबकि 15-29 आयु वर्ग में स्थिति भयावह दिखती है। सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के सर्वेक्षण के मुताबिक राज्य का हर तीसरा युवा नौकरी से वंचित है। अप्रैल-जून 2025 की तिमाही में युवा बेरोजगारी 29.6 प्रतिशत दर्ज की गई जो राष्ट्रीय औसत 14.6 प्रतिशत से दुगुनी रही। यह आँकड़ा सिर्फ बेरोजगारी नहीं दर्शाता, बल्कि यह उस टूटते विश्वास का दस्तावेज बनता जा रहा है जिसके सहारे युवाओं ने “5 लाख नौकरियों’’ जैसी घोषणाओं को एक उम्मीद की तरह स्वीकार किया था। राजनीतिक आश्वासन जितनी आसानी से दिए गए, उतनी ही तेजी से खोखले साबित हुए और अब इन्हें युवा पीढ़ी राजनीतिक भाषणों की एक औपचारिक रस्म के रूप में देखने लगी है।

दरअसल राज्य की औद्योगिक स्थिति भी लगातार कमजोर हो रही है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार पिछले तीन वर्षों में बिजली दरों में तेज वृद्धि देखने को मिली। ऐसी फैक्ट्रियों का बिजली बिल जो पहले लगभग 25 लाख रुपये आता था, अब 50 लाख रुपये से भी ऊपर पहुँच गया है। ऊर्जा लागत में इस असंतुलन ने उद्योगपतियों का मनोबल तोड़ दिया है और वे क्रमशः अन्य राज्यों का रुख कर रहे हैं जहाँ नीतियाँ स्थिर और उद्योग-अनुकूल मानी जाती हैं। यह पलायन हिमाचल की अर्थव्यवस्था पर दोहरा प्रहार कर रहा है। रोजगार घट रहा है और राजस्व में गिरावट आ रही है। पर्यटन और कृषि पर अधिक निर्भर रह चुके हिमाचल ने बीते वर्षों में औद्योगिकीकरण की दिशा में एक स्थिर आधार बनाने की कोशिश की थी, किंतु वर्तमान परिस्थितियों ने उस बनती संरचना को लगभग ध्वस्त कर दिया है। वित्तीय अव्यवस्था का हाल यह है कि सरकार अपनी कर्ज सीमा पूरी कर चुकी है। वर्ष 2025 में पहले से लिए गए 7,200 करोड़ रुपए के भारी कर्ज के बाद और 350 करोड़ रुपए की माँग नई दिशा दिखाने के बजाय इस बात का प्रतीक बनती है कि विकास योजनाएँ ठप हैं और पूरा ढांचा कर्ज पर निर्भर होता जा रहा है। करोड़ों की पुनरावृत्ति जिस सहजता से हो रही है, उससे स्पष्ट संकेत मिलता है कि सरकार के पास राजस्व बढ़ाने की ठोस रणनीति नहीं है। नीतिगत अनिर्णय ने राज्य की आर्थिक रीढ़ कमजोर कर दी है और जनता पर टैक्स बढ़ाकर बोझ डाला जा रहा है। दूध पर 0.10 पैसे का सेस, बिजली पर पर्यावरण सेस, डीज़ल की ऊँची कीमतें और 125 यूनिट मुफ्त बिजली योजना का समाप्त होना। इन सबने मध्यवर्गीय परिवारों की कमर तोड़ दी है।

चुनावी वादों का हश्र भी जनता के सामने खुल चुका है। महिलाओं के लिए 1,500 रुपए मासिक भत्ता, 300 यूनिट मुफ्त बिजली और 5 लाख नौकरियों जैसे वादे अब तक लागू न हो सके। स्वयं सूबे की सरकार के मंत्रियों ने स्वीकार किया कि “फंड उपलब्ध नहीं है,” जो यह दर्शाता है कि गारंटियाँ बिना वित्तीय विश्लेषण और बिना दीर्घकालिक योजना के घोषित की गई थीं। इस स्वीकारोक्ति के बाद हिमाचल प्रदेश की कांग्रेस सरकार की राजनीतिक विश्वसनीयता को गंभीर चोट पहुँची है। इतना ही नहीं इन तीन वर्षों में अपराध और नशा तस्करी की स्थिति तेजी से बिगड़ी है। हिमाचल का शांत पहाड़ी क्षेत्र अब “ड्रग कॉरिडोर” के रूप में चर्चा में आ रहा है। पिछले तीन वर्षों में 5,000 से अधिक नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस (एनपीडीएस) के मामले दर्ज हुए, जबकि पूरे प्रदेश में केवल 5 नशामुक्ति केंद्र हैं। यह संख्या समस्या की गंभीरता की तुलना में अत्यंत कम है। नशे का विस्तार न केवल कानून व्यवस्था की कमजोरी दिखाता है, बल्कि यह युवा पीढ़ी के स्वास्थ्य, सामाजिक ढाँचे और परिवारों की स्थिरता को गहरी क्षति पहुँचा रहा है। सूबे की आपदा प्रबंधन की स्थिति भी किसी परीक्षा में असफल छात्र जैसी दिखती है। 2025 में कमजोर पहाड़ियों पर अवैध निर्माण, न्यायालयों की चेतावनियों की अनदेखी और खराब प्रशासनिक योजना के कारण 300 से अधिक लोगों की जान गई और लगभग 2,600 करोड़ रुपए का भारी नुकसान हुआ। केंद्र सरकार द्वारा जारी 2,006 करोड़ रुपए की राहत राशि का उपयोग भी सुस्त प्रशासनिक कार्रवाइयों के चलते प्रभावी ढंग से नहीं हो सका। राहत वितरण, पुनर्वास, सड़क और पुलों की मरम्मत, सब कुछ कागज़ी फाइलों तक सीमित रह गया और जनता अपनी पीड़ा में अकेली खड़ी रही।

