राजनीति

मोदी का कोई तोड़ नहीं : बिहार जीत मायने अनेक

~ कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल 

प्रतीकों, मूल्यों, संस्कृति और परंपराओं की पिच पर आप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नहीं हरा पाएंगे। ये मोदी और बीजेपी की पसंदीदा पिच है। अगर इस पर विपक्ष फंसा तो उसकी करारी हार सुनिश्चित है विपक्ष हर बार यही ग़लती करता है। वो भारतीय मानस को समझे बिना मोदी को ललकारता है। हिंदू संस्कृति के मानबिंदुओं, परंपराओं और आस्था पर कटाक्ष करता है। अपमानित करता है। विपक्ष को लगता है कि वो हिंदुत्व को गाली देकर जीत सकता है। 

विपक्ष को लगता है कि वो भारतीय सेना के शौर्य को चुनौती देकर चुनाव जीत सकता है।  विपक्ष को ये लगता है कि जाति के नाम पर विभाजन उत्पन्न कर जीत सकता है। अगर इस मुगालते में विपक्ष है तो वो मोदी से कभी नहीं जीत सकता है। क्योंकि कौन से प्रतीकों को कहां और किस अंदाज़ में आज़माना है। ये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बख़ूबी जानते हैं। यूं कहूं तो वो इसमें सिद्धहस्त हैं। इसके जादूगर हैं।

हरियाणा, महाराष्ट्र , दिल्ली के बाद बिहार विधानसभा के  ये परिणाम बता रहे हैं कि — आप हिंदू संस्कृति का अपमान कर कोई भी चुनावी किला  फतह नहीं कर सकते। आप सांविधानिक संस्थाओं का अपमान कर चुनाव नहीं जीत सकते। विपक्ष को ये समझना होगा कि जिस Gen-Z के नाम पर देश में नेपाल जैसी अराजकता का बिगुल फूंका जा रहा था । भारत के Gen-Z ने उसकी हवा निकाल दी है। उसने भर-भर के एकमुश्त वोट NDA की झोली में डालकर राजतिलक कर दिया है। महिलाओं ने बड़ी ख़ामोशी से प्रधानमंत्री मंत्री नरेंद्र मोदी की गारंटी पर अपना विश्वास जताया है।

देश की जनता ये जान चुकी है कि वर्षों तक सत्ता में रहने वाली कांग्रेस और आरजेडी समेत तमाम विपक्षी दल अब मुद्दाविहीन हो चुके हैं। क्या देश की जनता को ये नहीं दिखता रहा है कि – कैसे समूचा विपक्ष संसद की कार्यवाही नहीं चलने दे रहा था। क्या देश की जनता ये नहीं देख रही थी कि- कैसे राहुल गांधी के नेतृत्व वाला इंडी गठबंधन अराजकता का वातावरण बना रहा था। राष्ट्रीय हित के मुद्दों में इंडी गठबंधन के दलों का गतिरोध, तुष्टिकरण क्या देश की जनता नहीं देख रही थी? 

विपक्षी दलों को क्या लगता कि केवल आचार संहिता लगते ही चुनावी जंग जीती जाती है? अगर ये सोचते हैं तो इससे बड़ी भूल भला क्या हो सकती है? जनता हर समय राजनीतिक दलों, उनके नेताओं के आचरणों को देखती है। परखती है। उसके बाद धैर्यपूर्वक ढंग से आंकलन करती है। तत्पश्चात अपना निर्णय सुनाती है।

जीत के ये आंकड़े बता रहे हैं कि —देश की जनता जान चुकी है कि विपक्ष ऐनकेन प्रकारेण केवल सत्ता हासिल करना चाहते हैं। उनकी नीयत में खोट है। क्योंकि क्षेत्रीय दलों को निगल जाने के बाद केवल 99 सीटें लोकसभा चुनाव में जीतने के बाद कांग्रेस जिस ढंग से ग़ैर ज़िम्मेदाराना व्यवहार कर रही है। कांग्रेस के नेता और विशेष तौर पर राहुल गांधी जिस तरह से मोदी विरोध में—देश विरोधी मानसिकता से ग्रस्त दिख रहे हैं। सामाजिक समरसता को तोड़ने वाले बयान दे रहे हैं। देशद्रोही कम्युनिस्टों की लाइन पर चल रहे हैं। भारतीय समाज में अराजकता, हिंसा फैलाने जैसी बातें कर रहे हैं। ऐसा लगता है कि जैसे कम्युनिस्टों ने राहुल गांधी को हाईजैक कर लिया हो।‌ क्या जनता ये सब नहीं देखती है? 

अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि मंदिर से लेकर, हिंदुत्व, छठी मैया आदि के विरुद्ध राहुल गांधी के अनर्गल बयान। मिथ्याप्रचार। भारतीय सेना को अपमानित करते हुए विभाजनकारी बयान देना। बात-बात में हिंदुओं को जातियों में बांटने की वकालत करना।  भाषा के आधार पर विभाजन के बीज बोना।तुष्टिकरण के लिए नए वक्फ़ क़ानून के विरोध में उतरना। घुसपैठ जैसी घातक समस्या को ख़ारिज़ करना।लव जिहाद और कन्वर्जन के आतंक के विरुद्ध चुप्पी साधे रहना। मौन समर्थन देना। नेता प्रतिपक्ष की भूमिका को मज़ाक बना देना। विदेशों में जाकर भारत की सांविधानिक संस्थाओं को कटघरे में खड़ा करना। हमारी लोकतांत्रिक परंपराओं पर आघात करना। कम्युनिस्टों की तर्ज़ पर माओ की तरह रेड बुक रखना। बार-बार संविधान का माखौल उड़ाना। RSS जैसे राष्ट्रनिष्ठ संगठनों पर झूठे आक्षेप लगाना। कांग्रेस शासित राज्यों में संविधान की हत्या करते हुए प्रतिबंध लगाने का कुकृत्य करना।

राहुल गांधी का- प्रधानमंत्री जैसे गरिमामय पद पर बैठे ओबीसी वर्ग से आने वाले — नरेंद्र मोदी जी को — तू-तड़ाक जैसी भाषा से संबोधित करना। जनता ये सब देख रही थी और ये भी गांठ बांध रही थी कि — जो व्यक्ति प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे ओबीसी वर्ग के व्यक्ति के प्रति ऐसी घ्रणा रखता है। वो आम आदमी का क्या सम्मान करेगा?  क्या कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल ये भूल गए कि – जनजातीय समाज की बेटी द्रौपदी मुर्मू जी के विरुद्ध उन्होंने राष्ट्रपति का कैंडिडेट उतारा था। वो क्यों? इसीलिए न ताकि कोई जनजातीय समाज का व्यक्ति सर्वोच्च आसंदी पर न बैठ सके। विपक्ष को क्या लगता है कि देश और बिहार की जनता ये सब नहीं देख रही थी? भला, हार मिलने पर — अपने कृत्य क्यों भूल जाते हैं? 

वहीं परिवारवाद के शीर्ष उदाहरण राहुल गांधी, प्रियंका वाड्रा और तेजस्वी यादव, अखिलेश यादव— ये सब क्या ये नहीं जानते हैं कि जनता अब ‘परिवारवाद’ को उखाड़ फेंक चुकी है। तिस पर भ्रष्टाचारी लालू परिवार। जंगलराज के आतंक का ख़ौफ,  लालू यादव की विवशता। धर्मनिष्ठ आचरण वाले तेजप्रताप यादव जैसे भाई का निष्कासन, आरजेडी पर कब्ज़ा और लालू की विवशता भरी ईसाइयत से रंगी ‘हैलोवीन’ पार्टी। बिहार की जनता ये सब बारीकी के साथ देख रही थी। बिहार की जनता ये जान रही थी कि कैसे तेजस्वी यादव के यहां अब ईसाईयत और मिशनरीज़ का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। हिंदू परंपराओं को किनारे कर चोट पहुंचाई जा रही है।अन्यथा राजनीतिक फायदे के लिए ‘छठी मैया’ का राहुल गांधी ने जिस प्रकार से अपमान किया था। बिहार की जनता ये जान रही थी कि किसकी शह पर खेसारी जैसे दोयम दर्जे के लोग — श्रीराममंदिर पर अपमानजनक टिप्पणी कर रहे थे। क्या तेजस्वी यादव इन सबका विरोध नहीं करते? 

