आखिरकार जाना पड़ा भ्रष्ट एवं काहिल सरकार को 

नेपाल: एक बार फिर लोक की सर्वोच्चता सिद्ध 

डॉ घनश्याम बादल

आखिरकार वही हुआ जिसकी आशंका थी। जेन जी के कार्यकर्ताओं के आगे लाठी, गोली,प्रतिबंध और सरकार की ताकत सब ध्वस्त हो गई और अंतत सरकार को जाना पड़ा । 

   नेपाल सरकार का पतन तो तब ही शुरू हो गया था जब तीन मंत्रियों ने इस्तीफे दे दिए थे. फिर आरएसपी के 21 सांसदों ने भी अपने इस्तीफे राष्ट्रपति को भेजे लेकिन सुदन गुरुंग के एवं जी ओ  ‘हामी नेपाल’ के कार्यकर्ता संतुष्ट नहीं हुए । आखिरकार सोशल मीडिया से बैन हटा लिया गया लेकिन तब भी बात नहीं बनी।  फिर के पी शर्मा ओली ने इस्तीफा दिया और उनके साथ ही वहां के राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने भी कुर्सी छोड़ दी. अब नेपाल में अव्यवस्था आगजनी लूटपाट और हिंसा का राज चल रहा है. 

भारत का सबसे निकट पड़ोसी और दुनिया के गिने – चुने हिंदू राष्ट्रों में से एक नेपाल  संकट में है । वहां की के पी शर्मा ओली सरकार के खिलाफ युवा जेन  जी के कार्यकर्ता सड़कों पर  हैं । काठमांडू और वीरगंज में ही नहीं अपितु देश के दूसरे शहरों में भी हालात लगातार बिगड़ रहे हैं और अब तक मिले अपडेट के अनुसार 20  लोग मारे  गए हैं। 

अभी कुछ दिनों पहले ही ओली सरकार ने नेपाल में सोशल मीडिया मंचों को चलाने वाली कंपनियों को अपना रजिस्ट्रेशन एक हफ्ते के अंदर करने के लिए कहा था । साथ ही साथ यह भी निर्देश दिया था कि वह नेपाल के कानून का पूरी तरह पालन करें लेकिन टिकटोक जैसी एक दो कंपनियों को छोड़कर किसी ने भी उनके इस निर्देश का पालन नहीं किया जिसके चलते हुए उन्होंने फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम ,यूट्यूब और एक्स जैसे सोशल मीडिया मंचों पर 

 रोक लगा दी थी । 

   पहले से ही बेरोजगारी भ्रष्टाचार एवं महंगाई की वज़ह से गुस्से में तना बैठा युवा इससे और भी उखड़ गया और आज सुबह से ही वह नेपाल की सड़कों पर उतर गया। 

   जेनरेशन जी के इन कार्यकर्ताओं का गुस्सा केवल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोक लगाने मात्र तक सीमित नहीं है बल्कि वह देश में लगातार बढ़ रही बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, भूमि सुधार कानून एवं सत्ता में बैठे हुए व्यक्तियों द्वारा अपने व्यक्तिगत तथा पारिवारिक लाभों के लिए सत्ता का अनुचित इस्तेमाल करना भी उनके एजेंडे में शामिल है । उनका मुख्य आरोप  है कि नेपाल की वर्तमान सरकार युवाओं को रोजगार देने की दिशा में गंभीर नहीं है। 

    यदि नेपाल के रोजगार के आंकड़े उठाकर देखें तो 1995- 96 में वहां पर रोजगार प्राप्त करने लायक जनसंख्या का 67% रोजगार पाया हुआ था जबकि 30 वर्षों में यह प्रतिशत घटकर केवल 30% पर आ गया है ऐसे में रोजी-रोटी के संकट का सामना कर रही युवा पीढ़ी का आक्रोशित होना स्वाभाविक है । साथ ही साथ इस संगठन और दूसरे युवाओं का यह भी आरोप है कि नेपाल में क्षेत्र विशेष में ही विकास के कार्य किए जाते हैं जबकि करनाली, डॉल्पा और हुमल जैसे क्षेत्र आज भी उपेक्षित हैं।

    नेपाल लंबे समय से अस्थिर सरकारों के दौर से गुजर रहा है. 2008 में राजशाही परिवार की हत्या के बाद से ही वहां राजनीतिक स्थिरता नहीं आ पाई है और 17 साल के अंतराल में वहां 15 सरकारें एवं प्रधानमंत्री बदले हैं ।