इन सबके बीच राज्य का राजनीतिक नेतृत्व एक-दूसरे पर आरोप मढ़ने में व्यस्त रहा। इस टकराव ने प्रशासन में ठहराव पैदा किया, जिसके चलते सरकारी मशीनरी जमी हुई दिखी। एक मजबूत और स्थिर शासन मॉडल पर आधारित हिमाचल, जिसे कभी शांतिपूर्ण, स्वच्छ और व्यवस्थित प्रशासन के लिए जाना जाता था, आज देश के उन प्रदेशों की सूची में शामिल हो रहा है जो आर्थिक और प्रशासनिक अव्यवस्था से जूझ रहे हैं। इन तीन वर्षों की तुलना जब पूर्ववर्ती शासन से की जाती है, तो कई नागरिक खुलकर कहने लगे हैं कि राज्य बेहतर स्थिति में था। बुनियादी ढाँचे से लेकर वित्तीय अनुशासन तक, अनेक मोर्चों पर वह एक व्यवस्थित दिशा में बढ़ रहा था। आज की स्थिति में लोग यह महसूस कर रहे हैं कि घोषणाओं और वास्तविक क्रियान्वयन के बीच खाई बढ़ती जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश पिछले 11 वर्षों से विकसित भारत के निर्माण के संकल्प के साथ आगे बढ़ रहा है। केंद्र का विकास-केन्द्रित दृष्टिकोण, युवा-उन्मुख कार्यक्रम और बुनियादी ढाँचे में तेज सुधार राष्ट्र को नई ऊँचाइयों की ओर ले जा रहे हैं। ऐसे समय में हिमाचल की वर्तमान अव्यवस्थित स्थिति और भी स्पष्ट रूप से सामने आती है क्योंकि राष्ट्रीय प्रगति के बीच राज्य पीछे जा रहा है।

हिमाचल के लोगों ने 2022 में विश्वास के साथ कांग्रेस की गारंटियों को स्वीकार किया था। उन्हें लगा था कि राज्य विकास, रोजगार और स्थिरता की नई दिशा पाएगा। तीन वर्षों की यह यात्रा अब उन्हें ऐसी वास्तविकता दिखा रही है जहां आर्थिक संकट, बढ़ती बेरोजगारी, अपराध, कर्ज और अव्यवस्था ने उम्मीदों को निचोड़ कर रख दिया है। फलस्वरूप हिमाचल आज देश के सबसे कमजोर और सबसे खराब तरीके से संचालित राज्यों की श्रेणी में गिना जा रहा है। राजनीति का अंतिम लक्ष्य जनता की आकांक्षाओं की पूर्ति होता है। यदि शासन जनता के जीवन को सरल बनाने के बजाय बोझ बढ़ाए, वादों को अधूरा छोड़े, युवाओं को बेरोजगारी में धकेले और संसाधनों का दुरुपयोग करे, तो ऐसी सरकार जनता के लिए बोझ बन जाती है। हिमाचल के नागरिक आज उसी बोझ का अनुभव कर रहे हैं। इसके अलावा राज्य की वर्तमान स्थिति केवल राजनीतिक विफलताओं का दस्तावेज नहीं है, यह भविष्य के लिए चेतावनी है। ऐसे में समय आ गया है कि हिमाचल अपनी दिशा सुधारे, शासन सुधार की ओर लौटे और उन मूल्यों को पुनर्जीवित करे जिनकी वजह से यह प्रदेश हमेशा उच्च मानकों वाला माना जाता रहा है।