वस्तुत: ये परिणाम चीख-चीख कर यही कह रहे हैं कि -जनता विपक्ष की नीयत के खोट को अच्छी तरह से जान-पहचान चुकी है। इसीलिए जनता अपने मतदान के ज़रिए इन दलों की नियति में हर बार खोट का सर्टिफिकेट लगा देती है। S-I-R, EVM हैक और वोट चोरी के मिथ्या आरोपों को जनता अच्छी तरह जान चुकी है। 

जनता ने केन्द्र की मोदी सरकार आने के बाद विकास की जनकल्याणकारी योजनाओं का सीधा लाभ पाया है। विभिन्न योजनाओं की DBT के ज़रिए यानी सीधे खाते में राशि पहुंचने से लाभ पाया। शासन-प्रशासन में हर वर्ग और समाज का समुचित प्रतिनिधित्व देखा है। देश की जनता ने ये पुख्ता कर लिया है कि उसका वास्तविक हितैषी कौन है। उसने ये जाना है हिन्दू और हिंदुत्व का वास्तविक पक्षधर कौन है। क्योंकि जो भारतीय संस्कृति और परंपराओं को त्याज्य मानता है। वोटबैंक के लिए अपमानित करता है। वो तो उसका हितैषी कभी नहीं हो सकता है। जनता अब तत्कालिक लाभ की दृष्टि से ही नहीं बल्कि दूरदर्शिता के साथ अपने निर्णय लेती है। वो ये जान चुकी है कि वास्तव में देश की बागडोर किसके हाथों में सुरक्षित है। 2024 के लोकसभा चुनाव से लेकर तमाम विधानसभा चुनावों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रति स्वीकार्यता के ये आंकड़े उपरोक्त बातों को बारंबार सिद्ध कर रहे हैं।

अगर कुछ नेताओं और राजनीतिक दलों को लगता है कि वो हवा-हवाई वादों के ज़रिए उसे बेवकूफ बना सकते हैं।  भारत की अस्मिता पर प्रहार कर सत्ता पर आ सकते हैं। ऐसे में उन  राजनीतिक दलों, नेताओं से बड़ा बेवकूफ कोई नहीं होगा। अगर राजनीतिक दलों को लगता है कि निष्पक्षता का चोला ओढ़कर — पेड वर्कर की तरह काम करने वाले, यूट्यूबर्स— उनका माहौल बना सकते हैं। जनता के दिलों में जगह बना सकते हैं तो ये भ्रम भी तोड़ लें। क्योंकि देश की जागरुक जनता अपना हानि-लाभ अच्छी तरह से जानती है। राजनीतिक दलों, विश्लेषकों, पत्रकारों और मीडिया कर्मियों से बेहतर अपने भविष्य का आंकलन करती है। उसके बाद ही मतदान करती है। अतएव अब अपने आपको कोई ग़लत-फ़हमी में न रखें। क्योंकि ये पब्लिक है सब जानती है। साथ ही जनादेश को अपमानित करने का भी कुकृत्य न करें। क्योंकि ऐसा तो होगा नहीं कि मीठा-मीठा, गप-गप, कड़वा-कड़वा- थू..थू। ये जनता अगर विपक्ष के तमाम हथकंडों के बावजूद भी अगर उस पर विश्वास नहीं जता रही है तो ये आत्मचिंतन का वक्त है। न कि जनादेश पर लांछन लगाने का समय है। अगर विपक्षी दल अब भी नहीं समझे तो उन्हें रसातल में हमेशा के लिए दफ्न होने से कोई शक्ति नहीं रोक सकती है।

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में NDA गठबंधन का विजयरथ एक बड़ी आश्वस्ति लिए हुए है। ये विजय रथ विपक्षी दलों ही नहीं अपितु भारत विरोधी वैश्विक शक्तियों को भी हर बार चित करता है।  जब दुनिया भारत को कमजोर करने की साजिश रचती है। जार्ज सोरोस जैसे तमाम भारत विरोधी लोग और शक्तियां— मोदी को उखाड़ फेंकना चाहती हैं। उस समय देश के अंदर एक अदृश्य शक्ति का संचार होता है। जो संजीवनी की भांति मोदी की राजनीतिक शक्ति को और मजबूत करती है। 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद हरियाणा, महाराष्ट्र, दिल्ली और बिहार की ये प्रचंड जीत केवल चुनावी जीत नहीं है। ये जीत केवल किसी राज्य की राजनीतिक सत्ता की जीत की तरह नहीं देखी जानी चाहिए। बल्कि इन जीतों में जो संदेश छुपा है। देश की जनता का मन और उसका भाव छिपा है। उसके निहितार्थ को भी समझने की ज़रुरत है। क्योंकि नियति ने 21 वीं सदी को भारत की सदी लिखा है। इसीलिए ये तमाम संकेत बहुत कुछ कह रहे हैं।

~ कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल