विश्ववार्ता

विश्व का सबसे असुरक्षित राष्ट्र: पाकिस्तान

pakistan तनवीर जाफ़री

पाकिस्तान में आतंकवादी संगठनों की बेखौफ सक्रियता,राजनैतिक अस्थिरता तथा सत्ता केंद्र के लिए मची खींचतान को देखते हुए इस समय पूरी दुनिया की नज़रें पाकिस्तान पर टिकी हुई हैं। दुनिया के पर्यट्क पाकिस्तान जाने से कतरा रहे हैं। विदेशी पूंजीनिवेश लगभग बंद हो चुका है। देश में मंहगाई व अराजकता की स्थिति पैदा हो रही है। वहां अल्पसंख्यकों पर ज़ुल्म पर ज़ुल्म ढाए जा रहे हैं। आतंकियों द्वारा सामूहिक हत्याएं बड़े पैमाने पर की जा रही हैं। तालिबानी ताकतें अपना शिकंजा मज़बूत करती जा रही हैं। ज़ाहिर है इन हालात में यह तो कतई नहीं कहा जा सकता कि पाकिस्तान में शांति बहाल हो रही है तथा वहां सुरक्षा का वातावरण देखने को मिल रहा है। परंतु पाकिस्तान के गृहमंत्री रहमान मलिक का तो कम से कम यही मानना है कि ‘भारत सहित पूरे दक्षिण एशिया क्षेत्र में चरमपंथ बढ़ रहा है जबकि पाकिस्तान में सरकार की सक्रिय नीतियों के कारण शांति स्थापित हुई है। रहमान मलिक फरमाते हैं कि ‘भारत में बढ़ती चरमपंथी समस्या से सख्ती से निपटने की ज़रूरत है। इससे दुनिया की सुरक्षा को ख़तरा है। उनके अनुसार ‘विकसित देश भी अपनी ठेठ नीतियों के कारण परेशानियों का सामना कर रहे हैं जिसके परिणास्वरूप हिंसा फैल रही है। पाकिस्तान के बद से बद्तर होते हालात के मध्य स्वयं अपनी पीठ थपथपाते हुए रहमान मलिक ने कहा है कि ‘पूरे पाकिस्तान में शांति स्थापित की गई है और ऐसा पाक सरकार की अति सक्रिय नीतियों के कारण संभव हो सका है।

पाकिस्तान के गृहमंत्री ने पाकिस्तान में स्वयंभू रूप से बह रही शांति की गंगा का जि़क्र करते हुए और आगे यह फरमाया कि ‘पाकिस्तान में जो क्षेत्र कभी प्रतिबंधित चरमपंथी संगठनों के प्रभाव वाले क्षेत्र समझे जाते थे अब आम लोग वहां आ-जा सकते हैं तथा सुरक्षित रूप से घूम-फिर सकते हैं। हर जगह शांति है और लोग बेखौफ घूम-फिर रहे हैं। पिछले दिनों पाकिस्तान के पंजाब क्षेत्र में विशेष कर क्वेटा के इलाके में शिया समुदाय को निशाना बनाकर किए गए हमलों की ओर इशारा करते हुए रहमान मलिक ने लश्करे-झांगवी नामक आतंकवादी व प्रतिबंधित संगठन के विरुद्ध कार्रवाई न करने के लिए पंजाब प्रांत की सरकार की आलोचना की। अपने प्रवचन में उन्होंने पाकिस्तान तालिबान को हिंसा का त्याग करने तथा निर्दोषों का कत्ल बंद करने का संदेश दिया। उनके अनुसार पाकिस्तान ने विकास व संवाद की नीति अपनाने के साथ-साथ शांति व सुरक्षा के लिए बिना किसी की परवाह किए कड़े क़दम भी उठाएं हैं। पाक गृहमंत्री ने अपने उपरोक्त ताज़ातरीन वक्तव्य के द्वारा एक तीर से दो शिकार खेलने की कोशिश की है। एक तो पाकिस्तान के विषय में दुनिया को गुमराह करते हुए उसे शांत व सुरक्षित राष्ट्र बताए जाने की कोशिश के कारण उसकी होती बदनामी को कम करने की कोशिश करना तो दूसरी ओर भारत को बदनाम करने का प्रयास करना तथा इसी के साथ पाकिस्तान की तरफ से दुनिया का ध्यान हटाकर भारत की ओर केंद्रित करने की कोशिश करना।