   वर्तमान सरकार भी गठबंधन की सरकार थी . उसमें नेपाली कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यू एम एल) मुख्य दल थे। जिम आपसी वैचारिक द्वंद लगातार चल रहा था।  चुनाव में बेमेल गठबंधन करके 15 जुलाई 2024 को ही के पी शर्मा चौथी बार सत्ता में लौटे थे ।            

   एक और सरकार की अंदरूनी कलह तो दूसरी ओर विपक्ष के नेता पुष्प कमल दहल प्रचंड भी लगातार वहां की सरकार को चुनौती देते रहे थे। इन सब के चलते नेपाल में सुशासन जैसी व्यवस्था लागू नहीं हो पाई जिसके चलते हुए वहां का युवा सरकार के खिलाफ खड़े होने पर मजबूर हुआ । 

   सरकारों की काहिली और राजनीतिक स्वार्थ पूर्ति के चलते हुए दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में समय-समय पर इस तरह के विद्रोह पहले भी होते आए हैं । चीन का थियेन  आन मन चौक कांड अभी तक भी लोग नहीं भूले होंगे । इसी तरह अरब देशों में 2010 से 2012 के बीच अरब स्प्रिंग के नाम से ऐसा ही आंदोलन शुरू हुआ था और इस आंदोलन के चलते हुए वहां की ट्यूनीशिया की सरकार को हटना पड़ा था और मिस्र में भी हुस्नी मुबारक को सत्ता गंवानी पड़ी थी जबकि संघर्ष के चलते हुए लीबिया और सीरिया आज तक भी गृहयुद्ध झेल रहे हैं । 2013 में तुर्की में गीजी पार्क आंदोलन खड़ा हुआ लेकिन उसे कठोरता पूर्वक दबा दिया गया जबकि 2019 –  2020 में हांगकांग विरोध आंदोलन को भी चीन ने बर्बरता पूर्वक कुचल दिया । 2018-19 में सूडान में भी युवा आक्रोशित हुए और वहां की अल बशीर सरकार का पतन हुआ जबकि बेलारूस में 2020 में चुनावी धुंधली के खिलाफ विपक्ष सड़कों पर उतरा लेकिन वहां उसका दमन कर दिया गया। इसी तरह भारत में भी किसान आंदोलन के आगे सरकार को झुककर कृषि कानून वापस लेने पड़े थे। बांग्लादेश और श्रीलंका की तरह एशिया में नेपाल तीसरा देश हो गया है जहां युवाओं के हिंसक आंदोलन के बाद सरकार को दक

तख्तापलट  का सामना करना पड़ा है

   सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि सरकारों के ख़िलाफ़ लोग खड़े क्यों होते हैं ? सामान्यतः आम आदमी आंदोलन या विद्रोह से बचता है लेकिन जब पानी सर के ऊपर आ जाता है तो फिर वह सड़कों पर उतर जाता है और देश के हालात बद से बदतर होते चले जाते हैं और नेपाल में यह सामने ही है। 

    समय का तकाज़ा है कि सरकारें सत्ता में आने के बाद भी जन भावनाओं का ख़्याल रखें।  विकास में ईमानदारी रखें और रोजगार के अधिक से अधिक अवसर उपलब्ध कराएं जिससे आम आदमी संतुष्ट हो । साथ ही साथ भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी तथा दल, वर्ग, जाति, मज़हब या धर्म की राजनीति से यथा संभव बचा जाए अन्यथा स्थिति में दुनिया भर में ऐसे आंदोलन होते रहेंगे । 

  भले ही नेपाल में अंतरिम सरकार के गठन की बात शुरू हो गई है लेकिन अभी नहीं कह सकते कि नेपाल के हालात आने वाले दिनों में कैसे होंगे । 

   यहां बात केवल नेपाल के अंदरूनी हालातों की नहीं है अपितु इनका असर भारत पर भी पड़ता है इसलिए भारत की सरकार को भी सतर्क होकर हालात पर न केवल निगाह रखनी चाहिए अपितु नेपाल में भारतीयों के हितों एवं सुरक्षा की भी बात करनी होगी और हर संभव प्रयास करना होगा ताकि नेपाल में लोकतंत्र बचा रहे और भारत से रूठा हुआ नेपाल फिर से उसकी ओर लौट कर समृद्धि की राह पर चल सके। 

डॉ घनश्याम बादल 

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