राजेश कुमार पासी
अंतरराष्ट्रीय संबंधों और कूटनीति के मामले में भारत ने जो किया है और कर रहा है वो अद्भुत है, इसलिए पूरी दुनिया इससे हतप्रभ है। विशेष तौर पर अमेरिका और यूरोपीय देश इससे अचंभित है कि भारत इतना ताकतवर कैसे हो सकता है जो एक साथ उन्हें चुनौती दे रहा है। ये तो नहीं कहा जा सकता कि भारतीय विदेश नीति का डंका बज रहा है लेकिन भारतीय विदेश नीति चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना कर रही है । इस समय भारतीय विदेश नीति के सामने बड़ी कठिन चुनौतियां खड़ी हुई है लेकिन धीरे-धीरे उनसे निपटा जा रहा है ।
संतुलन और स्वायत्तता भारतीय विदेश नीति की विशेषता रही है लेकिन अब इसमें आक्रामकता भी जुड़ गई है । इसके अलावा भारतीय संस्कृति की छाप भी विदेश नीति पर रही है जिससे भारत ने किसी भी देश के साथ परस्पर हितों पर आधारित रिश्ते निभाये हैं. भारतीय विदेश नीति स्वार्थ से सदा दूर रही है । ग्लोबल रिश्ते हमेशा हितों पर आधारित होते हैं, इसलिए वैश्विक राजनीति में कहा जाता है कि कोई किसी का स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता, स्थायी सिर्फ हित होते हैं । न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर, ये भारतीय विदेश नीति का आधार स्तंभ रहा है जबकि 1962 में हमें इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी । हमने दोनों गुटों से दूर रहने की नीति अपनाई थी, जिसके कारण चीनी आक्रमण के समय कोई हमारे साथ खड़ा नहीं हुआ । नेहरू जी को अमेरिका के सामने गिड़गिड़ाना पड़ा, तब जाकर अमेरिका हमारे लिए खड़ा हुआ । हमारा झुकाव सोवियत संघ की तरफ था लेकिन कम्युनिस्ट देश होने के कारण वो उस युद्ध में तटस्थ हो गया था । गुटनिरपेक्षता की नीति के बावजूद 1971 में इंदिरा जी ने सोवियत संघ के साथ सुरक्षा समझौता साइन कर लिया था अन्यथा 1971 के युद्द में हमारे देश की बड़ी बर्बादी हो सकती थी । उस युद्ध में अमेरिका पाकिस्तान की तरफ से मैदान में आ गया था । नेहरू जी के समय की सबसे दूर रहने की नीति का इंदिरा जी ने त्याग कर दिया था, इसलिए सोवियत संघ ने हमारी मदद के लिए अपनी नौसेना भेज दी थी ।
संतुलन की नीति
रूस के साथ विशेष संबंध होते हुए भी हमने अपने अंतरराष्ट्रीय संबंधों में एक संतुलन कायम रखा है । भारत पर एक गुट में शामिल होने का हमेशा दबाव रहा है । सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिका भारत को अपने खेमे में लेने की कोशिश करता रहा हैं हालांकि अब सिर्फ एक गुट बचा है । रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण अब अमेरिका चाहता है कि भारत संतुलन साधना छोड़कर पश्चिमी देशों के साथ रूस के खिलाफ खड़ा हो जाए । अमेरिका जानता है कि भारत और चीन के कारण रूस की अर्थव्यवस्था चल रही है इसलिए वो भारत को रूस से तेल खरीदने से रोक रहा है ।
