कविता

आज का अध्यापक

आज का अध्यापक शीक्षा का व्यवसायी कर्ण करता जा रहा है ।
आज का अध्यापक पेट भरने के लीए अध्यापक बनता जा रहा है

अध्यापक का पद नहीं मिला तो क्या हुआ ।
सीपाही के पद के लीए ही फारम भरता जा रहा है
आज का अध्यापक शीक्षा का व्यवसायी कर्ण करता जा रहा है ।
आज का अध्यापक पेट भरने के लीए अध्यापक बनता जा रहा है

आज का अध्यापक छुट्टी की आखरी घंटी का इंतज़ार करता जा रहा है
घडी देख , पाठशाला को नमस्कार कर ,
ट्यूशन देने जल्दी से घर भागता जा रहा है
आज का अध्यापक शीक्षा का व्यवसायी कर्ण करता जा रहा है ।
आज का अध्यापक पेट भरने के लीए अध्यापक बनता जा रहा है

आज के अध्यापक को परीणामों की कोई चिन्ता नहीं है
आज का अध्यापक ट्यूशन पर ही पढ़ा कर बच्चों को
परीणामों का पर्तिशत बढ्वाता जा रहा है
सब बच्चों को कराकर पास
अपने स्कूल का नाम चमकाता जा रहा है
आज का अध्यापक शीक्षा का व्यवसायी कर्ण करता जा रहा है ।
आज का अध्यापक पेट भरने के लीए अध्यापक बनता जा रहा है

कहाँ गए वोह अध्यापक जो मनं से पढ़ाते थे
तभी तो गरीबों के बच्चे भी डॉक्टर ,इंजिनियर का रुत्बा पाते थे
आज कहाँ गरीब का बच्चा ऐसे अध्यापकों से खाकर मार, पा कर दुलार
सफलता की सीढियां चढ़ पा रहा है
आज का अध्यापक शीक्षा का व्यवसायी कर्ण करता जा रहा है ।
आज का अध्यापक पेट भरने के लीए अध्यापक बनता जा रहा है

{ संजय कुमार फरवाहा }