राजनीति

अमेरिकी निशाने पर दवा उद्योग

आपने एक पुरानी कहावत सुनी होगी बाप बड़ा ना भईया सबसे बड़ा रुपइया यह ओबामा के उपर विल्कुल फिट वैठता है। भारत के दौरे पर आये अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपनी औद्योगिक नीति के तहत ही वो पहले मुम्बई पहुचे सबसे पहले उन्होने आतंकवाद पर अपनी सहानुभूति जताई अपने भाषण में उन्होने कहा भारत और अमेरिका आतंकवाद से अपने नागरिको की रक्षा के लिए कृत संकल्प है। लेकिन आतंक की जड़ो पर एक भी शब्द का वार नहीं किया एक तरफ तो वो पाकिस्तान को सामरिक सहायता के नाम पर 13 हजार करोड़ दिये जिसका इस्तेमाल पाकिस्तान भारत के खिलाफ ही कर रहा है। तो दूसरी तरफ दोस्ती का हाथ ब़ा रहे है । हमे यह नहीं भूलना चाहिए जिस आतंकवाद पर दोस्ती की बात ओबामा कर रहे है। 1991 से पहले तो आतंकवाद पर हमारी सुनते भी नही थे। अब इनका पाला नाग ओसामा बिनलादेन जब रूस और भारत के साथ इन्त्राको भी डसने लगा तो इन्हें हमारी याद आयी। हेडली के मामले में अमेरिका का रवैया तो जग जाहिर है । ओबामा कि ये यात्रा एक व्यापारिक यात्रा थी। उनके साथ अमेरिकी उद्योग समूहो के लगभग 250 सीईओ आये थे। इतने ही पहले आ गये थे जो औद्योगिक कार्यक्रमो की रणनीति बना रहे थे तभी तो उन्होंने ‘‘यू़एस इंडिया बिजनेस काउंसिल एंड एंटर पाइनियरशिप समिट’’ को सम्बोधित कर व्यिक्तसह सभी भारतीय उद्योगपतियों से मिले। भारत और अमेरिका का सालाना व्यापार लगभग 37 अरब डालर का है। अमेरिका पांच वर्षो में व्यापार दूगूना कर रक्षा उपकरणों, दवा उद्योग, कृषि उद्योग, शिक्षा उद्योग में अपना कब्जा जमाना चाहता है।