एक समय अमेरिका चाहता था कि भारत रूस से तेल खरीदता रहे ताकि तेल की कीमतें स्थिर रहें. अब अमेरिका ऐसा नहीं चाहता है । ऑपरेशन सिंदूर के बाद अमेरिका का रवैया बदल गया है जिसके कई कारण हैं । अमेरिका के दीर्घकालिक हित भारत के साथ जुड़े हुए हैं लेकिन वो पाकिस्तान के साथ गलबहियां कर रहा है । अमेरिका के साथ हमारे संबंध तनावपूर्ण हो गए हैं क्योंकि उसने भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगा दिया है । पीएम मोदी ने अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ पर झुकने की बजाए तन कर खड़े होने का फैसला कर लिया है । जहां मेरी ग्लोबल राजनीति की समझ है, उसके अनुसार भारत और चीन का एक साथ आना संभव नहीं है क्योंकि दोनों देशों के हितों के बीच बहुत ज्यादा टकराव हैं । डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों के कारण भारत और चीन ने मिलकर चलने का फैसला किया है । इससे पूरी दुनिया हतप्रभ है कि यह कैसे हो सकता है । भारत-चीन ने अमेरिका के टैरिफ वॉर के जवाब में ऐसा किया है । ऐसा लगता है कि दोनों देश अपने विवादों को एक किनारे रखकर अमेरिका के ट्रेड वॉर से निपटने की रणनीति बना चुके हैं । टैरिफ के जवाब में भारत ने अपनी घरेलू मांग बढ़ाने के लिए जीएसटी की दरों में बड़ा बदलाव किया है, इसके अलावा लगभग 50 देशों में अमेरिकी निर्यात का विकल्प ढूंढना शुरू कर दिया है । अमेरिका के लिए अब समस्या यह है कि अगर भारत और अमेरिका के बीच सब कुछ सामान्य होने के बाद भी भारत जिस ओर चल पड़ा है, वो वापिस आने वाला नहीं है । ये एक ऐसा तीर है जो अब कमान में वापिस आने वाला नहीं है । एक तरह से अमेरिका ने एक सोते हुए शेर को जगा दिया है और अब उसे इसके नतीजे भुगतने पड़ेंगे ।
स्वायत्तता की नीति
अमेरिका और यूरोपीय देशों ने रूस से तेल खरीदने से रोकने के लिए भारत पर जबरदस्त दबाव बनाया हुआ है लेकिन भारत ने इस दबाव में आने से स्पष्ट रूप से इंकार कर दिया है । भारत ने दिखा दिया है कि वो एक सार्वभौमिक राष्ट्र है और अपनी विदेश नीति किसी दूसरे देश के दबाव में नहीं बनाने वाला है । जब डोनाल्ड ट्रंप ने चीन पर टैरिफ लगाया तो उसने भी अमेरिका पर टैरिफ ठोक दिया । डोनाल्ड ट्रंप ने चीन को 90 दिनों की मोहलत दे दी लेकिन भारत को ऐसी कोई मोहलत नहीं दी गई । भारत-अमेरिकी व्यापार को देखते हुए अमेरिका को लगा कि भारत झुक जाएगा लेकिन भारत की प्रतिक्रिया उसकी उम्मीदों के विपरीत आई । चीन के इतिहास और वर्तमान को देखते हुए भारत कभी भी चीन पर भरोसा नहीं कर सकता, इसके बावजूद भारत ने चीन के साथ चलने का फैसला कर लिया है । एससीओ की बैठक के दौरान जिनपिंग, पुतिन और मोदी की एकजुटता देखकर पूरी दुनिया हतप्रभ है ।