जो लोग पाकिस्तान की राजनीति, वहां के ताज़ातरीन हालात, पाक की भीतरी स्थिति, वहां सक्रिय आतंकवादी संगठनों के बढ़ते हौसले व सत्ता के मुख्य केंद्र तक चरमपंथियों की मज़बूत पहुंच व पकड़ के विषय में करीब से जानते हैं उन्हें रहमान मलिक का वक्तव्य महज़ हास्यास्पद तथा दुनिया को धोखा देने वाला ही लगेगा। परंतु रहमान मलिक भी करें तो क्या करें? पाकिस्तान के गृहमंत्री रहते हुए अपने राष्ट्र की छवि को दुनिया की नज़रों में सुधारना बहरहाल उनकी ज़रूरत,मजबूरी और फर्ज़ भी है। परंतु ऐसे बयान देकर वे पाकिस्तान की ज़मीनी हकीकत से मुंह नहीं मोड़ सकते। बड़ी अजीब बात है कि उनका यह वक्तव्य उस समय में आया है जबकि पाकिस्तान की संसद भारतीय संसद पर हमले के अभियुक्त अफज़ल गुरु को फांसी पर लटकाए जाने के विरुद्ध निंदा प्रस्ताव पारित कर रही थी। पाकिस्तान को अफज़ल गुरु की ही तरह अजमल $कसाब को दी गई फांसी भी रास नहीं आई थी।अफ़ज़ल गुरु को लेकर कश्मीर में हो रहे विरोध प्रदर्शन को भी पाकिस्तान अपना समर्थन दे रहा है। भारत के फौजी का सिर काट कर ले जाने जैसा घिनौना व अमानवीय कार्य भी पाकिस्तान कर चुका है। वहां के अल्पसंख्यक समुदाय के लोग तथा बहुसंख्य सुन्नी मुसलमानों का भी एक बहुत बड़ा वर्ग स्वयं को असुरक्षित महसूस करते हुए भय व दहशत के वातावरण में जी रहा है। क्वेटा व कराची की घटनाओं ने तो आतंकी दु:स्साहस की इंतेहा तक कर डाली। परंतु इन सब बातों के बावजूद पाक गृहमंत्री का आंकलन यही है कि पाकिस्तान शांति के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है जबकि भारत अशांत व असुरक्षित है।

पाकिस्तान संभवत: इस समय दुनिया का अकेला ऐसा देश है जहां आतंकवादी अफगानिस्तान के पिछले तालिबानी शासनकाल की तजर् पर मुजफ्फराबाद से लेकर इस्लामाबाद तक हथियारबंद होकर खुले वाहनों में बैठकर सरेआम घूमते-फिरते व दहशत फैलाते रहते हैं। पाकिस्तान में आम लोगों की व निहत्थे लोगों की सुरक्षा की तो बात ही क्या करनी वहां के तो सैन्य ठिकाने, सुरक्षाबलों की छावनियां, वायुसेना के अड्डे तथा सुरक्षा चौकियां तक असुरक्षित हैं। और यह सुरक्षाकर्मी व जवान स्वयं आतंकवादियों की दहशत व दबाव में अपनी डयूटी अंजाम दे रहे हैं। इस्लामाबाद सहित पाकिस्तान के किसी भी शहर में प्रतिबंधित संगठनों के लोग जब और जहां चाहें भारी भीड़ के साथ हथियारबंद होकर अमेरिका,इज़राईल या भारत के विरोध के नाम पर सडक़ों पर उतर आते हैं। तथा उनके मुंह में जो भी आए वह सार्वजनिक रूप से बोलते हैं। परंतु पाकिस्तान सरकार उन्हें गिरफ्तार करने, उनके जलसे-जुलूसों को रोकने का साहस नहीं दिखा पाती। इसका कारण साफ है और पूरी दुनिया इस बात को बहुत अच्छी तरह से समझ भी रही है कि आतंकवादी विचारधारा की घुसपैठ पाक सरकार में बैठे ओहदेदारों से लेकर पाक सेना व आईएसआई तक में हो चुकी है। जिस प्रकार आतंकवादियों ने विशेषकर तहरीक-ए-तालिबान के लोगों ने पाकिस्तान के कई फौजी ठिकानों पर धावा बोलकर पाक सेना को भारी क्षति पहुंचाने में बड़ी सफलता हासिल की है उससे पूरी दुनिया को इस बात पर भी संदेह होने लगा है कि पाकिस्तान अपने परमाणु ठिकानों को इन आतंकवादी ताकतों से सुरक्षित रख पाने में सक्षम है या नहीं? परंतु दुनिया की पाकिस्तान के प्रति परमाणु हथियार की सुरक्षा संबंधी चिंता के बीच पाक गृहमंत्री का पाकिस्तान को शांत व सुरक्षित बताना तथा भारत को अशांत व असुरक्षित बताना अपने-आप में बड़ा विचित्र सा प्रतीत हो रहा है।

जहां तक भारत में अशांति व असुरक्षा का प्रश्र है तो इसके लिए भी पाकिस्तान ही सबसे बड़ा जि़म्मेदार है। चाहे भारत की संसद पर हमला हो, चाहे मुंबई पर हुआ आतंकवादी आक्रमण हो या देश में तमाम धर्मस्थलों पर हुए चरमपंथी हमले हों या फिर कारगिल घुसपैठ से लेकर अब तक समय-समय पर सीमा पार से होने वाली घुसपैठ या वहां के बिगड़ते हालात। इन सब के लिए केवल पाकिस्तान ही जि़म्मेदार है। जब भारत की न्याय व्यवस्था अफ़ज़ल गुरु को संसद पर हुए हमले का मुख्य साज़िशकर्ता मानकर उसे फांसी पर लटकाती है तो इसके विरुद्ध पाकिस्तान की संसद में प्रस्ताव पारित किए जाने का आखिर औचित्य क्या है? यह कश्मीर के अलगाववादियों व अफज़ल गुरु के समर्थन में खड़े होने वाले लोगों को भड़क़ाना नहीं तो और क्या है? यह पाकिस्तान के शासकों की ऐसी विध्वंसकारी व नकारात्मक नीतियों का ही परिणाम था कि गत् दिनों पाकिस्तान के प्रधानमंत्री राजा परवेज़ अशरफ के अजमेर शरीफ आगमन के अवसर पर वहां के मुख्य मुजाविर ने उन्हें हज़रत मोईनुद्दीन चिश्ती की पवित्र दरगाह पर जिय़ारत कराए जाने में मदद किए जाने से इंकार कर दिया। अजमेर यात्रा के दौरान उनके विरुद्ध प्रदर्शन व नारेबाज़ी भी की गई। ज़ाहिर है किसी शांत व सुरक्षित राष्ट्र के राष्ट्र प्रमुख के साथ ऐसे बर्ताव $कतई नहीं किए जाते। अजमेर में दरगाह पर जाने वाले किसी भी व्यक्ति का यहां तक कि पाकिस्तान के भी किसी शासक का आज तक कोई विरोध नहीं किया गया।

पाकिस्तान को तथा वहां के हुक्मरानों को चाहिए कि वे अब भी हकीकत से बाखबर रहने की कोशिश करें तथा दुनिया को उसी वास्तविक रूप में दिखाई भी दें जैसी कि पाकिस्तान को लेकर उनपर गुज़र भी रही है। पाकिस्तान से आए दिन आने वाले हिंसापूर्ण समाचार स्वयं पाकिस्तान की हकीकत को बयान करते रहते हैं। केवल गृहमंत्री रहमान मलिक के कहने मात्र से न तो पाकिस्तान शांत व सुरक्षित हो जाएगा और न ही दुनिया उनके इस बहकावे में आ पाएगी। हां भारत के विषय में उन्होंने अपने जो विचार ज़ाहिर किए है उसकी जिम्मेदारी भी अधिकतर पाकिस्तान की है। लिहाज़ा यदि पाकिस्तान को दुनिया की नज़रों में शांत व सुरक्षित दिखाई देना है तो बयानों व वक्तव्यों के बल पर नहीं बल्कि ज़मीनी स्तर पर चरमपंथी संगठनों को नेस्तनाबूद करने के उपाय तलाश करने होंगे। उन्हें पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों सहित आम जनता की सुरक्षा की पूरी गांरटी लेनी होगी। पर्यटकों के दिलों से खौफ भगााना होगा। भारत जैसे पड़ोसी देश में आतंकवाद की घुसपैठ को शह देना बंद करना होगा। पाकिस्तान में पनप रही कट्टरपंथी विचारधारा का समूल नाश करना होगा। इन सभी उपायों पर अमल पूरा हो जाने के बाद ही यह सोचा जा सकता है कि पाकिस्तान शांत व सुरक्षित है अथवा नहीं। तनवीर जाफ़री