अमेरिका के जाने माने टिकाऊ विकास के विशेषज्ञ और कोलंबिया यूनिवर्सिटी के अर्थ इंस्टीटयूट के डायरेक्टर डा॰ जैप्री साक्स ने अमेरिका पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहां कि 80 प्रतिशत संसाधनो को 20 प्रतिशत अमेरिकी हड़प रहे है।जबकि 80 प्रतिशत आबादी 20 प्रतिशत संसाधनों पर गुजारा कर रही है। 80 प्रतिशत अमेरिकी नागरिक इन नीतियो से असंतुष्ट है। हमारे पास भूख, बीमारी और गरीबी तीनो के कुश्चक्र से निकलने के लिए हमें भारतीय प्राचीन प्रकृतिपरख परम्पराओं पर काम करना चाहिए ना कि उद्योगपतियों के इशारे पर यह अमेरिका के हित में नही होगा । अमेरिका जिन उद्योगपतियों के इशारे पर बाजार तलाश रहा है। उसमें दवा उद्योग अहम है। पूरे विश्व में रोग पैदा कर धंधा करने में माहिर अमेरिका के राष्ट्रपति ने अपने भाषण में जिस लहजे से एड्स पर साथ काम करने की बात कही उससे व्यापारिक दृष्टिकोण स्पष्ट है। अभी तक एड्स के नाम पर पूरी दुनिया को बेवकूफ बनाया जा रहा है जबकि एड्स के जनक राबर्ट गैला के ‘‘सेंटर फार डिजीज कन्ट्रोल’’ की रिपोर्ट में कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। कई वैज्ञानिकों की दी गई चुनौतियों से वो आज भी कन्नी काट जाते है। दुनिया के जाने माले वायरोलोजिस्ट पीटर ड्यूसवर्ग ने स्पष्ट कहा कि अभी तक कोई भी वैज्ञानिक ये स्पष्ट नही कर पाया है कि एड्स का कारण एच आई वी ही है। स्वाइन फ्लू जैसे कई और अफवाहों को अमेरिका ने बल दिया। अमेरिका जानता है। कि बीमार भारत में दवा उद्योग कारगर धंधा हो सकता है। आर्थराटिस फाउंडेशन आफ इंडिया के अनुसार 10 करोड़ लोग हड्डी सम्बंधी रोगो के शिकार है। औधोगिक संगठन एसोचैम के अनुसार 2005 तक ही 5 से 7 करोड़ लोग डायबीटीज के शिकार थे। हार्ड केयर फाउंडेशन आफ इंडिया के अनुसार 20 लाख लोगों की हर साल दिल की बीमारियों से मौत हो रही है । गैलेक्सी कैंसर संस्थान के अनुसार हरवर्ष 60000 महिलाओें की मौत स्तन कैंसर से हो रही है। एम्स के अनुसार 4 करोड़ लोग मधुमेह से गरस्त है। डब्लूएचओ के अनुसार 1 करोड़ लोग मिगीर के मरीज है । सवार्इकल कैंसर से 74118 महिलाओं की मौत हर वर्ष हो रही है। 132082 नये मामले हर वर्ष आ रहे है। कैल्शियम की कमी से 117000 और आयरन की कमी से 170000 महिलाये गर्भावस्था के समय काल के गाल मे समा जाती है। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार 134000 कुष्ट रोग के मरीज है और 15000प्रतिवर्ष मर रहे है। चिकन गुनिया के 95091 मामले सामने आये और डेगू के 12561नये मामले सामने आये है। स्वास्थ मंत्रालय द्वारा जिस तेजी से स्वाइन पलू के टीके ख्रीदे गये और गांव मे सेक्स सवेर कराये जा रहे है कि शहरों कि अपेक्षा गांव के युवा सेक्स मे ज्यादा माहिर है। विश्व मे प्रतिबंधित क्लोरामफे नीकोल एंटीबायोटिक, एनालजिनफुराजोलीडान, प्याज्मोप्राक्सीवान, लेनोफेथेलीन, डोप रौंडाल जैसी दवाये बाजार मे है और स्वास्थ के लिये घातक ग्लास्टीबेटासार, राजिग्निीजोन, आरिस्टाल जैसी दवाओ का धड़ल्ले से कई गुना ज्यादा मूल्य पर व्यापार हो रहा है और स्वास्थ्य मंत्रालय आंख मूद कर देख रहा है। राजस्थान मे तो 50 दवाओं में मानक से कई गुना ज्यादा ड्रग पाया गया जो दवाये विष का काम रही थी । ये भारत सरकार के ड्रग और कास्मेटिक एक्ट 1940 और ड्रग प्राइसिस कन्ट्रोल एक्ट 1987 का खुला उल्लंघन है नाम के लिये तो सरकार ने 74 दवाओ पर ड्रग प्राइसिस कन्ट्रोल एक्ट लगा रखा है फिर भी दवायें धड़ल्ले से बिक रही है। भारत सरकार पिश्चमी देशों की दवा कम्पनियों के दबाव मे आकर 2004 मे कई ऐसे फैसले किये जिससे इन कम्पनियों को परीक्षण और रिसर्च करना आसान हो गया है, जिसका जीता जागता उदाहरण भोपाल में देखने को मिला जहां एक मल्टीनेशनल कम्पनी ने 50 दवाओं के ड्रग ट्रायल को पशुओं कि बजाय 2300 मरीजों पर कर डाला। मामला उठा तो राज्य सरकार ने जांच बिठा कर दोष केन्द्र सरकार पर म़ढ दिया ।

दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा लीविंग रिलेशनशिप पर फैसला भी सेक्स इंडस्ट्री को टानिक देना ही है। जिस तरीको से अमेरिका संयुक्त राष्ट्रसंघ, विश्व स्वास्थ संगठन, डब्लूटीओ, विकसित और विकासशील देश कि सरकारों, न्यायालयों और मीडिया को घेरने मे सफल हो रहा है। उससे तो यही लग रहा है अमेरिका अपने अभियान में सफल हो जायेगा मैडिकल जर्नल मिक्स के अनुसार भारत में 93 हजार करोड़ रूपये का कारोबार अकेले अंगरेजी कम्पनियों का है। देश मे 10500 छोटी बड़ी दवा कम्पनियां है जो 90000 ब्रत्रांड बनाती है। इनको खत्म करने के लिये अमेरिका ने डब्लू एच ओ को साधने में पूरी कोशिश की है। डब्लू टी ओ और डब्लू एच ओ की नकली दवाओं पर अपनी अलग अलग परिभाषा है। डब्लू टी ओ कहता है कि ट्रेडमार्क का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए ट्रिप (व्यापार संबांधित बौद्धिक संपदा अधिकार) लेकर उसकी अलग आपित्त है। दवा में कही से भी समानता दिखती है तो नकली करार दिया जा सकता है इनका मकसद जेनेरिक दवाओं का खात्मा कर सम्पूर्ण क्षेत्र पर अपना आधिपत्य जमाना ही है। पूरे देश में एक अनुमान के मुताबित 130000 करोड़ से 150000 करोड़ के बीच नकली दवा उद्योग हो गया है। प्रसव आपरेशन भारत मे 18 प्रतिशत कि गति से ब़ रहा जिस तरीके से प्रसव प्रकिरया के आपरेशन पद्धति को ब़ावा दिया जा रहा है। उससे यह क्षेतर भी बड़ा आद्यौगिक क्षेतर हो गया जबकि देश के प्रसिद्ध कुछ डाक्टरों का मानना है कि व्यिक्त को आपरेशन से बचना चाहिये क्योकि इसके कई गंम्भीर नुकसान सामने आ रहे है। जिसका खमियाजा आम जनता भुगत रही है। अमेरिका जानता है कि शरीर में खत्म हो रही प्रतिरोधक क्षमता से बाडी अब ज्यादा एन्टीबायोटिक सहन करने की स्थिति में नहीं है।

हाल ही में अमेजन प्रकाशन, द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘‘द पेडोफिल्स गाइड आफ लव एंड प्लेजर’’ को लेकर जम कर हंगामा हुआ विरोधियो का कहना था कि यह प्रवृत्ति बाल शोषण के दायरे मे आती है । ऐसा रुझान रखने वाला व्यिक्त मानसिक तौर पर बिमार हो सकता है खतरों को भापकर अमेरिका अपने यहां आयुवेर्द को मेडिकल शिक्षा में शामिल कर सस्ता और सरल तरीकों पर भारतीय डाक्टरों कि मदद में रिसर्च करा रहा है। वही दूसरी तरफ भारतीय आयुवेर्दिक जेनेरिक दवाओं को खत्म करने की साजिश रच रहा है। हाल ही में वाशिंगटन प्रशासन ने वैज्ञानिक शोधों के निष्कर्ष पर डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों से सतर्क रहने कंडोम, गर्भनिरोधक गोलियों में संयम बरतने की अपील जारी करता है। तो दूसरी तरफ ओबामा भारत में बोलते है कि हमें एड्स पर साथसाथ काम करना क्यो नही करेगे वियागरा कि जगह वेफर (यौन क्षमता ब़ढाने कि उन्नत दवा है) जो बेचना है। ये दोहरी नीति क्यों क्या इसमें औद्योगिक लाभ की रणनीति नहीं है।

अमेरिका ने कभी भी अपने देश के नुकसान पर किसी भी देश से संबध नहीं जोड़ा है वो अपने फायदे के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहता है। कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका और मीडिया की चुप्पी से तो स्वास्थ्य अधिकार की सुरक्षा होना संभव नही है।

जिस देश मे भगवान रूपी डाक्टर आर्थिक लाभ के लिए गरीबों के इलाज से कतरा रहा हो। उस देश में गरीबों के स्वास्थ्य की रक्षा प्राचीन वैदिक परंपराओं में ही निहीत है। अब वक्त की जरूरत है कि हम परंपरागत वैदिक चिकित्सा को ब़ाकर पूरे विश्व का घर बैठे इलाज कर सके और विश्व में चिकित्सा के क्षेत्र मे पुनह भारत को सिरमौर बना सके।