जिस तरह अमेरिका के लिए चीन बड़ा खतरा है, वैसे ही चीन के लिए भारत और भारत के लिए चीन बड़ा खतरा है। इसके बावजूद रूस पिछले कई सालों से इस कोशिश में लगा हुआ था कि दोनों देश अपने विवादों को अलग रखकर एक साथ आ जाएं । रूस की लाख कोशिशों के बावजूद उसे इस काम में रत्ती भर भी सफलता नहीं मिल रही थी। डोनाल्ड ट्रंप के कारण यह काम भी हो गया है । भारत ने रूस की बात नहीं मानी लेकिन जब उसे ऐसा करना सही लगा तो कर दिया । यूरोपीय देशों के साथ भारत ट्रेड पैक्ट साइन करने वाला है और जापान के साथ संबंध बढ़ा रहा है । इसके अलावा अफ्रीका और एशिया के देशों में अमेरिका का विकल्प तलाश रहा है । भारत ने अमेरिका को समझा दिया है कि तुम्हारे दोस्त और दुश्मन दोनों ही हमारे साथ हैं, अब तुम अपना सोचो । यही कारण है कि ट्रंप के सुर बदल रहे हैं और वो भारत के साथ बातचीत करने की मंशा जाहिर कर रहे हैं । वास्तव में अब ट्रंप भारत के ऊपर लगाए गए टैरिफ को हटाना चाहते हैं लेकिन वो चाहते हैं कि उनका और अमेरिका का सम्मान बचा रहे । वो चाहते हैं कि दुनिया को यह संदेश न जाए कि भारत ने अमेरिका को झुका दिया । दुनिया यह सब समझ रही है, इसलिए हतप्रभ है कि विश्व शक्ति कैसे घुटनों के बल बैठती नजर आ रही है ।
आक्रामक नीति
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने बयान दिया है कि अमेरिका ने हम पर टैरिफ इसलिए लगाया है क्योंकि वो सोचते हैं कि हम लोग मजबूत हो गए तो उनका क्या होगा हालांकि उन्होंने अमेरिका का नाम नहीं लिया है। उनकी बात पूरी तरह सच है लेकिन दूसरा सच यह भी है कि अमेरिका अब टैरिफ हटाने के रास्ते निकाल रहा है क्योंकि उसे लगता है कि टैरिफ लगाने से भारत आत्मनिर्भरता के रास्ते पर चलकर और ज्यादा मजबूत हो सकता है। सच बात तो यही है कि अमेरिका भारत को दूसरा चीन बनते हुए नहीं देखना चाहता लेकिन उसके चाहने से कुछ होने वाला नहीं है। वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने बयान दिया है कि जो भारत के साथ नहीं रहेगा, वो नुकसान उठाएगा। इसके अलावा विदेश मंत्री एस जयशंकर कई बार अमेरिका को आईना दिखा चुके हैं। यूरोपीय देशों को भी रूसी तेल को लेकर वो कई बार सुना चुके हैं।
भारत की विदेश नीति में आक्रामकता बढ़ती जा रही है जिसे पूरी दुनिया देख रही है। जिस तरह से भारत अमेरिका के खिलाफ खड़ा हो गया है, उससे भी दुनिया हतप्रभ है क्योंकि अमेरिका भारत का सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है । भारत को अमेरिका के साथ ट्रेड से बहुत ज्यादा फायदा है । डोनाल्ड ट्रंप ने यही सोचकर भारत पर टैरिफ लगाया था कि भारत अपने नुकसान को देखते हुए झुक जाएगा लेकिन भारत के बारे में उनका आंकलन गलत साबित हुआ । चीनी सेना के खिलाफ भारत की सेना चार साल तक सीमा पर खड़ी रही, आखिरकार चीन को समझौता करके अपनी सेना हटानी पड़ी । पहलगाम में आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ जैसी कार्यवाही की है, उससे भी दुनिया हतप्रभ है । इसके अलावा बांग्लादेश की नई सरकार के खिलाफ भी भारत ने आक्रामकता दिखाई है । पिछले कई सालों से चीन भारत की घेराबंदी कर रहा था लेकिन अब भारत भी दक्षिण एशियाई देशों के जरिये चीन की घेराबंदी कर रहा है । तुर्की, अजरबैजान के खिलाफ भी भारत की विदेश नीति में आक्रामकता देखी जा सकती है । दुनिया हतप्रभ है क्योंकि वो नए भारत को देख रही है ।
राजेश कुमार पासी